03-Mar-2018 09:08 AM
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मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी पार्टी भाजपा की घेराबंदी शुरू हो गई है। जहां कांग्रेस सत्ता पाने के लिए जोर लगा रही है वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसी छोटी-छोटी पार्टियां सत्तारूढ़ दल को ब्लैक मेलिंग करने के लिए दंड पेल रही हैं। ये पार्टियां जानती हैं कि उनका जनाधार इतना नहीं है कि वे चुनाव जीत सकें। लेकिन उन्हें यह अहसास है कि वे भाजपा की जीत का गणित बिगाड़ सकती है। इसलिए वे 15 साल से सत्ता में बैठी भाजपा के मालदार खजाने में से कुछ पाने के लिए अपनी सक्रियता का स्वांग रचा रही हैं। वैसे इन पार्टियों की सक्रियता से कांग्रेस को भी खतरा है।
उधर 15 साल बाद सत्ता में वापसी की उम्मीद को पुख्ता करने के लिए कांग्रेस इस बार एक साथ कई रणनीति पर काम कर रही है। पहला यह कि वह बसपा के साथ चुनावी गठबंधन करने में जुटी हुई है वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के 50 फीसदी वोट बैंक को साधने के लिए गुजरात की तिकड़ी (हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी) को सक्रिय कर रही है। ज्ञातव्य है कि प्रदेश में ओबीसी के 50 फीसदी मतदाता हैं। इनमें से 40 फीसदी मतदाताओं को लुभाने की जिम्मेदारी अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी पर होगी वहीं लोधी, पाटीदार और कुशवाहा समाज के 10 फीसदी मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में करने की जिम्मेदारी हार्दिक पटेल पर होगी।
दरअसल 2003 के बाद से ओबीसी वोट बैंक कांग्रेस के हाथों से छिटककर भाजपा की तरफ आ गया। फिर 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने इस वर्ग पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। इस वर्ग के दम पर ही भाजपा लगातार तीन बार से सरकार में बनी हुई है। अगर 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो भाजपा का मत प्रतिशत 54 फीसदी और कांग्रेस का 35 फीसदी था। वहीं ओबीसी के 67 फीसदी मतदाताओं ने भाजपा को और 19 फीसदी ने कांग्रेस को वोट दिया था। जिसके दम पर भाजपा ने लोकसभा की 29 सीटों में से 27 सीटें जीतीं थी। बाद में हुए उपचुनाव में भाजपा के हाथ से रतलाम सीट निकल गई। अब इसी वोट गणित को बदलने के लिए कांग्रेस ने गुजरात की तिकड़ी को प्रदेश में सक्रिय करने की रणनीति बनाई है।
गुजरात की राजनीति को हिलाने वाले ये तीनों नेता अब मप्र की राजनीति में सेंध मारने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुके हैं। अल्पेश ठाकोर और पाटिदार नेता हार्दिक पटेल ने राजधानी सहित प्रदेश के कई क्षेत्रों में रैली, सभाएं करके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहन को चेता दिया है। बताया जा रहा है कि गुजरात के युवा सांसद जिग्नेश मेवाणी भी बहुत जल्द मध्यप्रदेश पहुंचकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले हैं। गुजरात की यह तिकड़ी भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम साबित नहीं होने वाली है।
गुजरात के कांग्रेस विधायक एवं ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर ने तो भाजपा को चुनौती दे डाली है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 125 सीटें जीतेगी। ठाकोर ने भाजपा की 200 सीटें जीतने के दावे को खारिज करते हुए दावा किया है कि यदि भाजपा ऐसा करने में सफल होती है, तो वह राजनीति छोड़ देंगे। इन गुजराती नेताओं की मप्र में दस्तक भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। क्योंकि इन्हीं के कारण गुजरात में भाजपा 99 के फेर में फंस गई।
इस बार कांग्रेस हर हाल में सत्ता में वापसी की कोशिश में है। इसके लिए चाहे राष्ट्रीय स्तर का फोकस हो या फिर प्रदेश स्तर का पार्टी में नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। हर तरह से कांग्रेस के मन में एक ही बात है कि मध्यप्रदेश की सत्ता अब उसके हाथ में हो। शायद यही वजह है कि प्रदेश में अपने हाथ मजबूत करने के लिए वह गठबंधन का सहारा लेने की तैयारी में है। खबर है कि सत्ता के किनारे तक पहुंचने के लिए चुनाव की इस नदी में कांग्रेस सहयोगी दलों की नाव का सहारा ले सकती है। जानकारी के मुताबिक मध्यप्रदेश में कांग्रेस बसपा के साथ गठबंधन कर सकती है। ये बात इसलिए उठ रही है क्योंकि कांग्रेस नेताओं का ही एक वर्ग बसपा से गठबंधन की संभावनाएं तलाश कर रहा है। इसमें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संगठन महामंत्री चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि ऐसे ही कुछ और बड़े नेता भी बसपा के संपर्क में हैं। अगर दोनों में गठबंधन होता है तो यह भाजपा के लिए सबसे चिंता की बात होगी।
प्रदेश में बहुत बड़ा जनाधार नहीं होने के बाद भी करीब दो दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां पर बसपा का प्रभाव जरूर है। यकीनन इन सीटों पर बसपा तो जीत नहीं पाती, लेकिन कांग्रेस की हार का कारण जरूर बन जाती है। माना जा रहा है कि इसी हार के कारण को सुलझाने के लिए कांग्रेस अपनी नई राजनीतिक चाल चलने जा रही है। यदि बीते विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो बसपा की दो से लेकर 7 सीटों पर जीत हुई है, इतना ही नहीं लगभग 5 सीटें ऐसी हैं, जहां पर बसपा ने कांग्रेस के वोट काट दिए और उसकी हार का कारण बनी। आंकड़े बताते हैं कि ग्वालियर, मुरैना, शिवपुरी, रीवा और सतना जिलों में दो से सात सीटों पर बसपा को जीत हासिल हुई है। वहीं भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह, रीवा और सतना की कुछ सीटों पर दूसरे स्थान पर रहकर कांग्रेस का पत्ता साफ कर दिया। ऐसा नहीं है कि बसपा छोटे मोटे अंतर से जीती हो, जिन सीटों पर बसपा ने जीत हासिल की है, वहां पर 0.35 फीसदी से लेकर 11 फीसदी तक के अंतर से दूसरे प्रत्याशियों को धूल चटाई है। चुनावी नतीजों के हिसाब से इतना अंतर भी काफी माना जाता है।
माना जा रहा है कि ग्वालियर-चंबल और रीवा संभाग में पार्टी को मजबूती देने के लिए कांग्रेस बसपा से हाथ मिला सकती है। यही वो जगह है, जहां पर अक्सर बसपा कांग्रेस की हार का कारण बन जाती है। इन जगहों पर कांग्रेस काफी हद तक मजबूत स्थिति में है। ये बात हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हाल ही में भिंड और सतना में हुए दो उपचुनावों में इन स्थानों से बसपा के प्रत्याशी खड़े नहीं हुए थे। कांग्रेस के वोट नहीं कटे और उसे जीत हासिल हुई। प्रदेश में गोंगपा और आम आदमी पार्टी भाजपा और कांग्रेस की जीत का गणित बिगाड़ सकते हैं। आदिवासी इलाकों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की अच्छी खासी धमक देखी जा रही है। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने आदिवासी समुदाय के बीच अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। यानी आने वाले समय में मप्र की राजनीति में साम, दाम, दंड, भेद सबकुछ देखने को मिलेगा।
जातियों का जंजाल
प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए जाति आधारित सामाजिक संगठन भी सरकार पर दबाव बनाने लगे हैं। अपने-अपने समाज के लोगों को सरकारी आरक्षण की मांग करने से सरकार के सामने मुसीबत बढ़ती ही जा रही है। खास बात यह है कि इन संगठनों द्वारा अपनी मांग नहीं माने जाने पर सरकार को उसके पक्ष में वोट नहीं देने की धमकी भी दी जा रही है। हालांकि मप्र देश के उन राज्यों में शामिल है जहां अब तक कोई जातिवादी सियासत हावी नहीं हो सकी है यही वजह है कि देश के अन्य राज्यों में जातिवादी राजनीति करने वाले दल मप्र में सफल नहीं हो सके हैं। इनमें दलितों के नाम पर बनी बसपा, यादवों की समाजवादी पार्टी और गोंडवाना पार्टी शामिल हैं। मीना समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष किरोड़ीलाल मीणा कहते हैं कि हमें मप्र में अनुसूचित जनजाति में शामिल करते हुए आरक्षण का लाभ दिया जाए। समाज इसके लिए आर-पार की लड़ाई लड़ेगा। मप्र युवा सेन समाज संगठन के प्रदेशाध्यक्ष प्रवीण सेन परमात्मा कहते हैं कि 2007 में मप्र विधानसभा में सरकार ने सेन समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का संकल्प पारित किया था। अब यदि इसका लाभ नहीं दिया तो हम भाजपा का विरोध करेंगे। उधर सपाक्स और अजाक्स भी सरकार को मुश्किल में डाल सकती हैं। सपाक्स यानी सामान्य एवं पिछड़ा अल्पसंख्यक वर्ग कर्मचारी संघ और अजाक्स संगठन में एसटी-एससी कर्मचारी शामिल हैं। सपाक्स चाहता है कि पदोन्नित में आरक्षण को खत्म किया जाए। वहीं अजाक्स सरकार पर दबाव बना रहा है कि चुनाव से पहले पदोन्नित के नए नियम बनाकर उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाए। दोनों ही संगठनों ने सरकार को चेतावनी दी है कि उनकी मांग को नजरअंदाज किया तो वोट नहीं मिलेंगे।
-सुनील सिंह