02-Feb-2018 07:25 AM
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मप्र में वनीकरण के लिए वैकल्पिक वृक्षारोपण कंपनसेट्री अफोरस्ट्रेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथारिटी (कैंपा) में करीब 3300 करोड़ रुपए केंद्र के पास जमा हैं। केंद्र्र यह पैसा राज्य शासन को समय-समय पर भेजता है, लेकिन यहां के अफसर यह रकम वनीकरण की जगह अपनी सुविधाओं पर खर्च कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि करीब 500 करोड़ रूपए खर्च करने के बाद भी प्रदेश का वन क्षेत्र लगातार घट रहा है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की ताजा रिपोर्ट में 178 वर्ग किलोमीटर वन आवरण की कमी बताई गई है। 2012 तक वन आवरण 77 हजार 700 वर्ग किलोमीटर था जो सर्वे के मुताबिक 77 हजार 522 रह गया है।
दरअसल, वन विभाग कैंपा फंड का सही से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। एक बार फिर वन विभाग कैंपा फंड में जमा राशि पर ब्याज में मिले लगभग 80 करोड़ रुपए से वनों के विकास की जगह कैंपा शाखा के इन्फ्रास्ट्रक्चर और कर्मचारियों को वेतन दिया जाएगा। अधिकारियों का तर्क है कि कैंपा की गाइडलाइन में ब्याज के पैसे को अधिकारियों, कर्मचारियों के वेतन और विभाग के दूसरे खर्चों के लिए उपयोग करने की बात कही गई हैं। हालांकि डिनोटिफाई होने वाली वन भूूमि के बदले मिलने वाले इन रूपए के तथाकथित उपयोग ने कई सवाल उठा दिए हैं। गौरतलब है कि डिनोटिफाई होने वाली भूमि के बदले में वन विभाग को नए वन लगाने के लिए बजट दिया जाता है। यह बजट केंद्र्र सरकार के कैंपा फंड में जमा होता है। मप्र के कैंपा फंड में अब तक लगभग 3300 करोड़ रुपए जमा हो चुके हैं। केंद्र्र इसमें से 2009 से 2017 तक मप्र को 860 करोड़ रुपए दे चुका है। अधिकारियों का कहना है कि इसमें से लगभग 500 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, जबकि 360 करोड़ रुपए अभी भी राज्य के पास बचे हुए हैं।
कैंपा फंड से मिली इस राशि पर कैंपा शाखा को अब तक 80 करोड़ रुपए से ज्यादा का ब्याज मिल चुका है। ब्याज में मिलने वाली राशि के लिए अधिकारियों ने बैंक में एक और एकाउंट खोल रखा है। ब्याज में मिलने वाले इन करोड़ों रुपए का इस्तेमाल विभाग वन भूमि के लिए न करके पर्चेस और संविदा कर्मचारियों के वेतन पर खर्च कर रहा है। अधिकारियों का तर्क है कि ब्याज पर मिलने वाली राशि इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च की जाती है। अधिकारी इस पैसे से कम्प्यूटर, फर्नीचर खरीदने और संविदा कर्मचारियों को वेतन देने की बात कर रहे हैं। बीते साल इनमें से वन विभाग ने कैंपा मद के 5 करोड़ 36 लाख रुपए से वाहन, हथियार कम्प्यूटर आदि सामग्री खरीद ली है। बताया जाता है कि कैंपा की गाइडलाइन में कैंपा फंड से वाहन खरीदने का कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन विभाग के अफसर वन सुरक्षा और अधोसंरचना के नाम पर वाहन व अन्य सामग्री खरीदने में लगे हैं। एक तरफ जहां अधिकारी ब्याज से मिली राशि को इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ नए वन लगाने के लिए मिली मूल राशि में से भी लगभग 7 लाख रुपए केवल संविदा कर्मचारियों के वेतन पर खर्च कर दिए। कम्प्यूटर ऑपरेटर, टेलीफोन ऑपरेटर, वाहन चालक पर श्रमिकों को दिया गया मानदेय शामिल है। इसके अलावा विभाग ने गाडिय़ों और रिवॉल्वर की खरीद पर 12 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर दिए।
खास बात यह है कि अधिकारियों के पास कैंपा फंड से गैर वानिकी कार्यों पर खर्च राशि की तो पूरी जानकारी है, लेकिन वानिकी पर खर्च राशि का कोई हिसाब देने में वे हाथ खड़े कर देते हैं। तर्क दिया जाता है कि अभी तक पूरी जानकारी एकत्र नहीं हो पाई है। वन विभाग के अफसर हमेशा यह बात कहते हैं कि वृक्षारोपण के लिए पर्याप्त बजट नहीं है। लेकिन केंद्र से मिलने वाले इस फंड का दुरुपयोग किया जा रहा है। वन विभाग के अफसरों का दावा है कि वर्ष 2009 से अब तक करीब 62 हजार हैक्टेयर जमीन पर कैंपा फंड से वृक्षारोपण किया जा चुका है, जबकि वर्ष 2015 से अब तक 150 राइफल, 11 अनुसंधान विस्तार केंद्रों के लिए वाहन, ट्रक-ट्राला, 407 वाहन, बोलेरो, स्कॉर्पियो आदि वाहन खरीदे गए हैं। यही वजह है कि क्षतिपूर्ति वनीकरण धरातल के बजाय कागजों में अधिक हो रहा है। ज्ञात हो कि जिन संस्थाओं और फर्मों को गैर वानिकी गतिविधियों के लिए वन भूमि आवंटित की जाती है, उनके द्वारा वनीकरण के लिए केंद्र के मद में पैसा जमा किया जाता है। इससे कैंपा फंड तैयार होता है, जिससेे वनीकरण करना होता है। लेकिन पूर्व में पैसों का ठीक से इस्तेमाल न होने से इस राशि के उपयोग पर सवाल उठने लगे हैं।
पर्यावरण बचाने ग्रीन इंडिया मिशन
वन विभाग प्रदेश में पर्यावरण बचाने व प्रदूषण की रोकथाम के लिए ग्रीन इंडिया मिशन प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के लिए वल्र्ड बैंक से 24.64 मिलियन डालर यानी 150 करोड़ रुपए स्वीकृत हो चुके हैं। मप्र के 18 और छत्तीसगढ़ के 11 वन मंडलों को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना गया है। ग्रीन इंडिया मिशन पायलट प्रोजेक्ट जैव विविधता से समृद्ध वन क्षेत्र को ध्यान में रखकर मप्र और छत्तीसगढ़ के जंगलों में सबसे पहले चलाया जाना है। सूत्र बताते हैं कि पौधरोपण से जलवायु परिवर्तन की दिशा में बेहतर परिणाम के आधार पर यह फार्मूला देश के अन्य राज्यों में लागू किया जाएगा। दोनों राज्यों के जंगलों में पौधरोपण और वनकर्मियों के विशेष प्रशिक्षण के लिए 55-55 करोड़ और 40 करोड़ रुपए से अनुसंधान किया जाएगा। राज्य वन अनुसंधान संस्थान एसएफआरआई ने प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने की पूरी तैयारियां कर ली हैं।
-अक्स ब्यूरो