मोदी प्रभाव से गुटबाजी तेज
15-Jun-2013 07:29 AM 1234760

नरेंद्र मोदी को चुनाव कमान सौंपे जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी में जो भूचाल आया है उसका प्रभाव मप्र में स्पष्ट देखा जा सकता है। समझा जाता है कि टिकिट वितरण का समय आने तक मोदी का प्रभाव मध्यप्रदेश में स्पष्ट उभरकर सामने आएगा। मप्र के ज्यादातर नेता स्वाभाविक रूप से लालकृष्ण आडवाणी के करीब हैं। इससे पहले मोदी केंद्रीय राजनीति में नहीं थे इसी कारण नेताओं में मोदी समर्थक गुट जैसे किसी गुट का अस्तित्व ही नहीं था। लेकिन मोदी की सक्रियता बढऩे के साथ ही अब प्रदेश के भाजपा नेता पशोपेश में हैं और भविष्य की राजनीति का आंकलन करने में जुट गए हैं। लालकृष्ण आडवाणी के इस्तीफे के प्रहसन ने कई बड़े नेताओं को सचेत किया है तो कई ऐसे नेताओं को उत्साहित भी कर दिया है जो लूप लाइन पर होने के कारण प्रदेश की राजनीति में उतने सक्रिय नहीं थे।
देखा जाए तो उमा भारती को छोड़कर मध्यप्रदेश के किसी भी बड़े नेता ने लालकृष्ण आडवाणी के इस्तीफे के बाद उनके पक्ष में खुलकर सामने आने का साहस नहीं दिखाया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अवश्य अंतिम समय में लालकृष्ण आडवाणी को मनाने के लिए दिल्ली जाने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही इस्तीफा संकट का समाधान हो गया था। ग्वालियर में अधिवेशन के दौरान लालकृष्ण आडवाणी ने शिवराज सिंह चौहान को केंद्र की राजनीति में सक्रिय होने का आमंत्रण परोक्ष रूप से दिया था लेकिन चौहान भविष्य की राजनीति का संकेत समझ रहे थे। इसलिए उन्होंने स्वयं ही इस आमंत्रण को मीठे शब्दों में ठुकरा दिया और यह कहा कि वे मोदी तथा रमन सिंह के बाद तीसरे नंबर पर आते हैं। शिवराज के इस कथन से यह अर्थ निकलता है कि वह फिलहाल केंद्र की राजनीति में जाने के मूड में नहीं हैं और मध्यप्रदेश में ही सीमित रहकर प्रदेश में भाजपा को मजबूत करना चाहते हैं। इस मजबूती का फायदा आने वाले दिनों में उस समय मिल सकता है जब प्रधानमंत्री पद के लिए एक बार फिर भाजपा में भूचाल आएगा। क्योंकि आडवाणी को मनाते समय संघ ने आश्वासन दिया है कि प्रधानमंत्री पद के चयन के समय आडवाणी की भावनाओं का ख्याल रखा जाएगा। आडवाणी की भावना क्या है वे इसे मध्यप्रदेश में पहले ही व्यक्त कर चुके हैं। आडवाणी द्वारा लगातार प्रशंसाओं के बावजूद अपनी हद में ही रहने का शिवराज सिंह चौहान का फैसला दूरगामी है।
जहां तक मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का प्रश्न है तो वह फिलहाल शिवराज सिंह के इर्द-गिर्द ही केंद्रित है। विधायकों और मंत्रियों की हालत पतली होने के बावजूद अकेले शिवराज की छवि के सहारे भारतीय जनता पार्टी चुनावी नैया पार लगाने का सपना देख रही है। लेकिन मोदी की ताजपोशी से अब गुटबाजी तेज हो सकती है। खासकर वे नेता जो अरुण जेटली के करीबी माने जाते हैं, उभरकर सामने आ सकते हैं। क्योंकि मोदी की ताजपोशी में अरुण जेटली और सुरेश सोनी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भीतरी सूत्र यह बताते हैं कि टिकिट वितरण से लेकर जिम्मेदारियां तय करने के मामले में सुरेश सोनी प्रदेश में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। अनंत कुमार वे पहले व्यक्ति थे जो लालकृष्ण आडवाणी को मनाने के लिए उनके निवास पहुंचे थे। अनंत ने वर्ष 2009 में आडवाणी द्वारा उन्हें कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाने के लिए की गई जी तोड़ मेहनत का अहसान चुकाया है। यह बात अलग है कि उस समय वे अनंत को मुख्यमंत्री नहीं बनवा सके। लेकिन अब मध्यप्रदेश के प्रभारी के रूप में अनंत कितने प्रभावी होंगे यह कहना मुश्किल है। क्योंकि अनंत उमा भारती की तरह आडवाणी खेमें के नेता समझे जाते रहे हैं।
संतुलन बना रहे हैं शिवराज
जबसे आडवाणी ने शिवराज सिंह की तारीफ की है शिवराज स्वयं को निगुर्ट साबित करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। चुनाव की दृष्टि से यह जरूरी भी है। भाजपा की मुसीबत यह है कि शिवराज सिंह का नाम जनता की जुबान पर है, लेकिन स्थानीय नेताओं से लेकर विधायकों के प्रति जनता में बहुत आक्रोश है और यदि इस आक्रोश का समाधान चुनाव तक न हुआ तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनना असंभव है। शायद इसीलिए भाजपा के नगर ग्राम केंद्र संयोजकों ने साफ कह दिया है कि यदि पार्टी ने टिकिट वितरण सही तरीके से नहीं किया तो आगामी विधानसभा चुनाव में हालत पतली हो सकती है। हारे हुए विधायकों को तो प्राय: बदला ही जाएगा लेकिन कुछ वर्तमान विधायक भी बदले जा सकते हैं। सबसे बड़ी चुनौती मंत्रियों के टिकिट बदलने की है।

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