ठेकेदारी प्रथा नहीं हुई खत्म
17-Feb-2018 06:36 AM 1234822
मप्र में अवैध खनन सबसे बड़ी समस्या है। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार ने नई रेत खनन नीति लागू की है। इसके पीछे सरकार की मंशा है कि रेत खनन में ठेकेदारी प्रथा बंद हो, प्रदेश में जनसामान्य को सस्ती दरों पर सुगमता से रेत उपलब्ध हो सके, रेत खनन में स्थानीय निकायों की भूमिका सुनिश्चित हो और नदियों के परिस्थितिकीय तंत्र का संरक्षण हो। नई खनन नीति के तहत सरकार ने ग्राम पंचायतों को रेत खनन का अधिकार सौंप दिया है। लेकिन देखा यह जा रहा है कि इस नई रेत खनन नीति के लागू होने के बाद से न केवल रेत महंगी हो गई है बल्कि ठेकेदारी प्रथा भी जारी है। दरअसल सरकार द्वारा रेत को ठेकेदारी प्रथा से दूर करते हुए रेत खनन का अधिकार सरपंचों को सौंप दिया। इससे रेत की उपलब्धता तो आसान व सस्ती हो गई, लेकिन रेत का परिवहन मुसीबत का सबब बन गया है। अधिकतर रेत वाहन मालिक परेशान हो रहे हैं। रेत कारोबारियों ने बताया कि इन दिनों कई स्थानों पर 200-250 किमी से रेत पहुंच रही है, जिससे रेत परिवहन की दूरी बढ़ गई है। दूरी बढऩे से डीजल खर्च भी बढ़ गया है। इसके अलावा रास्ते में टोल नाका खर्च अतिरिक्त होने लगा है। यही नहीं, रेत की जांच के नाम पर जगह-जगह खड़े जांच अधिकारियों को भी तय शुल्क चुकाने के बाद ही वाहन निकल पा रहे हैं। परिवहन खर्च निकालने के लिए अधिकतर रेत वाहन ओवरलोड दौड़ रहे हैं। यही नहीं प्रदेश में रेत भंडारण की नई नीति के कारण भवन निर्माण के नाम पर ठेकेदारों द्वारा रेत का भंडारण किया जा रहा है। नई रेत खनन नीति की सबसे बड़ी विसंगति यह है कि इसमें सारी जिम्मेदारियां संबंधित ग्राम पंचायत व नगरीय क्षेत्र की होंगी। अगर यहां से रेत की चोरी होती है तो मामला भी ग्राम पंचायत या नगर पंचायत पर ही दर्ज किया जाएगा। क्योंकि अवैध उत्खनन रोकने पर न तो अब पुलिस पीछे दौड़ेगी न ही खनन विभाग के अधिकारी बल्कि अगर प्रशासन को लगता है कि अमुक खदान से चोरी की जा रही है या रॉयल्टी की राशि रेत निकालने की तुलना में कम आ रही है तो एफआईआर भी पंचायतों पर ही होगी। नई व्यवस्था में जो खास बात सामने आई है वह है कि पंचायतों के सरपंच-सचिव भी रेत का हिसाब देने पर बाध्य होंगे। अगर माइनिंग विभाग या कलेक्टर को लगा कि पंचायतों की ओर से रेत ज्यादा निकाली जा रही और रॉयल्टी मिल रही कम तो संबंधित सरपंच-सचिव व नगर पालिका क्षेत्र में सीएमओ पर एफआईआर की गाज गिर सकती है। इससे पंचायतों में डर का माहौल है। नई व्यवस्था में यह भी कहा गया है कि किसी भी खदान से रेत निकालने से पहले उसकी रॉयल्टी कियोस्क के माध्यम से पंचायत के खाते में आ जाए। उसकी रसीद दिखाने पर ही खदान से रेत भरी जा सकेगी। इसके लिए ग्राम पंचायत कार्यालय में सारी व्यवस्था रहेगी। रेत खरीदने वालों को 100 रुपए प्रति घन फीट के हिसाब से रॉयल्टी चुकानी पड़ेगी। समय-समय पर इसकी जांच भी की जाएगी जांच में अगर रॉयल्टी व रेत निकासी में अंतर पाया गया तो संबंधित पंचायत के सरपंच-सचिव के खिलाफ एफआईआर होगी। इससे रेत खनन की नई नीति विवादों में पड़ गई है। आलम यह है कि सरपंच अब नई खनन नीति का विरोध भी करने लगे हैं। बिचौलियों के लिए फायदेमंद मप्र की शिवराज सरकार ने नई रेत नीति पर मुहर लगा दी है। जिसे नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भावांतर पार्ट-2 की संज्ञा देते हुए कहा कि नई नीति भी बगैर सोचे समझे बनाई गई है। इससे बिचौलियों को फायदा होगा। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कहते हैं कि इससे बाहुबली और बिचौलियों को लाभ होगा और प्रदेश का अहित होगा। रेत को लेकर सरकार हमेशा उन लोगों के साथ रही जिसने इस खनिज संपदा का दोहन कर प्रदेश को चूना लगाया।बगैर सोचे समझे या साजिशन सरकार ने पंचायत को तो खनन का अधिकार दे दिया। अजय सिंह कहते हैं कि इस बात का ध्यान नहीं रख कि जब 12 साल में इतनी बड़ी सरकार, इतना बड़ा पुलिस अमला रेत माफियाओं के सामने घुटने टेक गया, तब पंचायत बगैर सक्षम हुए बगैर अमले के इस खनिज संपदा की रक्षा और संचालन कैसे कर पाएंगे। -सुनील सिंह
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