बकरी जैसी फंडिंग
17-Feb-2018 09:32 AM 1234796
आज दुनिया भर में मौजूद 70 फीसदी बाघ भारत में है, लेकिन बाघ की मौत के मामले भी उसके इसी सबसे सुरक्षित घर में ही सबसे ज्यादा हैं। पिछले नौ सालों में बाघों की मौत के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। इस दौरान देश में 631 बाघों की मौत हुई है जिसमें से सर्वाधिक मप्र में 133 मौतें हुई हैं। इसकी वजह है बाघों की सुरक्षा में अव्यवस्था। सरकारी दावों के अनुसार एक-एक बाघ की जिंदगी बेशकीमती है। ऐसे में बाघों की मौत का सिलसिला कई सवाल खड़े करता है। सवाल उठता है कि बाघों को बचाने के तमाम दावों और संरक्षण के प्रयासों के बावजूद बाघ अपने ही जंगल में सुरक्षित क्यों नहीं है? आखिर बाघों को बचाने की कोशिश में चूक और लापरवाही कहां हो रही है? टाइगर रिजर्व के नाम पर बाघों के संरक्षण का सेहरा बांधने वाली राज्य सरकारों की कमजोर इच्छाशक्ति साफ तौर पर जिम्मेदार दिखाई देती है। देश में टाइगर कंजरवेशन को लेकर कई मुहिम चलाई जा रही हैं। टाइगर कंजरवेशन सरकार के एजेंडा में भी काफी ऊपर है। लेकिन फिर भी मौजूदा आंकड़ों को देखकर लगता नहीं कि बाघ को बचाने का प्रयास सही तरीके से हो रहा है। हाल ही में भारत और पड़ोसी देश नेपाल, भूटान और बांग्लादेश ने टाइगर की संख्या का पता लगाने के लिए ज्वाइंट सेंसस का भी फैसला किया है। लेकिन इन सारी कवायदों के बावजूद देश के राष्ट्रीय पशु को बचाने में सभी कोशिशें नाकाफी ही नजर आ रही हैं। आज देश में बाघों को बचाने के लिए तकरीबन 50 टाइगर रिजर्व हैं। खास बात ये है कि बाघों की असुरक्षा के मामले इन रिजर्व के आसपास ही ज्यादा बढ़ रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो 54 टाइगर्स की मौत रिजर्व के बाहर हुई है जो कुल मौतों का 47 फीसदी है। बात एक बार फिर वहीं आकर अटक गई है कि क्या रिजर्व के बाहर का टाइगर सरकार और अधिकारियों के लिए टाइगर नहीं है। बार-बार ये सवाल खड़ा हो रहा है कि इनकी सुरक्षा के लिए क्या किया जा रहा है? वाइल्ड लाइफ कंजरवेश्निस्ट एजी अंसारी के अनुसार हाल फिलहाल में रिजर्व से बाहर के बाघों को बचाने के लिए कुछ खास नहीं हुआ है। लेकिन कंजरेश्निस्ट एनटीसीए (नेशनल टाइगर कंजरवेशन ऑथोरिटी) से लगातार बजट की मांग कर रहे हैं। जबकि सच्चाई ये है कि रिजर्व के बाहर के बाघों को बचाने के लिए तुरंत कोई पॉलिसी बनने के आसार कम ही हैं। हाल ही में एनटीसीए की उच्च स्तरीय बैठक हुई है। जिसमें बाघों के जनजीवन क्षेत्र में दखल को लेकर चर्चा भी हुई है। माना जा रहा है कि रिहाइशी इलाकों में बाघों को रोकने के लिए एनटीसीए एक नीति तैयार कर रहा है, जिसे आने वाले छह महीनों में अमल में लाया जा सकता है। अगर मप्र की बात करें तो प्रदेश में पांच टाईगर रिजर्व पार्क हैं। इनमें पेंच, कान्हा, बांधवगढ़, संजय गांधी और पन्ना पार्क शामिल हैं। इन पार्कों में बाघों की सुरक्षा के लिए 3700 से अधिक अधिकारी कर्मचारी तैनात किए गए हैं। इन पर हर साल करीब 60 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। बावजूद इसके बाघों की लगातार मौत हो रही है। जानकारों का कहना है कि सरकार ने बाघों की सुरक्षा के नाम पर अमला तो तैनात कर दिया है, लेकिन संसाधनों की कमी है। विस्तृत वन क्षेत्र होने के कारण बाघों के शिकार की खबर आसानी से नहीं मिल पाती है। बाघों के साथ भी राज्य सरकारें विस्थापित और शरणार्थी वाला बर्ताव करती हैं। जो बाघ रिजर्व के बाहर होते हैं उनकी सुरक्षा के लिए सरकार के पास न तो संवेदनाएं हैं और न ही सुरक्षा की कोई ठोस योजना। 2017 में ज्यादातर रिजर्व से बाहर के बाघों की मौत हुई है। क्योंकि कई बाघों की मौत सड़क पर वाहनों की चपेट में आने से, ट्रेन की चपेट में आने से और बिजली का झटका लगने से भी हुईं हैं। मध्यप्रदेश में पिछले कुछ समय में करंट लगने से कई बाघों की जान गई है। बहरहाल बाघ देश की शान हैं। ये बेजुबान अपनी बात कह नहीं सकते। इनकी मौत की खबरें सिर्फ आंकड़ों को बढ़ाने का काम कर रही हैं। ऐसे में जरूरी ये है कि टाइगर रिजर्व के बाहर भटकते बाघों को बचाने के लिए रिजर्व का दायरा बढ़ाया जाए ताकि बाघों को अपने ही घर से बेघर न होना पड़ा। इसके लिए जरूरी है कि फंडिंग ऐसी न हो ताकि लगे कि बाघ की जगह बकरी बचाने की कोशिश की जा रही है। मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा बाघों की मौत मध्य प्रदेश में बाघों की अच्छी खासी आबादी है। यहां दावा किया जाता है कि यहां बाघ तेजी से बढ़ रहे हैं। लेकिन यहां की जमीनी सच्चाई कुछ और ही बयां करती है। मध्य प्रदेश में पिछले 13 महीनों में 33 बाघों की मौत हुई है। मौत का ये आंकड़ा दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। एनटीसीए के मुताबिक ही 2016 में भी मध्य प्रदेश में 31 बाघों की मौत हुई थी। ऐसे में दो साल में साठ से ज्यादा बाघों की मौत पर राज्य सरकार की जवाबदेही बनती है। एमपी के बाद बाघों की मौत के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र (21) और उत्तराखंड (17) में सामने आए हैं। 2017 में हुई 115 मौतों में 55 फीसदी मौतों के लिए ये तीन राज्य ही जिम्मेदार हैं। एनटीसीए के मुताबिक, मध्य प्रदेश सूची में सबसे ऊपर (27 बाघों की मौत) है। इसके बाद महाराष्ट्र में 21 और उत्तराखंड में 17 बाघों की मौत हुई है। -बृजेश साहू
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