03-Mar-2018 09:10 AM
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पिछले साल दिसंबर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शिवपुरी जिले में सहरिया जनजाति के परिवारों में कुपोषण दूर करने के लिए पौष्टिक आहार के लिए प्रतिमाह 4 करोड़ 50 लाख की राशि परिवार की महिलाओं के खाते में डालने की घोषणा की। उनकी घोषणा का क्या हश्र होगा इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके कारिंदों ने दो साल पहले लागू टिफिन योजना का आज तक क्रियान्वयन नहीं किया। उल्लेखनीय है कि जनवरी 2016 में थर्ड ग्रेड के कुपोषित बच्चों को पांचवे मील के रूप में टिफिन उनके घर भेजने की योजना बनी थी। इसका उद्देश्य यह था कि कुपोषितों को पौष्टिक आहार ले सकें। लेकिन शिवपुरी जिले में इस योजना का कहीं अता पता नहीं है। महिला एवं बाल विकास विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, श्योपुर, शिवपुरी, खण्डवा, सतना सहित दर्जनभर जिलों में कुपोषण की स्थिति भयावह है। वहीं हैदराबाद स्थित गैर-लाभकारी संस्था नंदी फाउंडेशनÓ की सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश के आधा दर्जन से अधिक जिलों में 10 बच्चों में से एक बच्चा कुपोषित है, और आर्थिक स्थिति के अलावा मां की शिक्षा, भोजन के पैटर्न और सरकारी सेवा के दायरे में प्रसव भी बच्चे के पोषण का निर्धारण करते हैं। इन जिलों में पांच वर्ष से कम उम्र के 22.3 फीसदी बच्चे स्टंड है, 21.4 फीसदी कम वजन और 13.9 फीसदी वेस्टेड हैं। ये आंकड़े खतरनाक हैं। कुपोषण को रोकने सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं, लेकिन उनका ठीक से क्रियान्वय नहीं होने के कारण प्रदेश में कुपोषण थमने की वजाय बढ़ रहा है।
आंकड़ों से पता चलता है कि प्रदेश में स्टंटिंग और कम वजन का प्रचलन, तीसरे और चौथे वर्ष के बीच सबसे ज्यादा थी। सर्वेक्षण के मुताबिक, 0-5 महीने के आयु वर्ग के 14.7 फीसदी बच्चे स्टंड थे। शुरु के छह महीने में अकेले स्तनपान बच्चे की पोषण का ख्याल रखता है। स्तनपान से पूरक भोजन के रूप में जाने वाला समय बहुत संवेदनशील होता है और अगर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया तो इसमें बच्चों को स्वास्थ्य से जुड़ी कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। 12-17 महीने की आयु के लगभग 22.9 फीसदी बच्चे स्टंड थे, और 36-47 महीनों के बच्चों में इसका प्रसार 25.7 फीसदी हुआ था। आंकड़ों से पता चलता है कि 48-59 माह के बच्चों के लिए दर गिर कर 21.3 फीसदी हुई है। इसी प्रकार, 0-5 महीने के आयु वर्ग के 17.3 फीसदी बच्चे कम वजन के थे, जबकि 48-59 महीनों के बच्चों में यह प्रसार बढ़कर 23.3 फीसदी हुआ है। जीवन के पहले पांच वर्षों में वेस्टिंग का प्रसार 13 फीसदी और 16 फीसदी के बीच काफी स्थिर रहा है, जबकि अधिक वजन का प्रसार 1.7 फीसदी और 3.6 फीसदी के बीच रहा है।
इस भयावह स्थिति से निपटने के लिए सरकार एक बार फिर बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाने में जुट गई है। खाद्य आयोग ने हाल ही में सरकार से सिफारिश की है कि यदि कुपोषित बच्चों के घर पर पोषण आहार का टिफिन भेजा जाए तो कुपोषण पर लगाम लग सकती है। शिवपुरी जिले में पूर्व से अतिकुपोषित बच्चों के लिए चल रही टिफिन योजना डे केयर सेंटर पर चलाई जाती है, परंतु यह योजना सिर्फ कागजों में ही दफन होकर रह गई है और डे केयर सेंटर पूरी तरह सूने रहकर सहायिकाओं के भरोसे चल रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जनवरी 2016 में थर्ड ग्रेड के कुपोषित बच्चों को पांचवे मील के रूप में टिफिन उनके घर भेजा जाना था ताकि वह रात को भी पौष्टिक आहार ले सकें। लेकिन शिवपुरी जिले में योजना चारों खाने चित्त नजर है। पांचवे मील के रूप में भेजे जाने वाले टिफिन कुपोषित बच्चों के घर नहीं भेजे जा रहे हैं। जिले में कुपोषितों को पोषण आहार वाले टिफिन भेजने की योजना की हकीकत यह है कि कहीं टिफिन खरीदे तो गए हैं लेकिन पोषण आहार भेजे नहीं जा रहे हैं वहीं कही इस पूरे कार्यक्रम के बारे में अधिकारियों का कहना है कि जिला स्तर पर कुपोषण मिटाने के लिए अटल बाल मिशन के तहत पांचवे मील के रूप में टिफिन कुपोषितों के भेजने की योजना है। इस साल जिला स्तर से टिफिन खरीदे जाने हैं, अभी तक टिफिन खरीदी नहीं हुई है। जिला स्तर से टिफिन खरीद कर केन्द्रों को दिए जाएंगे, फिर अतिकुपोषित बच्चों के घर भिजवाए जाएंगे।
खराब सेवा वितरण से कुपोषण और बद्तर
सर्वेक्षण किए गए केवल 37.4 फीसदी परिवारों का सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आउटलेट तक पहुंच थी। सूरत में सबसे कम (10.9 फीसदी) और कोलकाता में सबसे अधिक (86.6 फीसदी) आंकड़े दर्ज किए गए हैं। परिणामस्वरूप, चार बच्चों में से एक से कम (22.5 फीसदी) को ऐसा आहार प्राप्त हुआ है, जो स्वस्थ विकास की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करता है, जैसा कि सर्वेक्षण से पता चलता है। इसके अलावा सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि केवल 53.9 फीसदी परिवारों ने अपने घरों में पानी पाइप की व्यवस्था की थी। हालांकि, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 (एनएफएचएस -4) के मुताबिक शहरी भारत में 91.1 फीसदी घरों में बेहतर पेयजल स्रोतÓ है। पीने के लिए पानी खींचने का बोझ अक्सर महिलाओं पर पड़ जाता है, जिससे स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान देने के लिए उनके पास थोड़ा समय ही बचता है, जैसा कि अध्ययन में बताया गया है। सर्वेक्षण किए गए केवल 44.7 फीसदी परिवारों में एक महिला सदस्य थी, जिनके पास बचत बैंक खाता था।
- सिद्धार्थ चौधरी