02-Feb-2018 11:02 AM
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राजस्थान में इसी साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में अगर राहुल ने पार्टी नेताओं की आपसी कलह का इलाज नहीं किया तो, चुनाव में कांग्रेस लडख़ड़ाती और संघर्ष करती नजर आएगी। राजस्थान कांग्रेस में गड़बड़ी का खुलासा पिछले उस वक्त हुआ, जब जयपुर से करीब 120 किलोमीटर दूर सीकर में अशोक गहलोत ने मीडिया के सामने अपनी महत्वाकांक्षा और चाहत का खुलेआम मुजाहिरा किया। गहलोत की पहचान एक ऐसे नेता के तौर पर है, जो बहुत तोल-मोल कर शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। सीकर में भी गहलोत अपनी चिर-परिचित राजनीतिक शैली में ही नजर आए। गहलोत ने जो कुछ कहा, वह उनकी तरफ से कांग्रेस आलाकमान और राज्य के पार्टी नेताओं के लिए साफ संदेश माना जा रहा है। मजे की बात यह है कि, सब कुछ कह लेने के बाद गहलोत आखिर में अपना पसंदीदा सियासी वाक्य जोडऩा नहीं भूलते। गहलोत का वह पसंदीदा सियासी वाक्य है, इससे मैसेज ठीक नहीं जाएगा।
दरअसल गहलोत इस समय अपने राजनीतिक करियर के नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। यह वक्त उनके राजनीतिक करियर के लिए आमूल परिवर्तन का काल साबित हो सकता है। लिहाजा रणनीतिक तौर पर गहलोत कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहते हैं। मौके की नजाकत भांप कर गहलोत सीकर में अपने मन की बात कहने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि जिस भी व्यक्ति को राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है, वह खुद को भविष्य के सीएम (मुख्यमंत्री) के रूप में देखने लगता है। बेशक, गहलोत राजस्थान कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। गहलोत इतने लोकप्रिय नेता इसलिए हैं क्योंकि, वह दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा वह पिछले दो दशक से पार्टी संगठन पर मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। लेकिन गहलोत की लोकप्रियता की सबसे महत्वपूर्ण वजह यह है कि उनकी पहुंच सोनिया गांधी और उनकी मंडली तक रही है। वैसे जमीनी स्तर पर भी गहलोत गहरी पैठ रखते हैं। राज्य में उनका नेटवर्क जबरदस्त है। कहा जाता है कि, राजस्थान के हर गांव में कम से कम पांच व्यक्ति ऐसे होंगे जिन्हें गहलोत उनके नाम से जानते हैं। इसके अलावा, एक बात पर शक किया जा सकता है कि, गहलोत अपने बूते पर कांग्रेस को कहीं चुनाव जितवा सकते हैं। लेकिन इस बात में रत्ती भर शक नहीं किया जा सकता है कि गहलोत अपनी स्लीपर सेल के जरिए पार्टी को कभी भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। दरअसल गहलोत की राज्य के माली समुदाय पर जबरदस्त पकड़ है।
राजस्थान में माली समुदाय के लोग बड़ी संख्या में हैं। यह एक शक्तिशाली ओबीसी समूह है। गहलोत के यह गुण और उनकी यह कला उनको बेशकीमती बनाते हैं, साथ ही उन्हें एक खतरनाक जिम्मेदारी के तौर पर भी पेश करते हैं। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए गहलोत वह मुश्किल बन गए हैं, जिसे न निगला जा सकता है और उगला जा सकता है। गहलोत में राजस्थान का कैप्टन अमरिंदर सिंह और शंकर सिंह वाघेला बनने की क्षमता है। अगर गहलोत इसी तरह शक्ति प्रदर्शन करते रहे, तो राहुल गांधी या तो डर कर उन्हें राजस्थान में कांग्रेस के चेहरे के तौर पर पेश कर सकते हैं या वैकल्पिक रूप से, राहुल भी पलटकर गहलोत को अपनी आंखें दिखा सकते हैं। राहुल ने अगर कड़े तेवर दिखाए तो, गहलोत को भी वाघेला की तरह हाराकिरी करनी पड़ सकती है।
गहलोत को राजस्थान से दूर रखना चाहता है आलाकमान
साल 2013 विधानसभा चुनाव में हार के बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए थे। जिसके चलते कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत को सम्मान के साथ राजस्थान की राजनीति से दूर रखने का हर संभव प्रयास किया। दरअसल कांग्रेस आलाकमान चाहता था कि इन दोनों नेताओं की कलह के चलते राज्य में पार्टी के सम्मान और साख को दोबारा हासिल करने में दिक्कत पेश न आए। पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने सचिन पायलट को राजस्थान कांग्रेस को मनमुताबिक चलाने का लाइसेंस दे दिया था। यह एक पीढ़ीगत बदलाव का संकेत था। इसके साथ ही, गहलोत को गुजरात जैसे अहम राज्य का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया गया था। लेकिन, जैसे कोई मधुमक्खी हमेशा अपने पसंदीदा बगीचे की तरफ बार-बार लौट कर आती है, वैसे ही गहलोत भी लौट-लौटकर राजस्थान वापस आते रहे। गहलोत जब-जब लौटकर राजस्थान आते, तब-तब उनकी महत्वाकांक्षा की गूंज सुनाई देती।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी