17-Feb-2018 09:38 AM
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महाराष्ट्र में 11,700 दलित और आदिवासी लोगों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है। दरअसल पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया था कि जिन लोगों ने फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी या दाखिला लिया है, तो उनकी नौकरी या डिग्री रद्द की जाए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से महाराष्ट्र सरकार इस समय मुश्किल में आ गई है। सात महीने बीतने के बाद अब महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लागू करने का दबाव है। राज्य में करीब 11,700 ऐसे सरकारी कर्मचारी हैं, जिन्होंने फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर दलित या आदिवासी कोटे में नौकरी हासिल की थी।
महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति (एसटी) कोटे के तहत 11,700 लोगों ने फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी ली हैं। अब सरकार ये नहीं समझ पा रही है कि इतने लोगों के साथ क्या किया जाए। सरकारी नौकरियों के लिए फ्रॉड किया जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र प्रशासन के लिए नौकरी में फर्जीवाड़े की इतनी बड़ी संख्या सामने आना आंखे खोलने वाला है। अधिकारियों और सरकार के सामने यह एक बड़ा सवाल है कि आखिर इतने सारे लोगों ने फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए कैसे नौकरी ले ली। इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की चौतरफा आलोचना भी हो रही है और प्रशासन को ये भी नहीं समझ आ रहा है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कैसे लागू किया जाए।
सबसे ज्यादा परेशानी वाली बात यह है कि ज्यादातर कर्मचारी 20 या इससे ज्यादा साल से नौकरी में हैं। कई लोग क्लर्क से प्रमोशन पाकर उप सचिव के पद तक पहुंच गए हैं। ऐसे में सरकार के सामने उन्हें हटाने की चुनौती है। हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि कोई भी शख्स कितने समय से नौकरी में है। अगर कोई भी इस मामले में पकड़ा जाता है तो उस पर कार्रवाई जरूर होगी। इस मसले पर 20 जनवरी को मुख्य सचिव सुमित मलिक की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, कानून विभाग और एडवोकेट जनरल दोनों ने ही कहा कि कोर्ट का फैसला इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट है। इन कर्मचारियों को बचाने का कोई रास्ता नहीं है। हालांकि मुख्य सचिव ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को फॉलो करेंगे।
जुलाई, 2017 में दिए अपने एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी और शैक्षणिक संस्थान में दाखिला पाने वाले लोगों की जॉब या डिग्री वापस ले ली जानी चाहिए। यही नहीं शीर्ष कोर्ट कहा था कि ऐसे लोगों की नौकरी छीने जाने के अलावा उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी की जानी चाहिए। क्लर्क के तौर पर भर्ती किए गए तमाम लोग ऐसे भी हैं, जो राज्य सरकार में डेप्युटी सेक्रटरी तक के पद पर पहुंच गए।
राजनीतिक दल खोल सकते हैं मोर्चा
इतने बड़े पैमाने पर फर्जी नौकरियां पाने वाले लोगों को हटाने के फैसले को लेकर महाराष्ट्र सरकार विचार विमर्श कर रही है। एक झटके में इतने लोगों को नौकरी से हटाना अपने आप में बड़ी बात है। यही नहीं फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी पाने वाले तमाम ऐसे भी कर्मचारी हैं, जो करीब दो दशक तक नौकरी कर चुके हैं। यदि इन कर्मचारियों को हटाया जाता है तो राजनीतिक दल और यूनियन भी इस मसले पर मोर्चा खोल सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस संबंध में बिल्कुल स्पष्ट है, लेकिन राज्य सरकार इतने बड़े पैमाने पर एंप्लॉयीज की एक साथ छंटनी को लेकर पसोपेश में है और उसे अंसतोष की भी चिंता सता रही है। दरअसल महाराष्ट्र में हजारों सरकारी कर्मचारी हैं जिन्होंने इसी तरह एसडीओ से जाति प्रमाण पत्र हासिल किए। लेकिन बाद में स्क्रीनिंग कमेटी ने जांच में पाया कि वे प्रमाण पत्र गलत हैं। ऐसे कर्मी पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट जाते हैं और इसमें 10-12 साल लग जाते हैं। इसी मामले में बाम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच ने फैसला दिया था कि भले ही गलत प्रमाण पत्र पर नौकरी मिली हो लेकिन इन कर्मियों को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि कहा कि इस आदेश को पिछली तिथि से लागू नहीं किया जा सकता है, यह फैसला भविष्य में आने वाले मामलों में ही प्रभावी होगा।
-मुम्बई से ऋतेन्द्र माथुर