15-Jun-2013 07:45 AM
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उत्तरप्रदेश संभवत: देश का ऐसा पहला प्रदेश बन गया है जहां लोकसभा चुनाव की तैयारियों में सभी राजनीतिक दल जुट गए हैं। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने तो बहुत सी सीटों पर

अपने प्रत्याशी भी घोषित कर दिए हैं। अब इन प्रत्याशियों को बदलने का दौर जारी है। सपा ने लोकसभा चुनाव के लिए घोषित 72 प्रत्याशियों में से 4 को और बदल दिया है। बिजनौर से पहले घोषित अनुराधा चौधरी का टिकट काटकर अमीर आलम को उम्मीदवार बनाया गया है। गोंडा से पूर्व सांसद कीर्तिवर्धन सिंह का टिकट काटकर राहुल शुक्ला को प्रत्याशी बनाया गया है। अलीगढ़ में काजल शर्मा के स्थान पर विधायक जफर आलम को उम्मीदवार बनाया है। आजमगढ़ से घोषित उम्मीदवार पंचायतीराज मंत्री बलराम यादव के स्थान पर हवलदार सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है। अभी तक 11 प्रत्याशी बदले जा चुके हैं। पहले यह लग रहा था कि समाजवादी पार्टी मौजूदा मंत्रियों में से अधिकांश को चुनावी मैदान में लाएगी ताकि नेताजी का दिल्ली की सत्ता का रास्ता साफ हो सके। लेकिन जातिवादी समीकरण महत्वपूर्ण होने के कारण और मौजूदा विधायकों तथा मंत्रियों के प्रति जनाक्रोश के चलते अब पार्टी ने नई लाइन पर चलने का एलान किया है। आने वाले दिनों में कुछ और टिकट भी बदले जा सकते हैं। उधर मुलायम सिंह यादव ने यह कहकर अखिलेश यादव मंत्रिमंडल पर कटाक्ष किया है कि यदि वे होते तो 15 दिन में सारी स्थिति सुधार देते। इस कथन से यह तो लग रहा है कि मुलायम सिंह यादव कहीं न कहीं यह मानकर चले हैं कि उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव सम्पूर्ण कुशलता से शासन नहीं चला पा रहे हैं। अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के काम करने की शैली में जमीन-आसमान का फर्क है। अखिलेश यादव जहां कार्पोरेट शैली पर काम करते हैं वहीं मुलायम सिंह यादव लोक लुभावन फैसले लेकर वोट जीतने की कोशिश करने वाले राजनीतिज्ञों में से हैं। हाल ही में जब उत्तरप्रदेश में बिजली की दरों में भारी वृद्धि दिखाई दी तो मुलायम सिंह यादव ने काफी क्रोध प्रकट किया था, लेकिन अखिलेश यादव ने तर्क दिया कि प्रदेश की मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए बिजली की दर बढ़ानी ही पड़ेगी। बिजली दर में यह वृद्धि अब चुनावी मुद्दा भी बन सकती है। भले ही लोकसभा चुनाव नजदीक न हो, लेकिन अगले वर्ष भी यही मुद्दा छाया रहेगा क्योंकि बिजली इतनी महंगी होने के बावजूद उत्तरप्रदेश में बिजली की उपलब्धता बहुत कम है और कई इलाकों में तो 19-19 घंटों की कटौती हो रही है। इसी कारण अगले चुनाव यदि निर्धारित समय पर अर्थात् मई-जून में हलाहल गर्मी में होते हैं तो निश्चित रूप से बिजली और पानी का मुद्दा मुलायम की पार्टी की सीटों में कमी भी कर सकती है।
उधर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अब ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित कर दिया है। समाजवादी पार्टी ने तो बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर नया समीकरण पैदा किया है। वहीं बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मणों को लुभाने में जुटी हुई है। राजा भैया प्रकरण के बाद बड़ी तादाद में ठाकुर वोट कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में बट गए हैं। अमर सिंह ने भी मुलायम से दूरी बनाकर ठाकुर वोटों के धु्रवीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। क्योंकि कांग्रेस केंद्रीय सत्ता में रहते हुए बहुत बदनाम हो चुकी है लिहाजा ठाकुर वोटों का लाभ भारतीय जनता पार्टी को होते दिख रहा है। ब्राह्मण मतदाता भी इस बार भारतीय जनता पार्टी को वोट कर सकता है। हाल ही में स्थानीय निकाय के चुनाव में ठाकुर और ब्राह्मणों ने भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था। भाजपा ने मुस्लिम वोट तथा यादव वोट में सेंध लगाने के लिए भी पुख्ता इंतजाम किए हैं। आलम यह है कि सभी पार्टियां ब्राह्मणों, मुस्लिमों और ठाकुरों को लुभाने में जुट गई हैं। खासकर ब्राह्मण और मुस्लिम अब इस वोट के गणित में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनकर उभरे हैं।
प्रदेश में 18 प्रतिशत मुस्लिम और 12 प्रतिशत ब्राह्मण वोट बैंक है। 30 प्रतिशत का यह बड़ा वोट बैंक वोट की राजनीति में अहम भूमिका निभा सकता है। ब्राह्मण वोट बैंक को जोडऩे के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का अभियान गति पकड़ चुका है। सपा ब्राह्मण-मुस्लिम सम्मेलनों के मार्फत तो बसपा भाईचारा सम्मेलनों के द्वारा इन कौंमों को लुभा रहे हैं। बसपा ने तो बकायदा अपने महासचिव सतीश मिश्रा को पूरी तरह से इस काम में लगा रखा है। वह पूरे प्रदेश में भाईचारा सम्मलेन करा रहे हैं। बसपा की काट के लिये पिछले दिनों सपा ने परशुराम जयंती के मौके पर 12 मई को अयोध्या, काशी मथुरा, वृन्दावन व चित्रकूट से संत महात्माओं को बुलाया। वहीं बसपा ब्राह्मण वोट बैंक को वर्ष 2007 की तर्ज पर अपने खेमे में बनाये रखने की कोशिश कर रही है। पूरे प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलनों के जरिये यह संदेश दिया जा रहा है कि ब्राह्मणों को आरक्षण चाहिए तो केन्द्र में मायावती के नेतृत्व में सरकार का बनना जरूरी है।
वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों ने पत्थर रख लो छाती पर, मोहर लगाओ हाथी पर की मानसिकता को अपना कर बसपा को वोट दिया था, लेकिन प्रोन्नति में आरक्षण के पक्ष में खड़े होकर बसपा ने इस वोट बैंक को नाराज कर लिया। इसका फायदा समाजवादी पार्टी ने उठाया। उसने संसद से सड़क तक प्रोन्नति में आरक्षण का जबर्दस्त विरोध कर ब्राह्मणों को अपने पक्ष में खड़ा करने की मुहिम छेड़ दी। सपा इस मुहिम में कितना सफल होगी यह तो 2014 में ही पता चलेगा, मगर सपा अपने ब्राह्मण सम्मेलनों में यह बात लगातार दोहरा रही है कि किस तरह उसने संसद में बसपा से मोर्चा लेते हुए सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण का विरोध किया।
बात मुस्लिम वोटरों की कि जाये तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक को भाजपा छोड़ सभी दल खासा महत्व देते हैं। यही वजह है कि 18 प्रतिशत के एक मुश्त इस वोट बैंक के लिए कांग्रेस, सपा और बसपा के बीच घमासान मचा है। वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कभी मुस्लिम कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक होता था। अनेकों लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ मुसलमान कांग्रेस के पक्ष में वोट कर भी चुके हैं, लेकिन सपा के उभार के बाद कांग्रेस का मुसलमानों पर एक छत्र राज नहीं रहा। आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस को यूपी में सपा के पनपने के बाद मुस्लिम वोट बैंक बचाने में कामयाबी नहीं मिल सकी। मुसलमानों ने भाजपा के खिलाफ सपा को अपना हथियार बनाया। 2012 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों ने सपा के पक्ष में जमकर वोटिंग की थी। मुसलमानों को लुभाने के लिये सपा खूब पैंतरेबाजी कर रही है। हाजी मोईनुद्दीन चिश्ती के उर्स पर छुट्टी की घोषणा कर दी। गौर करने वाली बात यह भी है कि चिश्ती साहब की दरगाह राजस्थान में है और वहां उनके उर्स पर अवकाश नहीं होता है। बहरहाल, आगामी लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का क्या रुख रहेगा यह बात अभी दावे से नहीं कही जा सकती है। कांग्रेस और सपा मुस्लिमों की समस्याओं को लेकर एक दूसरे के खिलाफ तलवार भांज रहे हैं। कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग की बैठक में प्रदेश अध्यक्ष डॉ. निर्मल खत्री ने दो टूक शब्दों में कहा कि सपा चुनाव के दौरान मुलसमानों से किये वायदों से मुकर रही है, इसी तरह का बयान बाद में बसपा की ओर से भी आया जिससे सपा के नेता बिफर गये। पार्टी की ओर से कहा गया कि बेगुनाह मुस्लिम युवकों को दहशतगर्द करार देकर जेलों में ठूंसने का काम कांग्रेस, बसपा और भाजपा की सरकारों ने किया। सपा सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस पर प्रहार करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। इस बीच सपा ने कोल जाति को आरक्षण देने का सुर्रा छोड़ आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिकश की है जबकि भाजपा अन्य दलों से अलग हिन्दुत्व का कार्ड खेल रही है। वह यूपी में युवा नेता वरूण गांधी, मोदी के वफादार अमित शाह और उमा भारती को आगे कर हिंदुत्व कार्ड चल रही है। आतंकवादियों के विरुद्ध मुकदमे वापसी पर कोर्ट की रोक से भी भाजपा को बल मिला है।
सपा-बसपा और कांग्रेस के मुस्लिम कार्ड से राष्ट्रीय लोकदल भी अछूता नहीं रह पाया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को उतार कर रालोद की राह में मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। रालोद इससे निपटने के लिये किसान-मुसलमान एकजुटता पर काम कर रही है। यह उसका पुराना फार्मूला भी है। रालोद के महासचिव और पूर्व मंत्री कोकब हमीद कहते हैं कि सपा-बसपा का मुस्लिम कार्ड चलने वाला नहीं है। यह दल वर्षों से मुसलमानों को गुमराह कर रहे थे लेकिन अब वह जाग गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब एक दर्जन लोकसभा सीटों पर तीस प्रतिशत की मुस्लिम आबादी राजनैतिक हवा का रुख मोडऩे की ताकत रखती है।
हालांकि पूर्व सांसद और जमीयत उलेमा हिंद के कौमी सदर महमूद मदनी कहते हैं कि मुसलमानों को इंसाफ दिलाने में किस दल ने क्या कदम उठाये, यह बात भी मुस्लिम जनता को पता होनी चाहिए। बसपा सांसद मुनकाद अली भी मुस्लिम वोट बैंक को लेकर काफी मुखर हैं। वह सपा को मुस्लिमों की दुश्मन बताते हैं और कहते हैं कि उसने सिर्फ मुसलमानों को धोखा ही दिया है। उनके मुताबिक सपा ने 18 प्रतिशत आरक्षण देने की बात करके मुसलमानों का वोट हासिल किया और फिर यह वायदा भूल गई। इसके जवाब में सपा अल्पसंख्यक सभा के अध्यक्ष और राज्यमंत्री हाजी रियाज अहमद कहते हैं कि बसपा 20 की जगह 40 मुसलमानों को भी टिकट दे दे, लेकिन उसका भला होने वाला नहीं है। पिछली विधानसभा में बसपा के 34 मुस्लिम विधायक जीते थे, परंतु 34 करोड़ रुपए का बजट भी मुसलमानों के लिये नहीं पास करा पाये।
एक तरफ राजनैतिक दल वोट बैंक की राजनीति को गरमा रहें हैं दूसरी तरफ कुछ नेता व्यक्तिगत तौर पर भी ऐसा कर रहे हैं, यह नेता अपने क्षेत्र के मतदाताओं को मजहब ओैर जाति के आधार पर बांटने में लगे हैं। इसको हालिया घटना से जोड़ कर देखा जा सकता है। लोकसभा के बजट सत्र के अंतिम दिन जब सदन में वन्दे मातरम का गान हो रहा था, तब सपा के डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क उठकर चले गये, जिस पर खासी प्रतिक्रिया भी हुई यहां तक लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने चेतावनी दी कि इसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन डॉ. बर्क पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा, उन्हें तो अपने मजहब के वोट बैंक को संदेश देना था। वोट बैंक की राजनीति में उलझी रहने वाली कांग्रेस, सपा और बसपा ने भी मामले में ठंडी प्रतिक्रिया व्यक्त की। शायद उनके लिये राष्ट्रीय गीत के अपमान का मामला वोट बैंक की राजनीति पर बौना पड़ गया। सभी लोगों के लिए देश से बड़ी राजनीति बनती जा रही है।