16-Jan-2018 08:24 AM
1234820
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने करीब 16 अरब 26 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता रोक कर पाकिस्तान को साफ संदेश दिया है कि आतंकवाद से निपटने के मामले में वह गंभीरता नहीं दिखा रहा है और अमेरिका को पिछले पंद्रह साल से मूर्ख बना रहा है। पिछले पंद्रह सालों में अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर सैन्य सहायता दे चुका है। आर्थिक मदद रोकने के बाद पाकिस्तान पर इसका क्या असर पड़ेगा और वह आतंकवाद के खिलाफ कोई कदम उठाएगा या नहीं, अभी यह स्पष्ट नहीं है। फिलहाल यह जरूर कहा जा रहा है कि अपनी घटती लोकप्रियता से फिक्रमंद होकर ट्रंप ने ऐसा फैसला लिया है ताकि अमेरिकी जनता का बड़ा वर्ग इससे खुश हो और दुनिया में उनकी वाहवाही हो। इसी कड़ी में कुछ समय पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से जारी राष्ट्रीय नीति में कहा गया था कि हम पाकिस्तान पर आतंकवादियों को खत्म करने के प्रयासों में तेजी लाने का दबाव डालेंगे क्योंकि किसी भी मुल्क का आतंकवादियों और उनके समर्थकों के लिए कोई योगदान नहीं हो सकता है।
ट्रंप के बयान के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि अमेरिका अफगानिस्तान की लड़ाई के लिए पाकिस्तान के संसाधनों का इस्तेमाल करता है और उसी की कीमत चुकाता है। उनके मुताबिक ट्रंप अफगानिस्तान में हार से दुखी हैं और इसलिए पाकिस्तान पर दोष मढ़ रहे हैं। बावजूद इसके इन दिनों पाकिस्तान में हड़कंप मचा हुआ है। हाफिज सईद पर अचानक सख्त होते हुए वहां की वित्तीय नियामक संस्था प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग (एसईसीपी) ने जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन के चंदा लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है जबकि इसी हाफिज सईद को पिछले महीने ही अदालत ने बरी किया था।
बहरहाल, ट्रंप की आर्थिक मदद रोकने की घोषणा के एक दिन बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ बेहतरीन काम कर रहा है और विश्व समुदाय को उसका समर्थन व सहयोग करना चाहिए। इधर भारत को अमेरिका और पाकिस्तान के बीच की हालिया बयानबाजी से खुश होने की जरूरत नहीं है। चीन और पाकिस्तान के बढ़ते रिश्ते भारत के लिए चिंता का विषय है। इसके बारे में भारत को अपनी तैयारी रखनी होगी। अमेरिका पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता। आर्थिक और सामरिक सौदों के कारण फिलहाल भारत अमेरिका के लिए फायदेमंद है लेकिन कल अगर अफगानिस्तान या पाकिस्तान उसके लिए ज्यादा मुफीद साबित हुए तो यह समीकरण बदल भी सकता है। अमेरिका ने तो सिर्फ दबाव बनाने का पैंतरा मात्र दिखाया है।
वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान अमेरिका के लिए पारंपरिक रूप से महत्वपूर्ण देश रहा है और आगे भी रहेगा। अमेरिका दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना चाहता है तो कभी-कभी वह भारत को खुश करने वाली बातें कर लेता है, मगर कार्रवाई कुछ नहीं करता। बेहतर यही है कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत बनाने के सार्थक प्रयास करे। नेपाल की वर्तमान सरकार को भी साधना जरूरी है क्योंकि उसका ज्यादा झुकाव चीन की तरफ है। चीन, श्रीलंका, बांग्लादेश व म्यांमार में भी अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिशों में जुटा है। अफगानिस्तान पर भी चीन की नजर गड़ी दिखाई दे रही हैं। ये सारी स्थितियां भारत के हित में नहीं हैं। पाकिस्तान को सैन्य मदद रोकने के अमेरिका के फैसले का औचित्य जाहिर है। अमेरिकी मदद रुक जाने से घबराए पाकिस्तान को कुछ सख्त कदम उठाने पड़े हैं। पाकिस्तान सरकार ने मुंबई हमलों के सरगना हाफिज सईद के संगठनों को चंदा देने पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत में सबसे ज्यादा आतंकी हमले लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद ने किए हैं। हाफिज लश्कर का संस्थापक तो है ही, वह जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन जैसे धर्मादा संगठन भी चलाता है, और इन संगठनों के सहारे उसने पूरे पाकिस्तान में पैर पसार रखे हैं।
ट्रंप और किम में ट्वीट वार
उधर इन दिनों ट्रंप और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग के बीच ट्वीट वार छिड़ा हुआ है। अभी हाल ही में बिल्कुल बच्चों की तरह लड़ते हुए किम ने कहा कि एटमी हथियार दागने वाला बटन मेरी डेस्क पर है। जबाव में ट्रंप ने ट्वीट किया, मेरे पास भी एक एटमी बटन है और वह तुम्हारे बटन से बड़ा है। सितंबर में उत्तर कोरिया ने अपना छठा और सबसे ताकतवर परमाणु परीक्षण किया जबकि नवंबर में उसने ऐसी मिसाइल का सफल परीक्षण करने का दावा किया जिससे अमेरिका में कहीं भी मार की जा सकती है। दोनों देशों के नेताओं की रोज-रोज की धमकी से अन्य राष्ट्र परेशान है। आलम यह है कि ट्रंप को तो अपनी जांच कराने की सलाह तक दे दी गई है।
-अक्स ब्यूरो