सियासत के रजनीकांत!
16-Jan-2018 08:20 AM 1235011
सियासत के मैदान में रजनीकांत के उतरने से तमिलनाडु के लिए क्या मायने निकलते हैं? चाहे वे कामयाब रहें या नाकाम, सियासत के मैदान में उनका आना किसी बुलबुले की तरह नहीं, वह बड़ी हिलोर पैदा करेगा। रजनीकांत के राजनीति में आने के इशारे 2016 में रिलीज हुई फिल्म कबाली से ही मिल गए थे। इस फिल्म में उस्तादों के उस्ताद यानी डॉन कबाली की भूमिका में रजनीकांत एक विलेन (खलनायक) की हेकड़ी दुरुस्त करने के बाद उससे उसके बॉस को संदेश देने को कहते हैं-नान वंथुतेनू सोल्लू। थिरुम्बी वंथुतेनू। 25 वर्षथुकू मुन्नाडी इप्पाडी कबाली अप्पाडिए थिरुम्बी वंथुतान्नू सोलू (जाओ, जाकर उन लोगों से कह दो कि मैं लौट आया हूं और मैं वैसा ही हूं जैसा 25 साल पहले जाते वक्त था)। तमिल फिल्मों के सुपरस्टार 67 वर्षीय रजनीकांत ने बीते साल के आखिरी दिन चेन्नई के श्री राघवेंद्र कल्याण मंडपम में एलान किया की, मैं अब राजनीति में आ रहा हूं। यह आज की सबसे बड़ी जरूरत है।Ó रजनीकांत के अनुसार अगले विधानसभा चुनावों में वे राज्य की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे और इस चुनाव से पहले ही अपनी नीतियों और वादों के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे। रजनीकांत ने अपने इस फैसले के पीछे का कारण तमिलनाडु की राजनीति में आए संकट को बताया है। उन्होंने कहा, राजनीति की दशा काफी खराब हो गई है। आज राजनीति के नाम पर नेता हमसे हमारा पैसा लूट रहे हैं और अब इस राजनीति को जड़ से बदलने की जरूरत है। सारे राज्य हमारा मजाक बना रहे हैं। अगर मैं राजनीति में नहीं आता हूंं तो यह लोगों के साथ धोखा होगा।Ó सियासत के मैदान में रजनीकांत के उतरने से तमिलनाडु के लिए क्या मायने निकलते हैं? चाहे वे कामयाब रहें या नाकाम, सियासत के मैदान में उनका आना किसी बुलबुले की तरह नहीं, वह बड़ी हिलोर पैदा करेगा। और इसकी वजह भी है, रजनीकांत जयललिता के वक्त के गुजर जाने के बाद मैदान में उतरे हैं यानी एक ऐसे समय में जब सूबे में सियासी तौर पर एक खला (शून्य) मौजूद है। इसमें इतना और जोड़ लें कि करुणानिधि की तबियत खराब चल रही है और एम के स्टालिन मतदाताओं को लुभाने में नाकाम हैं (आरके नगर सीट पर उपचुनाव हुए तो डीएमके को जमानत तक गंवानी पड़ी)। चेन्नई में मजाक चल रहा है कि थेलापतिÓ स्टालिन की जगह रील-लाइफ के थेलापतिÓ (थेलापति का अर्थ होता है सेनापति। इस नाम से 1991 में मणिरत्नम ने फिल्म बनायी थी। फिल्म में रजनीकांत मुख्य भूमिका में थे) रजनीकांत लेने वाले हैं। सत्ताधारी एआईएडीएमके के भीतर बगावती तेवर अपनाने वाले टीटीवी दीनाकरण के साथ कलह चल रही है, दीनाकरण पार्टी के भीतर सत्ता के एक अलग छोर बनकर उभरे हैं। ऐसे में 2017 का पूरा साल एआईएडीएमके भीतर अंदरुनी कलह में गुजरा है, प्रशासन का मामला पीछे हो गया है। अभिनेता से नेता बने रजनीकांत का स्वागत इसी कारण जोर-शोर से हो रहा है, लोगों को उनके भीतर उम्मीद की किरण नजर आ रही है। हालांकि तमिलनाडु की सियासत पर दो द्रविड़ पार्टियां का दबदबा है लेकिन इसका मतलब यह कत्तई नहीं कि सूबे में किसी तीसरी पार्टी के लिए गुंजाइश ही नहीं है। एक दशक पहले एक्टर विजयकांत ने सूबे की सियासत में कदम रखा था और उन्हें 2006 के विधानसभा चुनावों में जयललिता और करुणानिधि के मैदान में होते कुल 10 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन विजयकांत अपने बुनियादी जनाधार को देर तक थामे नहीं रह सके और इसी कारण वे अपनी बढ़त गंवा बैठे। रजनीकांत किसी भी पैमाने पर उनसे बड़े स्टार हैं और विजयकांत की तुलना में लोगों में उनकी अपील भी ज्यादा है। रजनीकांत को तमिलनाडु में तकरीबन देवता-सरीखा माना जाता है और यह बात एकदम तय है कि उन्होंने जनसंपर्क अभियान चलाया, मिसाल के लिए पदयात्रा जैसा कोई कार्यक्रम बनाया तो लोग उनसे जुड़ेंगे। एक ब्रांड के तौर पर तमिलनाडु में रजनीकांत के नाम का समझिए कि सिक्का चलता है। लोगों में रजनीकांत को लेकर सदभाव है और लोग रजनीकांत के प्रभामंडल को उनकी सादगी के विस्तार के तौर पर देखते हैं। अगर उन्होंने पार्टी बनाकर उसे पटरी पर दौड़ाए रखा तो फिर चाहे वे राजा बनकर ना उभरें लेकिन बाकी महारथियों के रथ का चक्का जाम करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता। लेकिन अभी जो नजर आ रहा है वह मीडिया का रचा हुआ जादू है। रजनीकांत की असली परीक्षा तो अभी आगे होने वाली है। नई पार्टी की घोषणा के दौरान चेन्नई के राघवेन्द्र कल्याण मंडपम् में जो लोग जुटे थे, उनमें से ज्यादातर सुपरस्टार रजनीकांत के मोहपाश में बंधकर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे थे, उनके मन में रील-लाइफ के रजनीकांत और रियल-लाइफ के रजनीकांत का फर्क गड्मड्ड हो गया था। लेकिन शुरुआती आतिशबाजी से पैदा गुब्बार जब थमेगा तो रजनीकांत को विवादास्पद मुद्दे पर अपना मत स्पष्ट करना पड़ेगा। अभी तमिलनाडु समेत पूरे भारत में लोगों को नहीं पता कि किस विवादास्पद मुद्दे पर रजनीकांत की क्या सोच है। रजनीकांत को बाहरी आदमीÓ के ठप्पे से भी निपटना होगा। रजनीकांत का जन्म कर्नाटक में हुआ है और इस नाते अभी उनसे यह सवाल पूछा जा रहा है कि कावेरी जल-विवाद पर आपका क्या रुख है। ऐसे सवाल पूछने वाले लकीर के फकीर नेताओं को यह बात समझनी होगी कि वे जितनी बारीक नुक्ताचीनी करेंगे रजनीकांत को उतनी ही अहमियत मिलती जाएगी और मोल-तोल करने की रजनीकांत की ताकत बढ़ती जाएगी। जयललिता की जगह तमिलनाडु में जयललिता के निधन के बाद राजनीति में रजनीकांत की एंट्री देखकर यह लगता है कि वे जयललिता की जगह लेने आए हैं। रजनीकांत के राजनीति में आने पर एक संभावना यह है कि उन्हें लोगों का भारी समर्थन मिले और इससे रजनीकांत को काफी फायदा हो। लेकिन साथ ही उन्हें कुछ नुकसान भी हो सकते हैं। उन्हें कई ऐसे सवालों और स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है जिनका सामना उन्होंने असल जिंदगी में अब तक नहीं किया होगा। स्वीकार्यता का दायरा सीमित बतौर सुपरस्टार रजनीकांत को पसंद करने वाले लोगों की संख्या असीमित है। जो लोग उन्हें पसंद करते हैं, वे किसी खास जाति, धर्म, क्षेत्र, वर्ग या विचारधारा से नहीं जुड़े हैं। बतौर कलाकार उन्हें पसंद करने वालों का दायरा बेहद व्यापक है। लेकिन उनके राजनीति में कदम रखते ही यह स्थिति बदल गई है। अब रजनीकांत खुद किसी न किसी खास विचारधारा के प्रतीक बन जाएंगे। उन्हें मौके पर जाति, धर्म, क्षेत्र या वर्ग की राजनीति चाहे-अनचाहे करनी ही पड़ेगी। माना जा रहा है कि ऐसे में राजनेता रजनीकांत की स्वीकार्यता का दायरा उतना व्यापक नहीं रह पाएगा जितना अभिनेता रजनीकांत का है। कुल मिलाकर राजनीति में आने पर उनकी अपने कई प्रशंसकों से दूरी बन जाएगी। रजनीकांत को बतौर अभिनेता तमिलनाडु के लोग ही नहीं बल्कि बाहर के लोग भी बहुत पसंद करते हैं। बतौर कलाकार, उन्हें इस सवाल का सामना उतना आक्रामक और तीखे ढंग से नहीं करना पड़ता कि वे तमिलनाडु के हैं या बाहर के। लेकिन अब उनसे यह सवाल बार-बार पूछा जाएगा। तमिलानाडु की राजनीति में बार-बार उनके बाहरी होने का आरोप लगेगा। -इन्द्र कुमार
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