02-Feb-2018 08:23 AM
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भारत और इजराइल के बीच की दोस्ती दिन पर दिन गहरी होती जा रही है। भारत की प्रगति से जलने वाले पड़ोसी देश इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन दोनों देशों के प्रगाढ़ होते रिश्तों को गहराई से देखें तो ये आपसी प्रगति का रिश्ता है न कि किसी और देश के विकास में बाधा उत्पन्न करने का।
भारत-इजराइल के बीच व्यापार निवेश को लेकर जो प्रत्यक्ष दिख रहा है, वह है साइबर सुरक्षा, कृषि को योजनाबद्ध तरीके से उन्नत करने, कोऑपरेटिव मार्केटिंग, अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आपसी सहयोग, एयर ट्रांसपोर्ट, फिल्म मेकिंग, होमियोपैथी दवा का निर्माण, सोलर थर्मल तकनीक, गैस फील्ड का शोधन। उभयपक्षीय सहयोग के ये नौ क्षेत्र हैं, जिसके लिए ‘एमओयू’ पर हस्ताक्षर किये गये। कुल 130 सदस्यीय व्यापारिक डेलीगेशन में जल तकनीक, साइबर सुरक्षा, कृषि, प्रतिरक्षा, स्वास्थ्य और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की नामी-गिरामी हस्तियां प्रधानमंत्री नेतन्याहू के साथ हैं। वर्ष 1993 में भारत-इजराइल के बीच मात्र 20 करोड़ डॉलर का व्यापार था। 2017 में यह उभयपक्षीय व्यापार 4.2 अरब डॉलर का हो चुका था।
ऐसी क्या वजह है कि भविष्य में होने वाले तमाम सौदों को एकदम से खोला नहीं जा रहा? उसका उत्तर प्रधानमंत्री मोदी की आगामी विदेश यात्रा में छिपा हुआ है। पीएम मोदी फरवरी में ओमान, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और फिलीस्तीन की यात्रा पर होंगे। उन्हें इस्लामी जगत को भरोसा देना है कि भारत, यहूदी राष्ट्र के नक्शे क़दम पर नहीं है। ऐसा संदेश भारत यूएन में यरुशलम पर वोटिंग के दौरान दुनिया को दे चुका है। यह दिलचस्प है कि जब पीएम मोदी नई दिल्ली में नेतन्याहू का स्वागत कर रहे थे, ठीक उसी समय परिवहन राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी तेहरान में 60 करोड़ डॉलर के मालगाड़ी डिब्बे की सप्लाई के वास्ते ईरान के रोड और शहरी विकास मंत्री अब्बास अहमद अखौंदी से बातचीत की मेज पर थे। ईरान और इजराइल के बीच फूटी आंखों से न सुहाने वाला संबंध किसी से छिपा नहीं है। चाबहार पोर्ट, भारत की कूटनीति व व्यापार का अहम हिस्सा है, जिसे जियोनी शासन से प्रेम के अतिरेक में गंवाना उचित नहीं होगा। चीन, पाकिस्तान ऐसे ही अवसर की तलाश में हैं कि ईरान से भारत का मामला बिगड़े।
क्या इजराइल से सहयोग हमारी कूटनीतिक विवशता रही है? यह सही है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरंभ से यहूदी राष्ट्रवाद को अपना आदर्श मानता रहा है। 1948 में इजराइल के अस्तित्व में आने के बाद उसका ‘इस्लामोफोबिक’ चरित्र दुनिया के दूसरे ठिकानों पर बैठी हिंदू आबादी को प्रभावित कर रहा था। 1992 में इजराइल से भारत के कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए। 26 साल में भारत-इजराइल संबंधों के चार हिस्से किये जा सकते हैं। 1998 से पहले जो कुछ हुआ, एक हिस्सा वह। दूसरा 1998 से 2004 तक एनडीए सरकार के समय भारत-इजराइल संबंध। उसके बाद के यूपीए दौर में तेल अवीव और नई दिल्ली के रिश्ते और चौथा, 2014 से मोदी शासन के दौर में भारत-इजराइल संबंध। सोचिए, कि एक खास चिंतन के पैरोकार नेतन्याहू की यात्रा को ‘ऐतिहासिक, अभूतपूर्व’ क्यों बताये जा रहे हैं? असल इतिहास तो 2003 में अरियल शेरोन के आगमन पर रचा गया था। अटल जी ने उस समय पूरी कूटनीतिक शालीनता का ध्यान रखा था।
दिक्कत उन सूचनाओं के साथ है, जिसे शोर में दबा देने की कोशिश होती है। इजराइल से कूटनीतिक संबंध की पहल पी.वी. नरसिम्हा राव ने किन परिस्थितियों में की थी, इस पर चर्चा नहीं होती। 26 साल पहले, 29 जनवरी 1992 को उस समय के विदेश सचिव जेएन दीक्षित के साथ प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव संयुक्त राष्ट्र महासभा गये और उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि हम इजराइल से कूटनीतिक संबंध स्थापित करने जा रहे हैं। इसके ठीक 11 महीने बाद 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी विध्वंस का मंजर देखकर अरब देश समझ चुके थे कि पी.वी. नरसिम्हा राव को ऐसी इच्छाशक्ति इजराइल जैसे दोस्तों के जरिये हासिल हुई है। कांग्रेस की मुश्किल यह है कि वह नरसिम्हा राव के उन कार्यों की चर्चा हाशिये पर रखती है, जिसे संघ सामने रखकर अपना हिंदू वोट बैंक मजबूत करता रहा है। इसे योजनाबद्ध तरीके से प्रचारित किया गया कि इजराइल से प्रगाढ़ संबंध वाजपेयी शासन और उसके बाद मोदी काल में अधिक हुए।
भारत-इजरायल की दोस्ती ईश्वर रचित: नेतन्याहू
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत- इजरायल भागीदारी को ‘ईश्वर रचित’ करार दिया है। उनका कहना है कि दोनों के रिश्ते मानवता, लोकतंत्र और आजादी के लिए प्यार के साझा मूल्यों पर आधारित हैं। उन्होंने भारत-इजरायल व्यापार शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनका गहरा व्यक्तिगत संबंध है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों की दोस्ती और मजबूत और प्रगाढ़ होगी तथा यह दोनों देशों के आम लोगों तक फैलेगी। नेतन्याहू ने भारतीय कंपनियों से अपने देश में निवेश की अपील करते हुए कहा, ‘इस धरातल पर हम दो सबसे पुरानी संस्कृति हैं। हमारे यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था है। हम दोनों ही स्वाधीनता व मानवता के लिये प्यार साझा करते हैं। हम वाकई में सच्चे जोड़ीदार हैं। यह जोड़ी ईश्वर ने बनाई है।’ नेतन्याहू ने कहा कि इजराइल की अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव तथा भारत में प्रधानमंत्री मोदी के किए जा रहे कामों में बड़ी समानता है।
-बिन्दु माथुर