16-Jan-2018 08:22 AM
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एक तरफ प्रदेश सहित देशभर में उत्तरप्रदेश के विकास का ढिंढोरा पीटा जा रहा है वहीं दूसरी तरफ सिस्टम के सताए लोग अब पीएम नरेंद्र मोदी से इच्छा-मृत्यु की इजाजत मांग रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर प्रदेश के किस विकास का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। दरअसल उत्तरप्रदेश में जब से भाजपा की सरकार बनी है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। इसके इतर यह देखा जा रहा है कि राज्य में भय, भूख और भ्रष्टाचार तेजी से पैर पसार रहा है। योगी आदित्यनाथ के अब तक के शासनकाल में किसानों, शिक्षकों के अलावा करीब आधा दर्जन से अधिक लोगों ने प्रधानमंत्री से इच्छामृत्यु की मांग कर डाली है।
अक्सर लोग पीएम नरेंद्र मोदी से मदद की गुहार लगाते हैं लेकिन इस बार यूपी के 50 से ज्यादा लोग उनसे इच्छामृत्यु की इजाजत चाहते हैं। दरअसल यूपी के ये पचास लोग सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद प्रदेश के परिवहन निगम में नौकरी के लिए पिछले 29 साल से भटक रहे हैं। अब थक हारकर उन्होंने पीएम मोदी से इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी है। पीडि़तों का दावा है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद यूपी रोडवेज के अधिकारियों की अनदेखी ने पचास से ज्यादा लोगों को अब तक उनकी नौकरी नहीं दी है। लिहाजा उन्होंने इच्छामृत्यु के लिए प्रधानमंत्री को चि_ी लिखी है।
पूरा मामला यह है कि साल 1989 में उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में प्रशिक्षु अभ्यर्थियों की नियुक्ति होनी थी, लेकिन उस पर किसी वजह से रोक लग गई। इसके बाद ये लोग हाईकोर्ट पहुंचे। हाईकोर्ट ने इनकी बात सुनी और फैसला भी इन्हीं के हक में दे दिया, लेकिन यूपी सरकार के अधिकारियों पर कोर्ट के आदेश का असर नहीं हुआ। पीडि़त यूपी रोडवेज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के तत्कालीन मुख्य सचिव को तलब किया और फटकार लगाई। मुख्य सचिव ने कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल किया और साल 1996 तक नियुक्ति देने की बात कही। 1996 में राज्य में बीएसपी की सरकार थी। इनका दावा है कि बीएसपी सरकार में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को तो नियुक्तियां मिल गई लेकिन जब सामान्य वर्ग के लोगों की बारी आई तो उनसे पल्ला झाड़ लिया गया। पीडि़त सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद
29 सालों से यूपी रोडवेज के दफ्तर के धक्के खाकर थक चुके हैं। अब थक हारकर इन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इच्छामृत्यु की मांग
की है।
पीडि़तों का कहना है कि जब उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार आयी तो बड़ी चालाकी से अधिकारियों ने अनुसूचित और जनजाति वाले अभ्यर्थियों की नियुक्ति तो कर दी पर बाकी सामान्य वर्ग व पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों से पल्ला झाड़ लिया। उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में नियुक्तियों पर रोक की ये पहली कहानी नहीं है। अलग-अलग वक्त पर सरकारी नियुक्तियों पर रोक लगा दी जाती है, जिससे लोग बेरोजगार हो जाते हैं। साल 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी की दर 3.6 फीसदी है जबकि उत्तर प्रदेश में 6.8 फीसदी लोग बेरोजगार हैं।
2017 में 26 अपराधी ढेर
प्रदेश में कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सरकार को कठोर कदम उठाने पड़े। वर्ष 2017 में पूरे उत्तर प्रदेश में 895 पुलिस एनकाउंटर हुए जिसमें 26 अपराधियों को मार गिराया गया और 196 अन्य घायल हो गए। डीजीपी कार्यालय के मुताबिक वर्ष 2017 में जिन 26 अपराधियों को मार गिराया गया, उनमें से 17 केवल मेरठ जोन में हुए पुलिस एनकांउटर में मारे गए। इसमें मेरठ, नोएडा, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, सहारनपुर, मुजफ्फनगर, शामली, बागपत और बिजनौर जिले शामिल हैं। मेरठ के बाद आगरा जोन का नंबर आता है, जहां 175 एनकाउंटर हुए। इस दौरान 469 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया जबकि 17 गोली लगने से घायल हो गए। तीन बड़े अपराधी एनकाउंटर में मारे गए। मार्च 2017 में नई सरकार के गठन के साथ ही एनकाउंटर आम हो गए। कुल 2,186 अपराधी गिरफ्तार किए गए जिनमें से 1,680 के सिर पर इनाम था।
-मधु आलोक निगम