03-Mar-2018 09:01 AM
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल में पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से संचालित 125 स्कूलों को बंद करने का फरमान सुनाया है। इतना ही नहीं जल्द ही ऐसे 370 और स्कूलों को भी बंद करने पर विचार किया जा रहा है। ममता बनर्जी सरकार का कहना है कि इन स्कूलों में धार्मिक प्रशिक्षण दिया जाता है। पूरे देश में हजारों की संख्या में सरस्वती शिशु मंदिर और विवेकानंद शिशु मंदिर नाम से स्कूलों का संचालन संघ की तरफ से किया जाता है। इन स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को पढ़ाई के साथ ही भारतीय संस्कृति की भी शिक्षा दी जाती है। ममता बनर्जी को यह कतई मंजूर नहीं है कि उनके राज्य में कोई भारतीय संस्कृति की बात करे। यही वजह है कि उन्होंने संघ द्वारा संचालित स्कूलों को बंद करने का फैसला किया है।
यह कोई पहला वाकया नहीं है जब ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति कर रही हैं। इससे पहले भी वो हिंदुओं के खिलाफ जाकर मुसलमानों को खुश करने के फैसले कर चुकी हैं। आइए उन फैसलों पर एक नजर डालते हैं। पिछले वर्ष ममता बनर्जी सरकार ने पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में महानंदा नदी में छठ पूजा मनाने पर रोक लगा दी थी। एक अखबार की खबर के अनुसार दार्जिलिंग की डीएम जयसी दासगुप्ता ने एनजीटी के आदेश का हवाला देकर महानंदा नदी में छठ पूजा मनाने पर बैन कर दिया गया। प्रशासन के आदेश के पर नदी के भीतर घाट नहीं बनाने दिया गया। दरअसल सिलीगुड़ी जिला प्रशासन का यह आदेश ममता सरकार के तानाशाही आदेशों की उसी कड़ी की अगली लड़ी थी, जिनमें अनेकों बार दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा और हनुमान जयंती जैसे हिंदू पर्वों पर बंदिशें लगाई गई हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर ममता बनर्जी की सरकार लगातार हिंदुओं की आस्थाओं पर आघात करती रही है। छठ पर्व को लेकर ममता बनर्जी सरकार ने एनजीटी के आदेश की आड़ लेकर नदियों में छठ पूजा पर पाबंदी लगा दी थी। जबकि वास्तविकता में छठ पर्व में ऐसा कुछ भी नहीं होता जिससे नदी प्रदूषित हो। हिंदू धर्म में दशहरे पर शस्त्र पूजा की परंपरा रही है, लेकिन मुस्लिम प्रेम में ममता बनर्जी हमेशा हिंदुओं की धार्मिक आजादी छीनने पर आमादा दिखाई देती हैं। ममता बनर्जी ने पिछले वर्ष आदेश दिया, जिसके अनुसार दशहरा के दिन पश्चिम बंगाल में किसी को भी हथियार के साथ जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी गई। पश्चिम बंगाल ही नहीं पूरे देश में दशहरे के मौके पर हिंदू संगठनों में शस्त्र पूजा की परंपरा है, लेकिन ममता बनर्जी को हिंदुओं की परंपराओं से कोई लेनादेना नहीं है।
तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब अमादेर पोरिबेस (हमारा परिवेश) रामधनुÓ (इंद्रधनुष) का नाम बदल दिया गया है। उसे रंगधनुÓ कर दिया है। साथ ही ब्लू का मतलब आसमानी रंग बताया गया है। शिक्षाविद् मुखोपाध्याय का कहना है कि साहित्यकार राजशेखर बसु ने सबसे पहले रामधनुÓ का प्रयोग किया था, लेकिन अब एक समुदाय विशेष को खुश करने के लिए किताब में इसका नाम रामधनुÓ से बदलकर रंगधनुÓ कर दिया है। वहीं 11 जनवरी 2017 को ममता सरकार ने आदेश जारी किया कि नबी दिवस सरकारी पुस्तकालयों में भी मनाया जाएगा। बंगाल सरकार के इस नये नियम के हिसाब से राज्य के सभी 2480 से ज्यादा सरकारी पुस्तकालयों में साल के दूसरे प्रस्तावित कार्यक्रम की तरह नबी दिवस मानने की भी बात कही गई। इतना ही नहीं इसे मनाने के लिए सरकारी खजाने से फंड देने की भी व्यवस्था की गई। इस आदेश में 51 इवेंट्स की सूची जारी की गई। जिसमें ईद-उद-मिलाद-उन-नबी जो की मोहम्मद पैगंबर के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है, भी शामिल है।
8,000 गांवों में हिंदू नहीं
प. बंगाल के 38,000 गांवों में 8,000 गांव अब इस स्थिति में हैं कि वहां एक भी हिन्दू नहीं रहता, या यूं कहना चाहिए कि उन्हें वहां से भगा दिया गया है। बंगाल के तीन जिले जहां पर मुस्लिमों की जनसंख्या बहुमत में हैं, वे जिले हैं मुर्शिदाबाद जहां 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू, मालदा 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू, और उत्तरी दिनाजपुर 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू। दरअसल बंगलादेश से आए घुसपैठिए प. बंगाल के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर गांवों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आयी है। 2011 की जनगणना ने खतरनाक जनसंख्यिकीय तथ्यों को उजागर किया है। जब अखिल स्तर पर भारत की हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी कहीं दुगनी दर से बढ़ी है।
- अरविंद नारद