फिल्मों के महाकुंभ में आध्यात्म की डुबकी
02-Feb-2018 11:11 AM 1234779
आध्यात्म से जोडऩे वाली फिल्मों के महाकुंभ इंटरनेशनल स्प्रिचुअल फिल्म फेस्टिवल ने वसुधैव कुटुंबकम की भावना को साकार किया। हम सभी जानते हैं फिल्म व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ पीढिय़ों और बंटे हुए संसार को जोडऩे का सशक्त माध्यम है। इस समारोह में दिखाई गई फिल्मों ने इसे साकार भी किया, साथ ही यह संदेश दिया की यह अनौपचारिक शिक्षा का भी प्रभावी साधन है। वैश्विकता और स्थानीयता को एक मंच पर लाने का संस्कृति विभाग का यह प्रयास यादगार रहेगा, क्योंकि इसमें कई यादगार फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। इनमें से कई फिल्मों को जानकारों और आलोचकों ने काफी सराहा भी। इंटरनेशनल स्प्रिचुअल फिल्म फेस्टिवल के अंतिम दिन भारत भवन में प्रदर्शित चार फिल्मों को लोगों ने खूब सराहा। सबसे पहले निर्देशक क्रिस्तोफ वान तोगन्बर्ग की फिल्म अल्जीरिया ए ह्यूमेनिटेरियन एक्सपीडिशन का प्रदर्शन हुआ। इसके बाद स्वामी विवेकानंद के जीवन पर आधारित फिल्म स्वामी विवेकानंद का प्रदर्शन किया गया। बिमल रॉय प्रोडक्शन की इस फिल्म का निर्देशन जीबी अय्यर ने किया है। इसके बाद निर्देशक डेनियल स्किमद की फिल्म समाधि- माया द इलूशन का प्रदर्शन किया गया। फिल्म समाधि की खोज में बनाई गई पहली फिल्म है। अंतिम फिल्म के तौर पर निर्देशक मीरा दीवान की फिल्म धुन में ध्यान: गुरु ग्रंथ साहिब का प्रदर्शन किया गया। फिल्म में संगीत में ध्यान, सूफी और अन्य बहु-विश्वास कवियों की कहानी को बयां किया गया है। मुंबई के कविश सेठ एंड बैंड की एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियों ने गजब समां बांधा। कविश ने बेस गिटार पर अपने साथी निशांत औक ड्रम्स पर निलय के साथ अपनी गायकी से खूब रंग जमाया। पांच दिनों के इस आयोजन में कई मनमोहक प्रस्तुतियों ने अपनी छाप छोड़ी। जीवन की सच्चाई और आध्यात्म के महत्व का दर्शन जीवन की सच्चाई और आध्यात्म के महत्व पर केंद्रित फिल्मों ने दर्शकों को बांधे रखा। दर्शकों ने अलग-अलग विषय वस्तु और भाषाओं में बनी फिल्मों का लुत्फ उठाया। समारोह के पहले दिन डायरेक्टर जीवी अय्यर की आदि शंकराचार्य की जीवनी पर आधारित फिल्म प्रदर्शित की गई। यह फिल्म आध्यात्मिक जीवन पर आधारित थी जो 1983 में नेशनल फिल्म अवॉर्ड से सम्मानित हुई। समारोह के पांचों दिनों अध्यात्म, गीत, संगीत, नृत्य का ऐसा संगम देखने को मिला जिसे लोग भूले नहीं भुला सकते। पांच दिनों तक शहर को कई यादगार फिल्मों से रुबरू कराने वाले फिल्म फेस्टिवल में देश-दुनिया के प्रतिष्ठित फिल्मकारों, सिने विश्लेषकों, पत्रकारों एवं आलोचकों ने संवाद के माध्यम से लोगों को अध्यात्म से जोड़ा। इनमें अनंत नारायण महादेवन, अजीत राय, रत्नोत्तमा सेनगुप्ता, डीआर कार्तिकेय, राजीव मेहरोत्रा, सोमा घोष, अखिलेश, मानसी महाजन, बिन्नी सरीन, यू राधाकृष्णन, टीएस नागभरणा, चन्द्रशेखर तिवारी आदि प्रमुख हैं। -भोपाल से अरविन्द नारद
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