17-Feb-2018 09:51 AM
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भाजपा को गुजरात चुनाव में कांग्रेस से मिली कांटे की टक्कर और फिर राजस्थान में करारी हार के बाद शिवराज कैबिनेट में जो विस्तार हुआ है वह सभी को आश्चर्य चकित किए हुए है। क्योंकि इस विस्तार में कई मापदंडों को दरकिनार किया गया है। दरअसल, जातिगत समीकरण साधते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीन नए मंत्री अपने कुनबे में जोड़े हैं। नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाजा नारायण सिंह कुशवाहा, जालम सिंह पटेल और बालकृष्ण पाटीदार सिर्फ नौ महीने के लिए मंत्री बने हैं। कहा जा रहा है कि मुंगावली और कोलारस उपचुनाव को देखते हुए मुख्यमंत्री ने यह दांव खेला है।
मंत्रिमंडल के इस विस्तार में जातियों को साधने का प्रयास तो किया गया, लेकिन इससे भौगोलिक संतुलन और बिगड़ गया। प्रदेश के कई जिले ऐसे हैं जहां से कोई विधायक मंत्री नहीं है, वहीं कई जिले ऐसे हैं, जहां से एक नहीं तीन-तीन मंत्री हैं। पूरे मंत्रिमंडल को देखा जाए तो 26 जिलों को प्रतिनिधित्व मिला है, जबकि 25 जिले मंत्री विहीन हैं। दरअसल, मंत्रिमंडल का विस्तार कर पिछड़े वर्ग से नाता रखने वाले तीन विधायकों को मंत्री बनाया है, ताकि कोलारस और मुंगावली के पिछड़ा वर्ग को लुभाया जा सके। हालांकि भाजपाई यह स्वीकार नहीं कर रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक अब उनकी कैबिनेट ज्यादा संतुलित हो गई। भाजपा की राजनीति के जानकारों का कहना है कि भाजपा ने पिछड़ा वर्ग को साधने के हिसाब से तीन मंत्रियों को शपथ दिलाई, लेकिन आदिवासी और अनुसूचित जाति वर्ग को शामिल नहीं किए जाने से नेताओं और जनता दोनों में ही नाराजगी बढ़ी है। साथ ही क्षेत्रीय संतुलन भी बिगड़ा है। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र पर भाजपा मेहरबान दिखी है यहां से शिवराज कैबिनेट में सात मंत्री हो गए हैं। केंद्र में भी ग्वालियर को प्रतिनिधित्व मिला हुआ है। हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह भी इसी इलाके से हैं। वहीं विंध्य से तुलना की जाए तो वहां से सिर्फ दो मंत्री बनाए गए हैं। 66 विधानसभा क्षेत्र वाले मालवा-निमाड़ से मात्र पांच मंत्री हैं। रतलाम, धार, मंदसौर अलीराजपुर और झाबुआ के पूरे आदिवासी बेल्ट से कोई भी मंत्री नहीं है। इंदौर से भी किसी को मंत्री बनने का मौका नहीं मिल पाया। छिंदवाड़ा-सिवनी जैसे जिले नेतृत्वविहीन हैं।
जानकारों का कहना है कि गुजरात के विधानसभा चुनाव और फिर अभी हाल में राजस्थान के उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। भाजपा इन दोनों ही राज्यों के ग्रामीण इलाकों में काफी पिछड़ी है। यह बात मध्यप्रदेश की भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर असर कर रही है। यही कारण है कि उन्होंने कांग्रेस के पिछड़े वर्ग के नेता केपी यादव को भाजपा में शामिल किया और अब जिन तीन विधायकों- नारायण सिंह कुशवाहा, जालम सिंह पटेल और बालकृष्ण पाटीदार को मंत्री बनाया है, वे भी पिछड़े वर्ग से ही आते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों से आ रहे चुनाव नतीजे भाजपा का उत्साहवर्धन करने वाले तो नहीं कहे जा सकते। इसके चलते मुख्यमंत्री चौहान के लिए भी राज्य के दो उपचुनाव महत्वपूर्ण हो गए हैं। वे हर हाल में इन्हें जीतना चाहते हैं, ताकि पार्टी और हाईकमान को यह संदेश जाए कि चौहान का प्रभाव राज्य में कम नहीं हुआ है और वह पार्टी के भीतर के विरोधियों को भी चुप करा सकेंगे। यही कारण है कि पिछड़े वर्ग के ज्यादा से ज्यादा वोट पाने के लिए मंत्रिमंडल विस्तार में पिछड़ा वर्ग के विधायकों को स्थान दिया गया है।
सरकार जातीय समीकरणों के लिए भले ही संजीदा बनने की कोशिश कर रही हो, लेकिन उसका अंकगणित खुद ही सवालों के घेरे में आ गया है। प्रदेश की अगर ओबीसी आबादी की बात करें तो यह पचास फीसदी से ज्यादा है और पिछड़े वर्ग के सिर्फ तीन मंत्री सरकार में हैं। जबकि विस्तार में जिन तीन मंत्रियों को शामिल किया गया है, उनकी आबादी प्रदेश में सिर्फ नौ फीसदी है। ऐसे में सवाल है कि क्या सरकार कहीं आंकलन में कमजोर तो नहीं रह गई? यह सवाल इसलिए खड़ा हो गया है कि मध्यप्रदेश में जातीय समीकरणों से इतर राजनीति होती आई है। लेकिन पहली दफा भाजपा ने खुलकर जातीय समीकरणों की राजनीति करने की कोशिश की है और उन समीकरणों में कई समाजों ने विरोध शुरू कर दिया है।
यह बड़ा ही अजब संयोग कहा जाएगा कि मालवा के पाटीदारों को साधने के लिए भाजपा ने बालकृष्ण पाटीदार को खरगोन से चुना है। ऐसे में उनसे पूरे पाटीदारों को साधने की जो कोशिश भाजपा ने की है, वह खुद ही सवालों के घेरे में आ गई है। आखिर पाटीदारों का नेता चुनने के लिए कौन सी रणनीति के तहत भाजपा ने काम किया है। जबकि असल नेताओं के तौर पर पाटीदारों के बीच में जगदीश देवड़ा और यशपाल सिसौदिया कर रहे हैं। जबकि दोनों को मंत्रिमंडल के प्रमुख दावेदारों में माना जाता है, लेकिन सरकार ने दोनों को ही निराश किया। यह दोनों नेता पाटीदार बाहुल्य इलाकों की राजनीति मंदसौर से करते हैं। लोधी वोट को संभालने के लिए अभी तक कुसुम महदेले का चेहरा भाजपा आगे करती थी, लेकिन कहा जा रहा है कि उनकी विदाई की तैयारियां शुरू हो गई है। उम्र भी एक वजह है और दूसरा उनका काम भी। लेकिन उनका उत्तराधिकारी जिस जालम सिंह पटेल को चुना गया है, वह सवालों में है। लोधी वोट को संभालने के लिए भाजपा ने प्रहलाद पटेल के भाई जालम सिंह पटेल को चुना है। उन्हें राज्यमंत्री के तौर पर सरकार में जगह दी गई है। लेकिन सवाल यही है कि एक मंत्री अनूप मिश्रा पर हत्या का आरोप लगने भर से उन्हें मंत्रिमंडल से रवाना करने वाले शिवराज ने आखिर जालम को क्यों चुना? जालम पर अब तक 33 मामले दर्ज हो चुके हैं, जिनमें हत्या का प्रयास तक के मामले शामिल हैं। हालांकि कुछ मामलों में वह कोर्ट से बरी भी हो चुके हैं, लेकिन उनकी इमेज पूरे इलाके में एक माफिया की है। कुछ मामलों में वह फरार भी घोषित हो चुके हैं, बावजूद इसके उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल कर सरकार ने आखिर कौन सा संदेश देने की कोशिश की है।
जिन लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए प्रबल दावेदार माना जा रहा था, उनमें जगदीश देवड़ा, यशपाल सिसौदिया, रंजना बघेल, महेंद्र हार्डिया, चौधरी चंद्रभान सिंह, गोपीलाल जाटव, केदारनाथ शुक्ला, ओमप्रकाश सकलेचा, नानाभाऊ मोहाड़ हैं। यह वह लोग हैं जो अपने इलाकों में न केवल प्रभाव रखते हैं, बल्कि मौके—बे—मौके पर सरकार के लिए मजबूती से खड़े रहे हैं। कोई पांच बार का विधायक है तो कोई अपने फन में माहिर है। लेकिन जातिगत समीकरणों के चलते इन्हें सरकार ने किनारे कर दिया। ऐसे में यह साफ होता है कि फिलहाल भाजपा की पहली प्राथमिकता मुंगावली और कोलारस उपचुनाव जीतना है।
ताई और भाई की रस्साकशी
मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल के बहुप्रतीक्षित विस्तार में एक बार इंदौर को निराशा हाथ लगी है। तमाम राजनीतिक कयासों के बीच आखिरकार इंदौर से किसी भी विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया। इंदौर से सुदर्शन गुप्ता और रमेश मेंदोला के नाम हर बार की तरह इस बार भी मंत्री पद की रेस में आगे बताए जा रहे थे, लेकिन ऐन वक्त पर दोनों का नाम इस सूची से कट गया। माना जा रहा है कि इंदौर में ताई यानी स्थानीय सांसद सुमित्रा महाजन और भाई यानी कैलाश विजयवर्गीय के बीच राजनीतिक खींचतान के चलते इंदौर से किसी को मंत्री पद से नवाजा नहीं गया। इंदौर क्षेत्र क्रमांक एक से विधायक सुदर्शन गुप्ता को ताई के खेमे की नुमाइंदगी करते हैं। वहीं, इंदौर क्षेत्र क्रमांक दो से विधायक रमेश मेंदोला, कैलाश विजयवर्गीय के करीबी हैं। ऐसे में ताई और भाई के बीच राजनीतिक रस्साकशी के चलते शिवराज सिंह चौहान ने सेफ खेलते हुए इंदौर को एक बार फिर मंत्री पद से दूर रखा है। इससे जिले के भाजपा कार्यकर्ताओं में नाखुशी है। शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट में 2008 के बाद से केवल कैलाश विजयवर्गीय ही इंदौर जिले की नुमाइंदगी करते रहे हैं।
-कुमार राजेंद्र