भाजपा की कलह से परेशान वसुंधरा
15-Jun-2013 07:42 AM 1234789

भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी कलह ने राजस्थान में सत्ता के सपने देख रहीं वसुंधरा राजे को परेशान कर दिया है। हालात यह हो गए हैं कि कार्यकर्ता अब खुलेआम एक-दूसरे पर कुर्सी उछालते हैं और गाली-गलौच करते हैं। पिछले दिनों अलवर में एक बैठक के दौरान यही नजारा देखने को मिला जब पूर्व कैबिनेट मंत्री नटवर सिंह के सुपुत्र जगत सिंह और जिलाध्यक्ष सुरेश शर्मा के समर्थकों में जमकर हाथापाई हो गई। यहां तक कि कुर्सियां भी फेंक दी गईं। इस हादसे ने भाजपा की अंदरूनी कलह को सड़क पर ला दिया है। भीतरी कलह का आलम यह है कि कई नेता ऑफ द रिकार्ड सुराज संकल्प यात्रा का विरोध भी करने लगे हैं और मीडिया में इस तरह से खबरें लीक की जा रही हैं कि वसुंधरा कार्यकर्ताओं से तालमेल बिठाने में असफल रही हैं। इस सारे खेल के पीछे कौन है यह तो ज्ञात नहीं है, लेकिन इसने कप्तान सिंह सोलंकी को परेशान कर दिया है जो प्रदेश के प्रभारी हैं। पूर्व सांसद किरीट सोमैया और राज्य सभा सांसद भूपेंद्र सिंह यादव भी पार्टी की इस अंदरूनी राजनीति को समझने में नाकामयाब रहे हैं। सोमैया चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, लेकिन लगता है उन्हें पार्टी का हिसाब-किताब सही तरीके से समझ नहीं आ रहा है। इसका लाभ स्वाभाविक रूप से गहलोत को मिल रहा है। जिन्होंने भाजपा की कलह को अपना हथियार बनाकर लड़ाई तेज कर दी है। गहलोत का कहना है कि वरिष्ठ नेता और राजस्थान में भाजपा को मजबूत करने में जुटे गुलाबचंद कटारिया से वसुंधरा राजे को कोई सहानुभूति नहीं है। राजे ने कटारिया को जमीन के मामले में बदनाम किया और उन्हें नीचा दिखाया। पिछले साल कटारिया जब मेवाड़ में यात्रा निकालने लगे तो उन्हें धमकाया गया। दरअसल गहलोत भाजपा की कमजोरी पर प्रहार कर रहे हैं। उधर वसुंधरा भी गहलोत पर वार करने का कोई मौका नहीं चूक रही हैं। संघ परिवार भी गहलोत को घेरने में लगा हुआ है। लेकिन गहलोत ने हाल ही में अपनी स्थिति में गुणात्मक सुधार भी कर लिया है, जिसके चलते अब उन्हें पराजित करना उतना आसान नहीं है।
साढ़े चार साल पहले गहलोत जब प्रदेश के दूसरी बार सीएम बने थे, तो वह कोई कांग्रेस का कमाल नहीं बल्कि गहलोत का जादू और उनकी भलमनसाहत का करिश्मा था। उधार के आधार पर बनी गहलोत की सरकार को पहले दिन से ही अब गई, तब गई की तरह से देखा जाता रहा। फिर जिस सरकार का विपरीत भविष्य उसके बनने से पहले ही लिखा जा चुका हो, वह आज विपक्ष से बिल्कुल बराबरी का मुकाबला कर रही हो, तो उसके पीछे गहलोत की राजनीतिक सोच का जादू ही माना जा सकता है। गहलोत की काबिलियत का जलवा यह भी है कि उन्होंने अपनी कोशिशों से एक लाचार, बेबस और एक कमजोर सरकार को मजबूत शख्ल बख्श कर बीजेपी और वसुंधरा से अपने मुकाबले के बारे में लोगों की धारणा ही बदल दी है। सीएम के तौर पर दूसरे दौर के दसवें साल में गहलोत अपने राजनीतिक जीवन का सबसे शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। पर उधर, वसुंधरा राजे बीजेपी के बिखराव में अपनी तस्वीर तलाशती नजर आ रही हैं। लेकिन तस्वीरों की तासीर यही है कि बिखराव के बियाबान में वे अकसर बरबाद हालत में ही मिला करती है, इसका क्या किया जाए! बीजेपी इसीलिए बेचैन है। वैसे, बेचैनी कांग्रेस के नेताओं में भी है। उनको डर है कि इस बार अगर फिर से कांग्रेस ने सरकार बना ली तो सेहरा सिर्फ अशोक गहलोत के सिर पर ही बंधेगा। सारी फूमालाएं भी उन्हीं को मिलेंगी। दूसरे किसी को भी माला छोड़कर फूल तो क्या, पंखुड़ी भी नहीं मिलेगी। मंच भी गहलोत का, काम भी उनका, लोग भी उनके और यात्रा में भी वे ही वे। हर तरफ तेरा जलवा की तर्ज पर गहलोत ही गहलोत। दूसरे किसी के लिए कोई जगह ही नहीं है। दरअसल, गहलोत की सरकारी योजनाओं की जनता को जानकारी देने की इस (कांग्रेस संदेश) यात्रा ने कब उनके निजी रोड़ शो का रूप धर लिया किसी को समझ में ही नहीं आया। पर निश्चित रूप से गहलोत शुरू से ही समझ रहे होंगे। सो, शुरू से ही सबको अलग रखा। जिसको आना हो, अपने अपने इलाके में आओ। गहलोत पूरे प्रदेश में, बाकी लोग सिर्फ अपने इलाके में। गहलोत की यात्रा ने जो प्रदेशव्यापी माहौल बनाया है, उससे राजस्थान में ही नहीं देश में भी उनकी भविष्य की राजनीति को सुरक्षित कर दिया है। उनके पास अपनी योजनाओं का अंबार है। वे उनका बखान नहीं, प्रचार कर रहे हैं। और निशाने पर बीजेपी को रखे हुए है। लेकिन मजबूरी यह है कि वह जिन हथियारों के सहारे लड़ रही है, उनकी धार के निर्माता भी गहलोत ही है। बीजेपी सरकार की योजनाओं के खिलाफ खूब बोल रही है, जो गहलोत की ही बनाई हुई हैं। मतलब कांग्रेस में तो गहलोत है ही, बीजेपी में भी गहलोत। इसके अलावा बीजेपी के पास कुछ है ही नहीं। बीजेपी का गहलोत की योजनाओं का विरोध करना जनता को सुहा नहीं रहा है।  कुछेक कांग्रेसियों को इस बात पर पता नहीं क्यूं हैरत है कि गहलोत के संबोधन में प्रदेश की योजनाओं और उपलब्धियों का प्रचार ज्यादा और केन्द्र सरकार की उपलब्धियों का जिक्र कम होता है। लेकिन गहलोत सही है क्योंकि चुनाव प्रदेश का है, दिल्ली का नहीं। दिल्ली में सोनिया गांधी से लेकर राहुल भैया और सारे केंद्रीय नेताओं को पता है कि राजस्थान में कांग्रेस की नैया के खिवैया सिर्फ और सिर्फ अशोक गहलोत ही हैं।

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