01-Jan-2018 10:45 AM
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त्तर प्रदेश में अपराध देश में सबसे अधिक होता है। इसके पीछे वजह यह बताई जाती है कि अपराधियों को इस राज्य में हमेशा सरकारी संरक्षण मिलता रहा है। हालांकि वर्तमान योगी आदित्यनाथ की सरकार अपराधियों के प्रति सख्त नजर आ रही है। प्रदेश में अपराध रोकने के लिए मौजूदा कानून ही पर्याप्त हैं, सिर्फ उन्हें ठीक से क्रियान्वित करने की जरूरत है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस कानून को राजनीतिक विरोधियों के दमन के मकसद से ला रही है जबकि सरकार का तर्क है कि मौजूदा कानून उतने कठोर नहीं हैं या फिर वो इतने पर्याप्त नहीं हैं जो कि इस तरह के अपराध पर नियंत्रण
लगा सकें।
सरकार का दावा है कि मौजूदा कानूनों के तहत भी अपराधियों पर कार्रवाई हुई है, यूपीकोका को कानून बनाकर इसका और विस्तार किया जाएगा। विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अपराधी सरकार की कार्रवाई से इस कदर डरे हुए हैं कि वो अपनी जमानत नहीं करा रहे हैं या फिर दूसरे राज्यों की जेलों में जाने की कोशिश कर रहे हैं।
दरअसल, यूपी में बीजेपी के नेतृत्व में जब से सरकार बनी है, कानून व्यवस्था के मुद्दे पर उसे सदन के भीतर और बाहर आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा है, लेकिन सरकार अपनी पीठ थपथपाने के लिए सैकड़ों मुठभेड़ और उनमें मारे गए दर्जनों कथित अपराधियों का आंकड़ा पेश करती है। सरकार ने छह महीने पूरे करने पर बताया था कि इस दौरान राज्य में 420 मुठभेड़ हो चुकी हैं जिनमें 15 अपराधी मारे जा चुके थे और ये भी कि सिलसिला बदस्तूर जारी है। मुठभेड़ और उनमें मारे गए लोगों की बड़ी संख्या के चलते राज्य सरकार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नोटिस भी मिल चुका है।
यूपीकोका विधेयक में संगठित अपराध को विस्तार से परिभाषित किया गया है जिसमें अपहरण, जबरन ठेके हथियाना, जमीन पर कब्जा करना, अवैध वसूली से लेकर मादक पदार्थों और मानव तस्करी तक को रखा गया है। इन सब अपराधों के लिए कड़ी सजा और जुर्माने का प्रावधान है। सजा की अधिकतम सीमा मृत्युदंड तक निर्धारित है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में न तो अपराध संगठित हैं और न ही अपराधों को रोकने के लिए कानून की कोई कमी है। वो कहते हैं, सरकार सीधे तौर पर तो कह नहीं सकती कि ये कानून मुसलमानों के खिलाफ, दलितों के खिलाफ या फिर उन लोगों के लिए है जो उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। हमारे सामने टाडा का उदाहरण है जिसमें पुलिस ही व्यक्ति को अपराधी ठहरा देती थी और लोग उस अपराध में 15-15 साल तक जेलों में रहे जो उन्होंने किया ही नहीं था। जिलानी के मुताबिक यूपी में महाराष्ट्र या फिर किसी अन्य राज्य की तरह अपराध संगठित तरीके से नहीं होते हैं और न ही उनका कोई बहुत अंतरराष्ट्रीय या दूसरे राज्यों के गिरोहों से संबंध है।
लेकिन उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके प्रकाश सिंह कहते हैं कि संगठित अपराध किसी राज्य की सीमा में नहीं बंधे हैं और इस तरह के अपराधों से निपटने के लिए खुद केंद्र सरकार को कानून बनाने की जरूरत है। प्रकाश सिंह कहते हैं, जब अपराधी तेज गति से चल रहा है तो कानून को भी अपना दायरा बढ़ाना होगा। मौजूदा कानून कम नहीं हैं लेकिन कुछ-न-कुछ उनकी कमजोरियां जरूर हैं जिनकी वजह से अपराधियों के खिलाफ इतनी कठोर कार्रवाई नहीं हो पाती और अपराधी इसी का फायदा उठाते हैं।
ऐसे कठोर कानून की क्या जरूरत?
विधेयक के मुताबिक प्राधिकरण के अध्यक्ष गृह विभाग के प्रमुख सचिव होंगे। इसके अलावा तीन अन्य सदस्य अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था), अपर पुलिस महानिदेशक (अपराध) और विधि विभाग के विशेष सचिव स्तर के अधिकारी शामिल होंगे, जो सरकार की ओर से मनोनीत होंगे। जानकार कहते हैं कि इतने आनन-फानन में ऐसे विधेयक की कोई जरूरत नहीं थी। उनके मुताबिक, दरअसल, सरकार कानून-व्यवस्था पर काफी घिरी हुई है। मुख्यमंत्री अपराधियों को रोज धमकी भले ही देते हों, अपराध कहीं से कम नहीं हो रहे हैं और ये जो अपराध हो रहे हैं, उनके लिए यूपीकोका की नहीं बल्कि आईपीसी और सीआरपीसी ही पर्याप्त हैं। संगठित अपराध के तौर पर देखा जाए तो यूपी में नक्सल समस्या इतनी विकट नहीं है, डकैतों का भी लगभग खात्मा हो चुका है, पूर्वांचल की कथित माफियागिरी शांत पड़ चुकी है।
-मधु आलोक निगम