02-Feb-2018 07:38 AM
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मप्र में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल हुए 14 साल से अधिक समय हो गए हैं, लेकिन अभी तक उसके लिए सत्ता दूर की कौड़ी ही नजर आ रही है। इसकी वजह यह है कि पार्टी को सत्ता में लाने की जिम्मेदारी जिन नेताओं पर हंै, वे ही बेपटरी है। हैरानी की बात यह है कि विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर कांग्रेस में बैठकों का दौर लगातार चल रहा है, लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकल रहा है। हां, प्रदेश प्रभारी बावरिया की बौखलाहट जरूर देखने को मिल रही है। पिछले दिनों कांग्रेस कार्यालय में प्रदेश कांग्रेस के जिलाध्यक्ष, ग्रामीण अध्यक्ष व कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में बावरिया की बौखलाहट सामने आई।
बैठक में कांग्रेस प्रभारी दीपक बावरिया ने बिना मुद्दे के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को नसीहत दी थी कि मेरे रहते पार्टी ड्रायवर, सेवकों आदि को टिकट नहीं देगी। बावरिया के इस बयान से पार्टी के कुछ नेताओं में आक्रोश है। उनका कहना है कि प्रदेश प्रभारी के ऐसे बोल से पार्टी के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में गलत संदेश जाता है। ऐसा बोलकर प्रदेश प्रभारी प्रदेश के नेताओं को निकम्मा घोषित कर रहे हैं, क्योंकि पार्टी तो हर बार जिताऊ उम्मीदवार ही मैदान में उतारती है। मध्य प्रदेश में मिशन 2018 की तैयारियों में जुटी कांग्रेस के लिए गुटबाजी खत्म करना नामुमकिन सा हो गया है। बिखरी पड़ी कांग्रेस को एकजुट करने की जिम्मेदारी निभाने में प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया के भी पसीने छूट रहे हैं। आलम यह है कि उनके सामने ही कभी कोई विधायक तो कभी कोई पदाधिकारी प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव को हटाने की मांग करने लगता है और बावरिया चुप्पी साधे रहते हैं।
साल 2003 में सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस अब 2018 के चुनाव में जीत की आस लगाए बैठी है लेकिन पार्टी हार की हैट्रिक का मंथन तो दूर आपसी गुटबाजी से उबर नहीं पा रही। कांग्रेस को सिंहासन से फिलहाल धरातल पर पहुंचाने में आपसी गुटबाजी और पार्टी नेताओं की ही भूमिका रही। यही कारण है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन हो, तमाम बैठकों के बावजूद कांग्रेस आलाकमान इस बात का फैसला नहीं कर पाया है। आलाकमान में इस बात पर सहमति तो अरसे पहले बन गई कि ज्योतिरादित्य सिंधिया या कमलनाथ में से किसी को चेहरा बना दिया जाए, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद फैसला नहीं हो सका। इसकी वजह ये है कि कोई बयान कुछ भी दे, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ अपना दावा छोडऩे को तैयार नहीं हैं। वहीं, खुद को सीएम की रेस से बाहर बता रहे दिग्विजय किसी को चेहरा बनाने की बजाय गुजरात की तर्ज पर सामूहिक नेतृत्व के फॉर्मूले पर लडऩे की सलाह दे रहे हैं। ऐसे में पार्टी का पूरा गणित गड़बड़ा रहा है। प्रदेश प्रभारी बनने के बाद से बावरिया ने भी पार्टी को एक सूत्र में बांधने की कोई कोशिश नहीं की है। इससे नेता अपनी डफली अपना राग अलाप रहे हैं। कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में 15 सालों से सत्ता से बाहर कांग्रेस अभी तक खुद फैसला नहीं कर पा रही है। खास बात यह है कि टीम राहुल से लेकर हर कोई काफी पहले से इस पर हामी भरता आया है कि मध्य प्रदेश में पार्टी जीत सकती है, बशर्ते फैसला जल्दी हो जाए।
दूसरे प्रदेश के नेता करेंगे प्रत्याशियों का सर्वे
प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस में अब चुनावी तैयारियां जोर पकडऩे लगी हैं। पार्टी द्वारा भी अब भाजपा की तरह अपने प्रत्याशियों के चयन के पहले उनके बारे में पूरी जानकारी जुटाई जाएगी। यह पूरी कवायद पार्टी संगठन द्वारा जीतने वाले प्रत्याशियों की खोज के लिए की जा रही है। इसके लिए पार्टी द्वारा समन्वयकों की तैनाती की जा रही है। खास बात यह है कि यह समन्वयक प्रदेश के कार्यकर्ताओं की जगह दूसरे प्रदेशों के कार्यकर्ताओं में से होंगे। इन समन्वयकों द्वारा पार्टी के लिए जिताऊ उम्मीदवारों की खोज की जाएगी। इसके अलावा वे प्रत्याशी बनने के दावेदारों की पूरी जानकारी जुटाकर उसे पार्टी हाईकमान को देंगेे। पार्टी सूत्रों की माने तो इसके लिए प्रदेश की कांग्रेस जिला इकाइयों तथा कुछ जिलों को मिलाकर बनाए जाने वाले जोन में प्रदेश के बाहर के करीब 84 नेताओं को समन्वयक नियुक्त किया जा रहा है।
- श्याम सिंह सिकरवार