न पायलट, न गहलोत
03-Mar-2018 09:06 AM 1234844
राजस्थान में कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। यानी किसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया जाएगा। कांग्रेस का नारा है- एक ही एजेंडा है, कांग्रेस का झंडा है। इस नारे से साफ है कि राहुल गांधी के बढ़ते ग्राफ को देखते हुए कांग्रेस उन्हीं की अगुआई में राजस्थान विधानसभा चुनावों के मैदान में उतरेगी। राजस्थान में हाल ही संपन्न हुए उपचुनावों में दो लोकसभा सीटों और एक विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की। उपचुनावों में मिली जीत से कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं। गुजरात में मिली बढ़त और राजस्थान की इस सफलता के बाद पूर्व सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट को लेकर कई तरह की कयासबाजी चल रही थी। सियासी गलियारों में कहा जा रहा था कि राजस्थान की कमान सचिन पायलट को सौंपी जा सकती है, लेकिन अंदरूनी कलह के चलते थोड़ा संशय की स्थिति कायम थी। दरअसल, राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, केंद्र सरकार में मंत्री रहे सीपी जोशी और भंवर जितेंद्र सिंह मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में गिने जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस की सिरदर्दी रही कि वह किसको मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाये? किसी एक को बनाने पर बाकी की नाराजगी मोल लेने का खतरा था। ऐसे में पार्टी ने  कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लडऩे की घोषणा कर तात्कालिक तौर पर इस कलह को विराम देने की कोशिश की है जिसका लाभ पार्टी को चुनाव में मिल सकता है। राहुल गांधी के साथ हुई बैठक में प्रदेश कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं के साथ प्रभारी महासचिव अविनाश पांडेय भी शामिल हुए। इसमें राहुल के सामने सामूहिक नेतृत्व के फैसले पर मुहर लगा दी गई। राहुल के सामने सभी ने इस पर सहमति जताई। इस बात पर मुहर लगाते हुए राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडेय ने बताया कि हम राजस्थान में सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे। हमारे सभी नेताओं ने राहुल के सामने ये प्रस्ताव रखा, जिस पर राहुल ने मुहर लगा दी। राजस्थान में तीन उप चुनावों में जीत के साथ ही खेमों में बंटी कांग्रेस में खेमेबंदी और तेज हो गयी है। हर खेमे का अपना नायक है और हर खेमे की अपनी रणनीति। कोई पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को फिर से सत्ता के शीर्ष पर देखने के लिए रणनीति बना रहा है तो कोई युवा तुर्क सचिन पायलट के राजनीतिक कौशल का हवाला दे उन्हें दस महीने बाद राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने की जुगाड़ में व्यस्त है। तीसरा खेमा टीम राहुल के ही एक वरिष्ठ सदस्य डाक्टर सीपी जोशी को सबसे बेहतर विकल्प मान सीपी को सीएम बनाने के सपने देख रहा है। खेमों के बीच कांग्रेस उप चुनाव के जश्न के पूरा होने से पहले ही पार्टी पॉलिटिक्स में इस तरह व्यस्त हो गयी है कि कांग्रेस की सिर फुट्टवल में ही बीजेपी को राहत के आसार दिखने लगे हैं। सीधे तौर पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को कांग्रेस में जान फूंकने के लिए श्रेय दिया जा सकता है। लेकिन सच यह भी है कि अलवर लोकसभा के उप चुनाव में कांग्रेस की जीत में पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह अलवर और अशोक गहलोत की बड़ी भूमिका थी तो मांडलगढ़ विधानसभा सीट के उप चुनाव में जीत पूर्व केंद्रीय मंत्री डाक्टर सीपी जोशी की रणनीति की बदौलत हुई। अजमेर से सचिन पायलट खुद सांसद रहे हैं, लिहाजा अजमेर में बीजेपी के खाते से सीट निकालने के लिए खुद पायलट ने रात-दिन एक कर दिए। यानि हर सीट पर कांग्रेस की जीत के अपने -अपने कारण थे, लेकिन श्रेय का संघर्ष कुछ ऐसा बढ़ा है कि हर कोई अपने गुट के नेता को भावी सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने में लगा है, लेकिन अब इस पर विराम लग गया है। खेमेबंदी से लग सकती है सत्ता की थाली को ठोकर अभी तक मिले संकेतों के अनुसार राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो सकती है। उधर हार से हैरान सरकार को जो इंटेलिजेंस इनपुट मिला उसका लब्बो-लुआब यही है कि जीत के साथ ही कांग्रेस में भावी सीएम का संघर्ष शुरू हो गया है। कांग्रेस के कार्यकत्र्ता भी इस खेमेबंदी के बीच उलझे हैं कि किस नेता को अपना नेता माने और किस को नहीं। असल में राजस्थान में तीन उप चुनावों में मिली जीत से कांग्रेस बल्ले-बल्ले है और हार से हताश बीजेपी थल्ले-थल्ले। पूरे चार साल से राज्य की सत्ता से बुरी पराजय के चलते बाहर हुई कांग्रेस को विधानसभा चुनाव से ठीक दस महीने पहले एक अदद जीत की कुछ इसी अंदाज में जरूरत थी। मन की मुराद पूरी होने के बाद कांग्रेस के नेताओं के चेहरे खिले हैं। लेकिन पार्टी में जिस तरह की खेमेबाजी दिख रही है उससे सत्ता की थाली को ठोकर भी लग सकती है। -जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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