02-Feb-2018 07:41 AM
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स्वच्छ भारत अभियान को मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक माना जाता है। इसके लिए लोगों पर सेवा कर के रूप में आधा फीसदी (0.5 प्रतिशत) सेस का बोझ डाला गया। साथ ही, इसके लिए बजट में साल 2014-15 से लेकर अब तक 33,875 करोड़ रुपये आवंटित किए जा चुके हैं। यह अभियान जमीनी स्तर पर कितना सफल रहा है, इसे जानने के लिए ही समय-समय पर स्वच्छ सर्वेक्षण किया जाता रहा है। केंद्र सरकार ने इस सर्वेक्षण की जिम्मेदारी क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) को दी है। इसकी स्थापना 1996 में भारत सरकार और कारोबारी संगठनों जैसे फिक्की और सीआईआई द्वारा की गई थी।
इस साल मूल्यांकन के लिए निर्धारित अंकों को 2,000 से बढ़ाकर 4,000 कर दिया गया है। साथ ही, नागरिक प्रतिक्रिया और स्वतंत्र मूल्यांकन का वेटेज 35 फीसदी (1400 अंक) और 30 फीसदी (1200 अंक) किया गया है। बीते साल इनका वेटेज क्रमश: 30 और 25 फीसदी था। दूसरी ओर, शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) के कामकाज के लिए निर्धारित वेटेज को घटाकर 45 से 35 फीसदी (कुल अंक- 1400) कर दिया गया है। स्थानीय शहरी निकाय के कामकाज के मूल्यांकन की बात करें तो इलाके की साफ-सफाई, कचरा इक_ा करने और इसके परिवहन के लिए 40 फीसदी वेटेज निर्धारित किया गया था। इस साल इसे घटाकर 30 फीसदी कर दिया गया है। खुले में शौच से मुक्ति के लिए (30) फीसदी, क्षमता निर्माण (पांच फीसदी) और जागरूकता फैलाने (पांच फीसदी) के लिए निर्धारित वेटेज में कोई बदलाव नहीं किया गया है। दूसरी ओर, ठोस कचरे के निपटारे के लिए तय वेटेज को 20 से बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया गया है। इस साल स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए नए तरीकों के लिए ‘अभिनव’ मानदंड बनाया गया है। इसे मूल्यांकन में पांच फीसदी वेटेज दिया गया है।
गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वॉयरमेंट (सीएसई) ने स्वच्छ सर्वेक्षण-2017 के तौर तरीकों को लेकर कई सवाल उठाए थे। संस्था का मानना है कि इसमें कचरे का अपने मूल जगह पर रिसाइकल कर इसका फिर से इस्तेमाल करने को प्राथमिकता नहीं दी गई। इसकी जगह ठोस कचरे को इक_ा करने और इसे एक स्थान पर जमा करने को वरीयता दी गई। सरकार की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक सर्वेक्षण में अव्वल आने वाले शहरों में इन्हीं तरीकों से कचरे का प्रबंधन किया जा रहा है। दूसरी ओर, पणजी (गोवा) और आलप्पुषा (केरल) जहां कचरे का मूल स्थान पर रिसाइकल कर इसका प्रबंधन किया जाता है, स्वच्छ शहरों की सूची में क्रमश: 90वें और 380वें पायदान पर हैं। साल 2016 में पणजी 16वें पायदान पर था। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक पणजी को स्थानीय निकाय के कामकाज के लिए 900 में से 596 अंक दिए गए थे, जबकि आलप्पुषा को केवल 127। दूसरी ओर इंदौर को 875, भोपाल को 830 और विशाखापट्टनम को 869 अंक मिले हैं। सीएसई की रिपोर्ट बताती है कि इंदौर और सूरत कचरे के प्रबंधन की समस्या से जूझ रहे हैं। सूरत में प्रतिदिन 1600 मीट्रिक कचरा पैदा होता है और इसे एक जगह इक_ा किया जाता है। बताया जाता है कि सर्वेक्षण में अव्वल आने वाले मध्य प्रदेश जैसे राज्य म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट रूल्स (2016) का पालन नहीं कर रहे हैं। इसके तहत ठोस कचरे को घरेलू स्तर पर तीन हिस्सों- गीला, सूखा और हानिकारक कचरे में बांटने की बात कही गई है। इसके अलावा कचरे के भराव को अंतिम विकल्प के रूप में अपनाने की बात कही गई है।
भोपाल नंबर-1 की कागजी तैयारी
स्वच्छता सर्वेक्षण-2017 में देश में सबसे साफ शहर के रूप में पहचान बनाने वाले इंदौर-भोपाल एक बार फिर नंबर-1 के दावे के साथ मैदान में हैं। इंदौर ने अपनी नंबर वन की पोजीशन को बरकरार रखने के लिए सफाई अभियान को मिशन की तरह सालभर जारी रखा। भोपाल ने नंबर-2 का स्थान हासिल करने के बाद भी इसे सिर्फ प्रतियोगिता के लिए रख छोड़ा है। आलम यह है कि जागरूकता, कचरा ट्रांसपोर्ट एवं प्रबंधन, डोर टू डोर कचरा कलेक्शन में भोपाल लगातार पिछड़ रहा है। निगम की ओर से अलग-अलग प्रतिनिधि समूहों के साथ शहर के होटलों में वर्कशॉप और सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। थर्ड जेंडर को ब्रांड एंबेसेंडर बनाया गया है। जागरुकता कार्यक्रम एनजीओ के भरोसे है। शहर में 12 स्थानों पर कचरा कलेक्शन और ट्रांसपोर्टेशन सेंटर हैं। इनमें से एक भी साइंटिफिक नहीं, सेग्रिगेशन का कोई सिस्टम नहीं। वाहनों की धुलाई की कोई व्यवस्था नहीं। राजधानी की 21 लाख आबादी के हिसाब से यहां सफाई कर्मचारियों की संख्या कम है। यहां 6000 कर्मचारी।
- माया राठी