17-Feb-2018 09:58 AM
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राजस्थान में भाजपा की हार के आंसू सूखने से पहले ही चुनाव आयोग ने यूपी व बिहार में उपचुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। राजस्थान में लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट पर करारी शिकस्त खाने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने सूबे में भाजपा को जिताने की बड़ी चुनौती है। योगी के लिए गोरखपुर की सीट सबसे प्रतिष्ठा का प्रश्न है। भाजपा से लेकर सीएम योगी के लिए यह सीट करो या मरो वाली है। सात बार से अधिक समय तक लगभग तीन दशकों तक यह सीट गोरक्षपीठ के महंत के ही कब्जे में रही है।
गोरखपुर सीट भाजपा का अभेद्य दुर्ग मानी जाती है। गोरखपुर सीट की जीत को लेकर भाजपा काफी हद तक आश्वस्त है, लेकिन चिंता का सबब फूलपुर सीट है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से खाली हुई फूलपुर सीट पहले कांग्रेस फिर सपा का गढ़ रही है। भारत के संसदीय इतिहास में भाजपा यहां सिर्फ एक बार चुनाव जीत सकी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य ने इस सीट पर जीत दर्ज कर सपा के वर्चस्व को तोड़ दिया था इसलिए इस सीट को बरकरार रखने की बड़ी चुनौती यूपी में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी की होगी। गोरखनाथ सीट से पहले योगी आदित्यनाथ सांसद थे। पिछले साल उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था। योगी 1998 से लगातार बीजेपी की टिकट पर गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। करीब तीन दशक बाद ऐसा पहली बार होगा जब गोरखपुर संसदीय सीट पर कोई ऐसा नेता प्रतिनिधित्व करेगा जो गोरक्षपीठ से संबंधित नहीं होगा। इस सीट को जीतने के लिए विपक्षी दलों ने तमाम रणनीति अपनाईं, लेकिन कभी भी उनकी चाल सफल नहीं हो पाई। देश के राजनैतिक इतिहास में फूलपुर संसदीय सीट का खास स्थान है। इस सीट से ही देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जीत दर्ज की थी। इसी सीट से कांग्रेस के टिकट पर वीपी सिंह भी जीते थे। वे भी बाद में देश के प्रधानमंत्री बने। इससे पहले फूलपुर में दो बार उपचुनाव हो चुका है। यह तीसरी बार होगा जब यहां चुनाव के लिए 11 मार्च को वोट डाले जाएंगे। वर्ष 1952 से अब तक इस सीट पर 18 बार चुनाव हो चुके हैं। हालांकि, विधानसभा के तौर पर फूलपुर का गठन पहली बार 2012 में ही हुआ। विधानसभा में तो फिलहाल इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व समाजवादी पार्टी के सईद अहमद करते हैं, जबकि लोकसभा में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य हैं। फूलपुर कई बार अप्रत्याशित परिणाम देने और कई बड़े नेताओं को हराने के लिए मशहूर रहा है।
2017 विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो वो विपक्ष के लिए राहत भरी है। आंकड़ें बताते हैं कि बीएसपी, एसपी और कांग्रेस अगर तीनों एक साथ विधानसभा चुनाव लड़ते तो कहानी कुछ और ही होती। दरअसल, फूलपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2017 विधानसभा में अगर एसपी, बीएसपी कांग्रेस के कुल वोटों को जोड़ लें, तो वो बीजेपी से डेढ़ लाख ज्यादा बैठते हैं। फूलपुर में सबसे अधिक पटेल फिर मुस्लिम मतदाता हैं। इस सीट पर यादव मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है। अगर बसपा ने यहां अपना प्रत्याशी नहीं उतारा तो फिर सपा को हराना भाजपा के लिए चुनौती बन जाएगा। यूपी के उपचुनाव आदित्यनाथ के लिए परीक्षा साबित होगी क्योंकि इन्हें उनकी सरकार की लोकप्रियता से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से हुई बच्चों की मौत, कासगंज दंगा और नोएडा फर्जी इनकाउंटर मामला सीएम योगी की छवि को खराब कर सकता है। ऐसे में अब यह दोनों सीट सीएम आदित्यनाथ योगी के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। दोनों सीटों के लिए विपक्ष में फिलवक्त एका होता नहीं दिख रहा है। सपा मुखिया अखिलेश यादव कह चुके हैं कि सपा दोनों सीटों के लिए तैयारी कर रही है। बसपा का कहना है कि उसका इतिहास रहा है कि वह उपचुनाव में उम्मीदवार खड़े नहीं करती। ऐसे में अगर कांग्रेस के नेतृत्व में साझा उम्मीदवार मैदान में उतरता है तो वह उसे समर्थन कर सकती है। कांग्रेस की स्थिति साफ नहीं है। वह उम्मीदवार खड़ा करेगी या फिर साझा उम्मीदवार को समर्थन यह वक्त ही बताएगा। लेकिन यह जरूर है कि बिखरा विपक्ष बीजेपी की राह आसान होगी।
पूरे देश की निगाह यूपी पर
यूपी की इन दोनों सीटों के नतीजों पर देशभर की नजरें टिक गई हैं। दरअसल इस उपचुनाव से आगामी 2019 के आम चुनाव का आंकलन किया जा रहा। अगर विपक्ष इस सीट पर विजय पताका फहरा देगा तो उसे कहने का मौका मिल जाएगा कि अब यूपी की जनता बीजेपी सरकार से नाखुश है, जिसका नतीजा चुनाव में साफ देखने को मिला, लेकिन बीजेपी विपक्ष को ऐसा कहना का मौका नहीं देना चाहती है यहीं वजह है कि उपचुनाव के लिए पार्टी अभी से तैयारी में लग गई है। चुनाव नतीजे योगी सरकार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी बेहद अहम है। चुनाव नतीजों की तारीख 14 मार्च के ठीक पांच दिन बाद योगी सरकार का एक साल पूरा होगा। उपचुनाव के नतीजे योगी सरकार के पहले साल के जश्न में रंग जमाएंगे या उसका रंग फीका करेंगे यह देखना दिलचस्प होगा।
-मधु आलोक निगम