02-Feb-2018 07:03 AM
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छत्तीसगढ़ की राजनीति में राजघरानों की अच्छी पैठ है। हालांकि हर पार्टी में राजघरानों से आने वाले नेता अपने आप को उपेक्षित मानते हैं। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि देवव्रत सिंह रजवाड़ों की सियासी पार्टी को आकार दे सकते हैं। देवव्रत सिंह ने संकेत भी दिया है कि वे शून्य से राजनीति शुरू करेंगे। अभी वे अपने कुछ खास करीबी लोगों से रायशुमारी कर रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस में वापसी की संभावना को खारिज कर दिया है। उनके बयान से यह भी स्पष्ट है कि भाजपा में जाने के मूड में नहीं हैं। क्योंकि, उन्होंने कहा है कि कांग्रेस का सिस्टम कोलेप्स हो चुका है और भाजपा का भी कांग्रेसीकरण हो गया है।
अजीत जोगी के करीबी रहे, इसलिए उनकी पार्टी में जा सकते हैं। इस चर्चा पर यह कहकर विराम लगा दिया है कि जोगी कांग्रेस नई पार्टी है। उन्होंने एक बात और कही है कि वे किसी व्यक्ति से प्रभावित नहीं होते और न ही इस आधार पर किसी पार्टी में जाएंगे। इनके करीबी सूत्रों से मालूम हुआ है कि देवव्रत अपने खास लोगों से नई पार्टी बनाने को लेकर चर्चा कर रहे हैं। कांग्रेस से असंतुष्ट और दूरी बनाए हुए राजघरानों की उनसे चर्चा हो रही है। कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं तक यह बात पहुंच चुकी है।
देवव्रत राजनांदगांव की छह विधानसभा सीट खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, डोंगरगांव, खुज्जी, मोहला मानपुर से खुद के प्रत्याशियों को चुनाव में उतारने का विचार कर रहे हैं, जहां कांग्रेस के चार और भाजपा के दो विधायक हैं। कवर्धा, सरायपाली और सक्ती राजघराने को संगठित करने की कोशिश होगी। सक्ती राजघराने के सुरेंद्र बहादुर सिंह को पिछली बार कांगेस ने टिकट नहीं दिया था, जिससे वे बागी हो गए थे और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी बनकर चुनाव लड़े थे।
देवव्रत ने कवर्धा राजघराने के योगेश्वरराज सिंह से भी चर्चा की है। योगेश्वरराज अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से दो बार के विधायक रहे। 2008 और 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें चुनाव नहीं लड़ाया, जिससे नाराज होकर उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। योगेश्वरराज अब भी चुनाव में दो-दो हाथ करने का मद्दा रखते हैं। कवर्धा जिले में दो विधानसभा सीट कबीरधाम और पंडरिया है, दोनों ही सीटों पर भाजपा का कब्जा है। चर्चा यह भी है कि चुनावी राजनीति में राजघरानों के गठबंधन की एक कड़ी सरायपाली राजघराने के महेंद्र बहादुर सिंह भी हो सकते हैं। इसी महीने उन्होंने कांग्रेस पर उनके समेत कई पुराने नेताओं की अनदेखी और उपेक्षा का आरोप लगाया है। देवव्रत निश्चित तौर पर इनसे भी चर्चा करना चाहेंगे, ताकि महासमुंद जिले की चार सीट सरायपाली, बसना, खल्लारी व महासमुंद में प्रत्याशी उतारे जा सकें। चार सीटों में से तीन में भाजपा और एक में निर्दलीय विधायक हैं। महेंद्र बहादुर सिंह अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री, सात बार विधायक, एक बार राज्यसभा सांसद, छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर रह चुके हैं। महेंद्र बहादुर ने कांग्रेस छोडक़र जोगी कांग्रेस में जाने की घोषणा की थी, लेकिन फिर वापस कांग्रेस में आ गए थे। योगेश्वरराज सिंह कहते हैं कि कांग्रेस में हमारी उपेक्षा हुई थी, इसलिए हमने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इसका मतलब यह नहीं कि हम राजनीति से ही दूर हो गए हैं। देवव्रत सिंह राजघरानों को जोडक़र चुनाव लडऩे का विचार कर रहे हैं, तो निश्चित तौर पर हम उस पर विचार करेंगे।
भाजपा को दिख रहे हैं कई फायदे
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और खैरागढ़ राजपरिवार के सदस्य व पूर्व सांसद देवव्रत सिंह के पार्टी छोडऩे पर भाजपा संगठन को नई उम्मीद जगी है। देवव्रत कांग्रेस का दामन छोडऩे के बाद राजनांदगांव और कर्वा की पांच विधानसभा सीटों पर पार्टी की स्थिति मजबूत होगी। देवव्रत सिंह राजनांदगांव लोकसभा के सांसद रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि लोकसभा की आठ सीट पर प्रभावी भूमिका में रहेंगे। अब देवव्रत कांग्रेस के साथ नहीं है, ऐसे में पार्टी को सीधे-सीधे पांच सीटों का फायदा होता नजर आ रहा है। खैरागढ़ और मोहला-मानपुर में कांग्रेस विधायक हैं। पिछले चुनाव में देवव्रत की सक्रियता के कारण पार्टी ने इन दोनों सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, देवव्रत का प्रभाव राजनांदगांव, डोंगरगढ़, डोंगरगांव, खैरागढ़ और मोहला मानपुर विधानसभा क्षेत्रों में है। खैरागढ़ से तीन बार के विधायक रहने के कारण इस सीट को उनकी परंपरागत सीट के रूप में माना जाता है। ऐसे में इन पांचों सीटों पर पार्टी के वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी की उम्मीद की जा रही है। राजनीतिक हलके में चर्चा है कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भी देवव्रत सिंह से चर्चा की है और इस्तीफे के बाद की परिस्थितियों पर मंथन किया है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला