16-May-2013 07:58 AM
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राजस्थान में अब तक का सबसे बड़ा चुनावी अभियान चल रहा है। वसुंधरा और गहलोत तो अपने-अपने रथों और उडऩ खटोलों पर सवार हैं ही। तीसरे विकल्प का दावा कर रही नेशनल पीपुल्स पार्टी

को भी अच्छी खासी फंडिंग हुई है। इसका प्रमाण यह है कि निर्दलीय सांसद रहे डॉ. किरोड़ी लाल मीणा हेलीकाप्टर के माध्यम से धुआंधार चुनावी सभाएं कर रहे हैं। यह बड़े कौतूहल का विषय है कि मीणा के पास इतने संसाधन कहां से उत्पन्न हुए। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि मीणा को वोट काटने के लिए तैनात किया गया है और जिन्होंने तैनात किया है वे ही उनके हेलीकाप्टर का खर्चा उठा रहे हैं। खैर यह चुनाव आयोग का विषय है। फिलहाल अशोक गहलोत अपने शासन की उपलब्धियों के भरोसे जनता को लुभाने में लगे हैं। गहलोत का कहना है कि 17332 करोड़ रुपए की वार्षिक योजना ने प्रदेश में खुशहाली का वातावरण पैदा किया है इसके अतिरिक्त किसान आयोग का गठन, छह नए सुपर क्रिटिकल ताप विद्युत घरों की स्थापना और बीपीएल परिवारों के लिए निशुल्क चिकित्सा सुविधा तथा किसान आयोग के गठन सहित कई फैसलों ने राजस्थान की तकदीर बदल दी है।
गहलोत जो कुछ बोलते हैं उसमें आंकड़ों के साथ-साथ जमीनी सच्चाई भी दिखाई दे रही है, किंतु पिछले पांच वर्षों के दौरान राज्य में सत्तासीन दल के भीतर जो नाटक हुआ है उसका खामियाजा कहीं न कहीं भुगतना ही पड़ेगा। उधर यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के रिकार्ड ने भी गहलोत के लिए परेशानी उत्पन्न की है। इसके साथ ही गड़े मुर्दे उखाडऩे की कवायद शुरू हो गई है। वसुंधरा कार्यकाल में हुई गड़बडिय़ों की जांच के लिए गठित किए गए माथुर आयोग का मामला भी अब जोर पकड़ रहा है। गहलोत का कहना है कि जब वसुंधरा मुख्यमंत्री थी तो उन्होंने अपने ही मंत्रियों की जासूसी करवाई। लंदन में मकान खरीदा, धौलपुर के निजी महल में 1520 करोड़ रुपए का कार्य करवाया और 90 बी के घोटाले को अंजाम दिया तथा राज्य में जातिवाद का जहर घोला। खास बात यह है कि जिस डीएलएफ पर कभी राबर्ड वाड्रा को उपकृत करने के आरोप लग चुके हैं उसी डीएलएफ को गहलोत लपेटे में लेते हुए कह रहे हैं कि उसे वसुंधरा के कार्यकाल में सस्ती दरों पर जमीन दी गई। गहलोत कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला के साथ गुर्जर आरक्षण आंदोलन में वसुंधरा राजे की मिलीभगत का आरोप भी लगा रहे हैं। इन आरोपों से चुनावी माहौल गरमा गया है।
उधर सुराज संकल्प यात्रा में वसुंधरा राजे के तेवर अब ज्यादा ही तीखे हो गए हैं। उन्होंने कांग्रेस और मुख्यमंत्री गहलोत को जमकर निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में मौजूदा सरकार अब तक की सबसे भ्रष्टतम सरकार के तौर पर पहचानी जाएगी। उनका आरोप है कि गहलोत भी भ्रष्ट मुख्यमंत्री की श्रेणी में आ गए हैं। कांग्रेस डराने की फितरत में है लेकिन वे डरने वाली नहीं हैं। गहलोत अब सवाल कर रहे हैं कि मैं चार साल तक कहां थी तो गोपालगढ़ में मुसलमानों पर गोलियां चलवा रहे थे वहां लोगों का दुख दर्द बांट रही थी। इसी तरह जोधपुर में जब नकली दवाओं से तीस प्रसूताओं की मौत हो गई थी तो उनके परिजनों के आंसू पौछने का काम मैं कर रही थी। उन्होंने आरोप लगाया कि गहलोत सरकार सिर्फ फीता काटो सरकार बन गई है।
सांसद किरोणीलाल मीणा भी चुनाव की इस वैतरणी में अपनी नैया पार लगाना चाहते हैं। हालांकि उनका कोई विशेष जनाधार राज्य में है नहीं। लेकिन जातिवाद की राजनीति में वे एक माहिर खिलाड़ी बनते जा रहे हैं। जिसका असर सत्तासीन दल पर नकारात्मक भी पड़ सकता है। भारतीय जनता पार्टी की वसुन्धरा राजे राजस्थान सरकार में केबीनेट मंत्री रहे डॉ. किरोड़ी लाल मीणा नं भाजपा से निकाले जाने के बाद अपने क्षेत्र में डॉ. मीणा ने ये सिद्ध करने का प्रयास किया कि उनकी इच्छा या उनके समर्थन के बिना उनके क्षेत्र में कोई भी पार्टी जीत नहीं सकती है। वे इसमें कुछ सीमा तक सफल भी रहे और अपनी अपनढ़ पत्नी को कॉंग्रेस की अल्पमत की अशोक गहलोत सरकार में राज्य मंत्री बनवाकर अपनी राजनैतिक ताकत को सिद्ध भी किया। प्रारंभ से ही इसके साथ-साथ डॉ. मीणा ने अपने आप को राजस्थान की मीणा अजजा का स्वयंभू नेता सिद्ध करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, जिसके एवज में डॉ. मीणा को मीणाओं ने अनेक बार, अनेक क्षेत्रों से लोकसभा और विधानसभा में पहुँचाकर अपना पुरजोर समर्थन भी दिया। इसी बीच डॉ. मीणा के नेतृत्व में मीणाओं का गुर्जर जाति से टकराव हुआ। जिसमें गुर्जरों के अलावा अनेक मीणा भी मारे गये। इसके उपरान्त भी डॉ. मीणा सबकुछ भुलाकर राजनीति के लिये गुर्जरों से हाथमिलाकर अपनी राजनीति की नयी पारी की शुरुआत करने निकले। जिसके तहत उन्होंने दक्षिणी राजस्थान में आदिवासी बहुल इलाके में अपनी गोटियॉं बिछायी, लेकिन स्थानीय नेताओं के वर्चस्व के कारण इसमें वे पूरी तरह से सफल नहीं हो सके और अंतत: उन्हें उस क्षेत्र से बेदखल करके भगा दिया गया। इसके विरोध में डॉ. मीणा ने अनशन का सहारा लिया, जिसमें राज्य मंत्री पद पर आसीन उनकी पत्नी ने भी साथ दिया और अन्तत: इसी के चलते उनकी पत्नी को राज्य मंत्री का पद गंवाना पड़ा। कुल मिलाकर स्थिति ये है कि प्रारंभ में संघ के आदर्शों पर चलने वाले डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने भाजपा और कॉंग्रेस दोनों ही सरकारों में पद और सत्ता का लुत्फ उठाया और इस बीच दोनों ही सरकारों की आलोचना भी की, ऐसे में किसी भी बड़े दल में उनकी पटरी बैठना नामुमकिन हो गया। ऐसे हालात में स्वाभाविक है कि डॉ. मीणा अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिये अपनी निजी राजनैतिक जमीन तैयार करने में जुट गये।