पोखरों में तब्दील नदियां
17-Feb-2018 07:56 AM 1234791
मध्यप्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड की सभी तहसीलों को सूखाग्रस्त तो घोषित कर दिया है, मगर किसी तरह के राहत कार्य शुरू नहीं हुए हैं। उधर, क्षेत्र की नदियां भी सूखने लगी हैं। इससे बुंदेलखंड क्षेत्र में आने वाले पांचों जिलों में जलसंकट पैर पसारने लगा है। इसके चलते रबी की फसल प्रभावित होना शुरू हो गई है। इधर फसलों के पकने का क्रम अभी शुरू नहीं हुआ है, खेतों में सिंचाई अत्यंत आवश्यक है, लेकिन जलाशयों में पानी नहीं होने से बुंदेलखंड के जिलों के कई क्षेत्रों में फसलों की सिंचाई नहीं हो पा रही है। कई वर्षों बाद फरवरी के माह में जलसंकट की इस तरह की स्थिति देखने में आ रही है। दमोह जिले से होकर निकलीं सभी बड़ी नदियों में जलधारा नहीं हैं, नदियों में पानी पोखरों के रूप में नजर आ रहा है। जिले के जबेरा तहसील क्षेत्र की बात की जाए तो यहां से होकर निकली ब्यारमा नदी की जल धारा टूट चुकी है, और कहीं कहीं ही पानी डबरों में नजर आ रहा है। वहीं हिर्तवा, भदर धुनगी नाला में भी पानी गायब हो चुका है। जनपद क्षेत्र के जलाशयों की बात की जाए तो माला जलाशय सहित भजिया, करारिया भिनेनी में ही पानी नजर आ रहा है, जो सिंचाई के लिए उपयोगी होगा, लेकिन क्षेत्र के 21 जलाशयों में सिचाई के योग्य पानी जनवरी माह में ही खत्म हो गया था। दमोह जिले के किसानों की चिंता सूखे ने बढ़ा दी है। किसानों की फसलें सिंचाई के अभाव में प्रभावित होना शुरू हो गईं हैं। शासन के द्वारा जल उपयोगिता की बैठक में कम पानी में आने वाली फसलों की बोनी करने की सलाह दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद अधिकांश किसानों के द्वारा दिसंबर माह के अंत में रबी फसल की बोनी करने की वजह से अब स्थिति भयाभय रूप ले रही है। दिसंबर माह में की गई गेहूं की बोनी के चलते अभी गेहूं की पौध ही तैयार हुई थी कि फरवरी माह में बढ़ते तापमान में पौधों को सिंचाई के लिए सिंचाई की आवश्यकता को प्रबल कर दिया है। माइनर जलाशयों में जनवरी माह में ही पानी खत्म हो गया था। जलस्रोतों के दम तोडऩे की वजह से खेतों में सिंचाई का कार्य प्रभावित हो गया और अब फसलों की ग्रोथ रूक गई है। फसलों के विकसित नहीं होने से किसानों को नुकसानी की चिंता सताने लगी है। किसानों से मिली जानकारी के अनुसार जिन क्षेत्रों में सिंचाई नहीं हो पा रही है वहां फसल से बीज लौटने तक की उम्मीद नहीं दिख रही है। सिंचाई विभाग के एसडीओ एनसी जैन का कहना है कि गंभीर सूखे कि स्थिति के चलते जिला जल उपयोगिता की बैठक में कलेक्टर सहित कृषि विभाग, जल उपभोक्ता संस्था के अध्यक्षों की एक संयुक्त बैठक में किसानों को कम पानी में आने वाली फसल की बोनी करने की सलाह दी गई थी, क्योंकि माइनर जलाशय अल्प बारिश के चलते अपनी पूर्ण जल भराव क्षमता तक पूर्ण नहीं कर पाए थे। ऐसी ही स्थिति बुंदेलखंड के अन्य जिलों की भी है। बुंदेलखंड में कुल 13 जिले आते हैं, उनमें से सात जिले उत्तर प्रदेश और छह जिले मध्यप्रदेश के हैं। इन सभी जिलों का हाल लगभग एक जैसा है, पानी का संकट है। खेती हो नहीं पा रही, राहत कार्य शुरू नहीं हुए। परिणामस्वरूप परिवारों का गांव छोड़कर जाने का सिलसिला बना हुआ है। दरअसल, सभी जिलों में अभी से नदियों का पानी तेजी से कम हो रहा है। नलजल योजनाएं दम तोड़ रही हैं। बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रामकृष्ण कुसमारिया सहित अन्य सदस्य भी यह मानते हैं कि क्षेत्र में जल संकट निवारण के लिए बड़े पैमाने पर कार्य कराए जाने की जरूरत है। बस्तियों में लटके हैं ताले बुंदेलखंड के अधिकांश गांवों की बस्तियों में ताले लटके हैं। इसका नजारा छतरपुर के खडग़ांय में देखा जा सकता है। यह गांव प्रधानमंत्री सड़क से जुड़ा हुआ है। इस गांव की दलित बस्ती सहित अन्य बस्तियों का नजारा यहां के हाल बयां करने के लिए काफी है। आलम यह है कि बस्ती के अधिकांश घरों पर ताले लटके हैं, और अगर कोई बचा है तो बुजुर्गो और बच्चों की देखरेख के लिए एक महिला। छतरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 13 किलोमीटर दूर के इस गांव के हाल बुंदेलखंड के अन्य गांव जैसे ही हैं। पानी के अभाव में खेती नहीं हो पाई है, हैंडपंप भी कम पानी देने लगे हैं। गांव में किसी तरह का रोजगार है नहीं, कर्ज का बोझ है सो अलग। मध्यप्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड की सभी तहसीलों को सूखाग्रस्त तो घोषित कर दिया है, मगर किसी तरह के राहत कार्य शुरू नहीं हुए हैं। -सिद्धार्थ चौधरी
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