03-Mar-2018 08:24 AM
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भ्रष्टाचार के मामले में हमारा देश अपनी छवि सुधार नहीं पाया। भ्रष्टाचार पर सर्वेक्षण करने वाली विश्व प्रसिद्ध संस्था ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की सन 17 की रिपोर्ट जारी हो गई। इसमें निकलकर आया है कि एशिया पैसिफिक क्षेत्र के देशों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार भारत में है। पूरी दुनिया के 180 देशों की तुलना में भी हम अपनी भ्रष्टाचारी छवि को और खराब कर बैठे हैं। इसके पहले सन 2016 में भी हमारे 40 नंबर आए थे जो बहुत बुरी स्थिति को दर्शाते थे। अब 2017 में भी इतने ही नंबर मिले। 180 देशों में हमारा नंबर 81वां आया है। जिस देश में सबसे कम भ्रष्टाचार होता है उसकी रैंक एक होती है। बहरहाल विश्व प्रसिद्ध इस अतंरराष्ट्रीय संस्था टीआई की यह रिपोर्ट अपने देश के मीडिया में ज्यादा दिखाई नहीं दी। हो सकता है कि अपनी बदनामी की रिपोर्ट है इसलिए अपने देश में इसकी चर्चा से बचा गया हो। एक और कारण यह हो सकता है कि देश की बदनामी से सरकार की भी बदनामी होती है। और मौजूदा सरकार के कार्यकाल का यह आखिरी साल है और इसी साल सरकार की छवि के आंकलन सबसे ज्यादा होंगे। दरअसल मौजूदा सरकार अपनी उपलब्धियों का सबसे ज्यादा प्रचार भ्रष्टाचार के मामले में ही करती रही है। सो टीआई की यह रिपार्ट भ्रष्टाचार कम होने के प्रचार पर एक भारी हथौड़े जैसा है।
खास बात ये है कि यह रिपोर्ट 2017 की है। जिस साल की शुरुआत में ही दुनिया भर में अपने पीएनबी घोटाले से भ्रष्टाचार का डंका बज रहा है वह 2018 का साल इस रिपोर्ट में शामिल नहीं है। पीएनबी घोटाला और उससे निकले बैंकों के बड़े घपले घोटाले सन 2018 के हैं। लिहाजा हमें खासतौर पर गौर करना चाहिए कि भ्रष्टाचार के मामले में पिछले साल जो भ्रम था वह बहुत बड़ा भ्रम साबित हुआ है। इस साल की जो रिपोर्ट अगले साल पेश होगी उसमें देश की छवि का अनुमान लगाना कठिन नहीं है। बहुत संभव है कि अगले साल इन्हीं दिनों मीडिया टीआई की इस रिपोर्ट का बेसब्री से इंतजार कर रहा हो।
टीआई ने दुनियाभर में भ्रष्टाचार की नापतोल के लिए जो पद्धति बनाई है वह भ्रष्टाचार के पीडि़त लोगों पर आधारित है। लेकिन आयोजक संस्था इस बात पर नजर रखती है कि विभिन्न देशों में पत्रकारों को धमकाने और जान से मारने, विपक्ष के नेताओं को डराने धमकाने, कानून का पालन कराने वाली संस्थाओं के कर्मचारियों को धमकाने और जान से मार डालने के मामले ज्यादा कहां होते हैं और इसीलिए भ्रष्टाचार का आंकलन करते समय एक नजर इस क्षेत्र के लिहाज से भी डाल ली जाती है। वैसे अपने सर्वेक्षण में इस तरह के विशिष्ट अपराधों को लेखा नहीं जाता। संस्था का ध्यान भ्रष्टाचार के उस रूप पर ही होता है कि घूस या रिश्वतखोरी की क्या स्थिति है। थोड़ा सा गौर करें तो जिस तरह भारत में सिर्फ एक लंगोटी पहने किसान से भी पटवारी और लेखपाल घूस लेने से न चूकता हो तो इस समय भ्रष्टाचार के मामले में भारत की यह सनसनीखेज रूप से खराब रैंकिग कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
इस सर्वेक्षण में अखबारों की उन कतरनों को ज्यादा तरजीह नहीं दी जाती जो सरकारों और कानून का पालन कराने वाली एजंसियों की तारीफ में होती हैं। क्योंकि हर सरकार और कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली एजंसियां बड़ी आसानी से मीडिया में प्रचार करवा ले जाती हैं कि वे भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कितनी मुस्तैदी या चाकचौबंदी से काम कर रही हैं। इस तरह की खबरों को अपनी छवि को बनाने और बचाने का जरिया ही माना जाता है। इसलिए टीआई की सर्वेक्षण पद्धति में आंकड़ों का संकलन द्वितीयक स्त्रोत की बजाए प्राथमिक स्त्रोत के साक्षात्कार से किया जाता है। बहुत ही विश्वसनीय सैंपलिंग टेक्नीक और इंटरव्यू टूल का इस्तेमाल कर सीधे नागरिकों से जाना जाता है कि वे घूस देने के लिए कितने बाध्य या
तत्पर हैं।
एक कमी दिख रही है टीआई में
अगर इस संस्था का ऐलानिया मकसद दुनिया में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाना है तो उसका एक काम यह भी बनता है कि वह भ्रष्टाचार के न्यूनीकरण के उपाय तलाशने का भी काम करे। अभी चार-पांच साल पहले तक वह भ्रष्टाचार की समस्या पर ब्रेन स्टॉर्मिंग और सेमिनार वगैरह में भी दिलचस्पी लेती दिखती थी। मसलन सन 2011 में भारत में भ्रष्टाचार पर एक नेशनल कॉन्फ्रेंस हुई थी। 16 और 17 जुलाई 2011 को कंस्टीट्यूशन क्लब में हुए इस गंभीर विमर्श में यह संस्था सह-आयोजक थी। इस आयोजन में देश में दुर्लभ अपराधशास्त्रियों को भी आमंत्रित किया गया था। लेकिन इधर ऐसे आयोजन कम होते दिख रहे हैं। भले ही यह संस्था एक स्वयंसेवी संगठन है लेकिन अपने 25 साल के इतिहास के सहारे वह इस समय एक विश्वप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता का दर्जा पा चुकी है। यह साल उसकी स्थापना का रजत जंयती वर्ष भी है। उसकी किसी भी कोशिश को कोई भी देश अनदेखा नहीं कर पाएगा।
- कुमार राजेंद्र