91 फीसदी काम पर विराम
17-Feb-2018 09:36 AM 1234770
मप्र में 18 जिले सूखे से प्रभावित हैं। खेती खराब होने के कारण बड़ी आबादी के पास काम का संकट बना हुआ है। ऐसे में मनरेगा के तहत भी काम नहीं मिल रहा है। वहीं जिन लोगों ने मनरेगा के तहत काम किया है उनकी मजदूरी तक नहीं मिल रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक चालू सत्र 2017-18 में मनरेगा में अब तक 3537 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। इस राशि से 6.36 लाख कार्य शुरू किए जाने का दावा किया गया है। लेकिन समय पर राशि जारी नहीं होने, निगरानी की चूक और सरकारी सुस्ती के चलते करीब 60 हजार निर्माण व अन्य कार्य ही पूरे हो सके। जो खोले गए कामों का सिर्फ 9.37 प्रतिशत है। अभी भी 6 लाख से अधिक काम अधूरे पड़े हैं। मनरेगा में प्रदेश की यह अब तक की सबसे खराब प्रगति है। 2016-17 के सत्र में इस समय तक 28.26 प्रतिशत कार्य पूरे कर लिए गए थे। मनरेगा के क्रियान्वयन और निगरानी को लेकर बड़े सवाल खड़े किए हैं। साल दर साल योजना का मिजाज गड़बड़ा रहा है। रोजगार गारंटी परिषद द्वारा पिछले चार साल में 38 लाख से अधिक कार्य शुरू कराए गए थे, लेकिन इनकी प्रगति और पूरे करने के लिए कमजोर निगरानी तंत्र के चलते प्रगति करीब 70 फीसदी ही रही। करीब 11 लाख कार्य अब भी अधूरे हैं। इनमें 6 लाख चालू सत्र के कार्य भी शामिल हैं। मप्र रोजगार गारंटी परिषद में दर्ज आंकड़ों के अनुसार उसके पास 4193 करोड़ रुपए मनरेगा में उपलब्ध थे। इसके बाद भी प्रदेश में मजदूरों का 37 करोड़ रुपए बकाया है। जबकि योजना के तहत निर्माण कार्यों के लिए खरीदी गई सामग्री के मद में 281 करोड़ रुपए बाकी है। मजदूरी के अनियमित भुगतान की वजह से भी इस योजना के प्रति श्रमिकों के उत्साह को कम किया है। मजदूर रोज काम करने के बाद मजदूरी की उम्मीद करता है, लेकिन नए प्रावधानों में उसके खाते में पैसा कम से कम एक हफ्ते बाद पहुंचता है। मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार गांवों के बूते राज करती आ रही है, लेकिन इस बार हालात अलग लग रहे हैं। पहले किसान, अब सरपंच भी सीधे सरकार को चुनौती दे रहे हैं। मध्य प्रदेश में तकरीबन 23000 सरपंच हैं, जिनमें दो तिहाई बीजेपी को समर्थन देते हैं, लेकिन नाराजगी के बाद इनका दावा है कि सरकार ने अकेले मनरेगा में पिछले 3 महीने से 3670 लाख मजदूरी और 24112 लाख रूपए सामग्री का भुगतान नहीं किया, जिससे हर सरपंच पर लगभग 10-12 लाख रुपये का कर्ज हो गया है। ऐसे में वो आने वाले चुनावों में सरकार को सबक सिखाने की धमकी भी दे रहे हैं। सरपंच संघ के संयोजक गौरव श्रीवास्तव ने कहा कि काफी दिनों से सिर्फ आश्वासन मिल रहा है। मनरेगा में काम कर रहे हैं, मगर 6 महीने से सामग्री का भुगतान नहीं हुआ। मजदूरों के खाते में मजदूरी जा रही है, हमसे दबाव डालकर काम करवाया जा रहा है। मनरेगा, ईपीओ, सामान खरीदने पर जीएसटी लग रहा है। पंचायत को विकेन्द्रीकृत करने के बजाए केन्द्रीकृत कर दिया। हर योजना भोपाल से डाली जाती है। मध्य प्रदेश शासन को 2018 में बहुत भारी पड़ेगा। उधर, प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव कहते हैं कि हमने प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना व खेत सड़क योजना के अधिक काम मनरेगा में करवाए हैं। इतना कम काम हुआ ऐसी जानकारी मुझे नहीं है, मैं इसे दिखवाता हूं। उम्मीद है हम समय पर काम पूरे कर लेंगे। वाकई यह चिंताजनक स्थिति है कि प्रदेश में मनरेगा के तहत न तो काम हो रहे हैं और न ही मजदूरी का भुगतान हो पा रहा है। ऐसे में सरकार लक्ष्य कैसे पूरा करेगी। सात माह से बिगड़े हैं मनरेगा के हालात सूखे के मौजूदा दौर में ग्रामीणों के पलायन को रोकने में कारगर समझी जाने वाली एवं रोजगार की गारंटी देने वाली योजना में अभी भी भुगतान मिलने की कोई गारंटी नहीं है। मनरेगा की आर्थिक स्थिति जुलाई माह में नर्मदा के दोनों किनारों पर वृक्षारोपण, पंचायतों में पौधे लगवाने और पौध रक्षकों का पेमेंट करने के बाद डांवाडोल हुई है। प्रदेश में इस कार्यक्रम पर मनरेगा के 500 करोड़ खर्च किए गए थे। सामग्री खरीदने एवं मजदूरों के भुगतान, फंड कुछ आने के बाद भी काम अभी शुरु नहीं हो पाएंगे। लाखों की मजदूरी का भुगतान अभी भी अटका है। फंड के अभाव में मनरेगा के खेत- तालाब, कपिल धारा कूप, सहित योजना से होने वाले सारे काम अधूरे और रुके हैं। काम की गति भी धीमी हो गई है। सरपंचों का कहना है कि राशि न होने से काम कराने में मुश्किल हो रही है। - एस.एन. सोमानी
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