03-Mar-2018 08:01 AM
1234786
सूखे बुंदेलखंड में खोदे गए कुएं सिंचाई के लिए उपयोगी नहीं है। कुओं की खुदाई में मापदंड़ों का परिपालन नहीं किया गया है। इससे प्रदेश के सागर, छतरपुर, दमोह, पन्ना और टीकमगढ़ आदि जिलों में सिंचाई के अभाव में फसले बर्बाद हो रही है। महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत कुओं की खुदाई में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। मनरेगा में अधिकारियों और विभाग के जिम्मेदारों द्वारा किस प्रकार आंकड़ों की बाजीगरी दिखाई जा रही है इसका खुलासा एक एनजीओ समर्थन द्वारा किए गए सर्वे में हुआ है। यह रिपोर्ट आने के बाद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग पड़ताल की खानापूर्ति में जुटा हुआ है।
उल्लेखनीय है कि मनरेगा के तहत प्रदेशभर में कपिलधारा के कुओं की खुदाई में कराई गई है। उन कुओं के आवंटन से लेकर खुदाई तक में भारी घोटाला हुआ है। सुर्खियों में आने के बाद भी प्रदेश सरकार इस महाघोटाले का सच सामने लाने से कतराती रही। जांच की औपचारिकताएं ही की जाती रहीं। जांच गुम होती गई। बड़ी मछलियों को साफ बचा लिया गया। पंचायत स्तर से लेकर अधिकारी और बैंक तक इस घपले में शामिल रहे। लेकिन किसी पर कार्रवाही नहीं हुई। इन जिलों में मनरेगा के तहत हो रहे कार्यों की लगातार शिकायतें पहुंच रही हैं। वर्तमान में 13767 शिकायतें अधर में लटकी हुई हैं। अभी इन शिकायतों का निराकरण हुआ की नहीं कुओं की खुदाई का मामला सामने आ गया है। पन्ना जनपद की पांच ग्राम पंचायतों में पूर्ण बताए जा रहे 218 कपिल धारा कुओं में 200 से भी अधिक अधूरे पाए गए हैं। जिन कुओं को पूरा बताया जा रहा है उनके खातों में बड़ी मात्रा में राशि भी बकाया दिखाई जा रही है। पूरे बताए जा रहे कामों की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) भी अपलोड नहीं की गई है।
जानकारी के अनुसार पन्ना जिले में मनरेगा की स्थिति बहुत ही दयनीय है। सात करोड़ से अधिक का भुगतान बकाया है। उसके बाद 13 हजार से अधिक रिजेक्ट ट्रांजेक्शन में करीब एक करोड़ रुपए फंसा है और नौ हजार से अधिक काम अधूरे हैं। इसके बाद भी जिन कामों को पूरा बाताया जा रहा है उनमें भी बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। समाजसेवी संस्था समर्थन की ओर से पन्ना जनपद के पांच ग्राम पंचायतों में कपिलधारा कूप योजना के तहत खोदे गए कुओं का सर्वे के माध्यम से भौतिक सत्यापन किया गया। इसमें जो सच्चाई समाने आई है वह चौंकाने वाली है। समर्थन संस्था के संभागीय समन्वयक ज्ञानेंद्र तिवारी ने बताया कि उन्होंने एक अध्ययन रिपोर्ट की कॉपी जिला पंचायत को भी सौंपी है। कलेक्टर को भी मामले की जानकारी दी गई है।
सर्वे रिपोर्ट में पाया गया कि करीब 66 फीसदी कुओं में मुंडेर नहीं बनाई गई है। उन्हें जमीन के स्तर तक बनाने के बाद छोड़ दिया गया है। ऐसे कुएं आगामी बारिश के दिनों में मिट्टी के कटाव के कारण ढह सकते हैं। जिम्मेदारों द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। किसानों का कहना है कि यदि उनके अधूरे कुओं को पूरा कर दिया जाए तो सैकड़ों एकड़ की फसल की सिंचाई हो सकती थी। किसानों ने बताया कि कई कुएं तो ऐसे हैं कि उन्हें देखने के बाद लगता है कि किसी उपयोग के तो हैं नहीं उनके कारण खेत का एक कोना जरूर बर्बाद हो गया। जिन कुओं की गहराई 30 फीट या उससे कम है उनमें से किसान खेतों की सिंचाई ही नहीं कर पा रहे हैं। जिन कुओं का काम पूरा होना बताया जा रहा है उनमें से अधिकांश की भी गहराई 25 फीट से अधिक नहीं है, जबकि नियमानुसार कुओं की गहराई 35 फीट से 40 फीट तक होना चाहिए। ऐसे में कुएं गर्मी की दस्तक के साथ ही सूख जाते हैं। ऐसे में यहां लगातार सिंचाई की समस्या बनी हुई है।
इस तरह होता रहा भ्रष्टाचार
जानकारी के अनुसार, कागजों में कुएं खोदने के इस भ्रष्टाचार में ग्राम पंचायत के जिम्मेदार बुनियाद तैयार करते रहे और उपयंत्री के फर्जी मूल्यांकन की रिपोर्ट से गबन का खाका तैयार होता रहा। मनरेगा की मजदूरी बैंक खातों में जमा होती है इसलिए फर्जी मस्टर रोल के आधार पर मजदूरों के बैंक खातों से बैंक कर्मियों की मिली-भगत से राशि आहरित कर ली गई। इस खेल में कमीशन का खूब बंदरबांट किया जाता रहा। जानकार बताते हैं कि सरपंच, सचिव तो बदनाम है पर असली खेल तो उपयंत्रियों का होता है। कई कुएं ऐसे हैं जिनका कार्य पूर्ण हो चुका लेकिन उपयंत्री कमीशन न मिलने तक इन्हें कागजों में अपूर्ण ही बताते रहे। इन्हीं कारणों से बुंदेलखंड में रोजगार की गारंटी मिलने के बाद भी बड़ी तादाद में पलायन होता है क्योंकि मजदूरों को समय पर मजदूरी न मिलने से इस योजना से मजदूरों का मोह भंग होता गया। केंद्र की राशि से संचालित इस जल संरक्षण की योजना में प्रदेश के हर जिले में अनियमितता की गई है। इन अनियमितताओं की जांच पर जांच भी हुई, लेकिन हैरानी की बात यह है कि किसी पर आंच तक नहीं आई।
-सिद्धार्थ चौधरी