03-Mar-2018 09:12 AM
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इस अंतर्राष्ट्रीय नृत्य समारोह में देश के कई ख्यातनाम कलाकारों ने अपनी नृत्य प्रस्तुतियां देकर दर्शकों का मनमोह लिया। हर रा घुंघरुओं की झनकार और तबले की थाप पर कलाकारों के कदमों की ऐसी जुगलबंदी रही कि देह से सुर मिले तो सांझ नांच उठी। पूरा प्रांगण तालियों की गडगड़ाहट से गूंजता रहा। लोक नृत्य के संगम में मोहिनी मोघे ने नृत्य के सौंदर्य से दर्शकों का मन मोह लिया। उन्होंने कथक की प्रस्तुति में ऋतुओं को शास्त्रीय संगीत में पिरोया। वहीं जी कलईवाणी राजमोहन ने भरतनाट्यम की प्रस्तुति देकर सभी का दिल जीत लिया। नीलम चौधरी का कथक भी खासा सराहा गया। जबलपुर की मोहिनी मोघे ने कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने अपने नृत्य में पहले ग्रीष्म ऋतु पर प्रस्तुति दी। नृत्य में बताया गया कि हल्की पानी की फुहार है। नदी नहर की तरह बह रही है, ऐसा लगता है दुबली पतली छरहरी सी नदी ने छोटे होने की ठानी है। जेठ की तपन में किनारा जल रहा है ऐसे में वह किसकी राह देखें, ग्रीष्म ने धारा को दो भाग में बांट दिया है।
तबले की थाप पर घुंघरूओं की छन-छन वातावरण में गूंजी तो एक पल को लगा जैसे देवलोक से अप्सराएं उतर आई हों। लयात्मक कथक में भावपक्ष, कथक कविता, भाव प्रधान कहानीयुक्त रीति कालीन कवि पदमाकर की रचना पर आधारित ऋतुओं का शानदान वर्णन किया। इसमें नृत्यांगना ने नृत्य के माध्यम से ग्रीष्म, पावस, शरद, बसंत का जीवंत वर्णन किया तो दर्शक मंत्र मुग्ध हो उठे और विशाल पांडाल गगनभेदी तालियों की गडग़ड़ाहट से गुंजायमान हो उठा। इस आयोजन में कथक प्रस्तुति में वर्षा ऋतु के उल्लासमय वातावरण को दर्शाया गया। वहीं शरद ऋतु, ऋतुराज वसंत के आमद को नृत्य के माध्यम से पेश किया गया। इस नृत्य में प्रकृति के आलंबन रूप का चित्रण बड़ा ही सरस रहा। नृत्य में बताया कि प्रकृति सौंदर्य के प्रति उनका स्वभाव एक अनुराग प्रतिबंधित होता है। नदी किनारों हैं, बागों में बहार और फूलों की क्यारियों में कली- कली मैं बसंत किलकारी ले रहा है।
संस्कृति विभाग और उस्ताद अल्लाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा आयोजित 44 वें खजुराहो नृत्य महोत्सव का रोमांच दिन पर दिन बढ़ता गया। शास्त्रीय नृत्यों एवं देश के ख्याति प्राप्त कलाकारों को देखने बड़ी संख्या में दर्शक पहुंचे। वहीं नृत्य समारोह के दौरान बुंदेली लोक जीवन और खान-पान का महोत्सव भी लोगों के सिर चढ़कर बोला। यहां पर लगे बुंदेली फूड के स्टॉल पर लजीज व्यंजनों को खाकर विदेशी सैलानियों से लेकर बाहर से आए मेहमान और अफसर यहां के जायके के मुरीद हो गए। मप्र गांधी स्मारक निधि और भारतीय सांस्कृतिक निधि (इंटेक) के संयुक्त तत्वाधान में पारंपरिक बुन्देली फूड फेस्टिवल का आयोजन किया गया था।
लय, ताल, छंद और नृत्य का संगम
खजुराहो नृत्य समारोह में लय, ताल, छंद और नृत्य का अद्भूत संगम लोगों को खूब भाया। किसी ने वेद मंत्र ओम सहना भवतु सहनौ भुनक्तु पर प्रस्तुति दी तो किसी ने किसी लोकगीत पर। यहां 13 मात्राएं, ज्यत ताल, तोड़े, टुकड़े, परण आदि का समावेश नृत्य में दिखा। कई प्रस्तुतिओं में माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो गया। नीलम चौधरी ने सखी कैसे कहूं मोहे लाज लगे, मोहे पी की नजरिया मार गई..... बोल पर सूफी नृत्य पेश किया। इस सूफी नृत्य में अध्यात्म एवं श्रृंगार का समावेश किया गया। इसमें ईश्वर को ही प्रेमी मानकर सूफी संत नृत्य करते है। इस प्रस्तुति ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। नीलम चौधरी ने नृत्य के द्वारा तीसरी और आखरी प्रस्तुति में तीन ताल, 16 मात्रा में समकालीन नृत्य संरचना की प्रस्तुति दी गई। जिसमें तोड़े, परन, टुकड़े, तिहइयां और लड़ी को सम्मिलित कर नृत्य पेश किया गया। छह दिनों तक चले इस आयोजन को विदेशों से आए कलाकरों और दर्शको ने भी खूब सराहा।
-एस. एन. सोमानी