03-Feb-2018 06:01 AM
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मप्र में सरकारी बंगले और अन्य सुविधाओं का लाभ उठा रहे पूर्व मुख्यमंत्रियों से यह सुविधाएं छिन सकती हैं। इस संदर्भ में गत दिनों वरिष्ठ सचिव समिति की बैठक में विचार-विमर्श किया गया। दरअसल हाल ही में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब तलब किया है। उसके बाद सरकार इस मसले पर विचार कर रही है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश के मामले में पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर मिलने वाले बंगले और अन्य सुविधाओं को गैर कानूनी ठहरा दिया था। इस फैसले के बाद पूरे देश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली सुविधाओं पर संकट खड़ा हो गया था। इस फैसले का असर मध्यप्रदेश में भी पड़ा था। लेकिन मप्र के पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर मिलने वाली सुविधाओं में कोई कटौती नहीं करने का निर्णय गत वर्ष विधानसभा के मानसून सत्र में विधेयक पारित कर लिया गया।
मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं देने में संभवत: देश में सबसे उदार राज्य है। यहां पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले तो दिए ही गए हैं कैबिनेट मंत्री के समान वेतन और भत्ते, सुरक्षा, प्रोटोकाल सहित सारी सुविधाओं से नवाजा गया है। मध्यप्रदेश के बाहर से निर्वाचित पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा से जरूर इन सुविधाओं को छीना गया है। प्रदेश में इस समय चार पूर्व मुख्यमंत्रियों कैलाश जोशी, दिग्विजय सिंह, उमा भारती और बाबूलाल गौर को राजधानी भोपाल में सरकारी आवास दिए गए हैं। इसके अलावा सरकारी वाहन सहित स्टाफ भी मुहैया कराया गया है। दिग्विजय सिंह और उमा भारती (अब उत्तरप्रदेश से) सांसद हैं, बाबूलाल गौर विधायक हैं। अब एक बार फिर इनके सरकारी बंगले पर खतरा मंडराने लगा है।
दरअसल मप्र वेतन भत्ता अधिनियम की धारा 5 में सरकार की ओर से किये गए संशोधन पर सवाल उठाए गए थे। संशोधन में पूर्व मुख्यमंत्रियों को मौजूदा मंत्रियों के समान वेतन, भत्ता और बंगला देने का प्रावधान किया गया है। आपको बता दें कि रौनक यादव नाम के एक लॉ स्टूडेंट की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि मध्यप्रदेश मंत्री, वेतन एवं भत्ते अधिनियम 1972 के मुताबिक मुख्यमंत्री को अपना पद खत्म होने के एक माह बाद बंगले सहित सभी सुविधाएं छोड़ देनी चाहिए, जिसके खिलाफ जाकर याचिका में प्रदेश सरकार के अलावा पूर्व मुख्यमंत्रियों कैलाश जोशी, दिग्विजय सिंह और उमा भारती को भी पक्षकार बनाया गया है।
इस याचिका में कहा गया है कि प्रदेश सरकार ने 24 अप्रैल 2016 को एक आदेश जारी करके पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन बंगले की सुविधाएं देने का प्रावधान कर दिया, जबकि ऐसा करना ना सिर्फ मौजूदा कानूनों के खिलाफ है, बल्कि जनता के पैसों का दुरुपयोग भी है। याचिकाकर्ता का कहना है कि पद से हटने के बाद किसी भी मुख्यमंत्री के नाम पर सरकारी बंगले का आवंटन जारी रहने को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार बनाम लोकप्रहरी केस में गलत ठहराया है। इन आधारों के साथ दायर इस याचिका में हाईकोर्ट से हस्तक्षेप करने की राहत चाही गई है। इसी मामले में हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब तलब किया है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को कैबिनेट मंत्री की रैंक दी थी। इसमें शर्त थी कि यह सुविधा पूर्व मुख्यमंत्रियों को तब तक मिलेगी जब तक वे लोकसभा, राज्यसभा या विधानसभा के सदस्य रहेंगे। शिवराज सरकार ने इसमें एक कदम आगे बढ़कर कैबिनेट मंत्री की रैंक के साथ ही उन्हें इसी स्तर के वेतन भत्ते सहित सारी सुविधाएं दे दीं। अब एक बार फिर हाईकोर्ट की सख्ती के बाद वरिष्ठ सचिव समिति ने इस मामले पर विचार विमर्श किया है।
आवास आवंटन पर सरकार से जवाब तलब
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास आवंटित किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति एच.पी. सिंह की युगल पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। विधि स्नातक छात्र रौशन यादव की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि प्रदेश सरकार ने 24 अप्रैल, 2016 को एक आदेश पारित किया था, जिसके अनुसार प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को मंत्रियों के समान वेतन व भत्तों का लाभ मिलेगा और सरकारी बंगला भी उनके नाम पूरी उम्र आवंटित रहेगा। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विपिन यादव ने बताया कि याचिका में पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को लेकर आए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया है कि जन प्रहरी विरुद्ध उप्र सरकार के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय ने पद से हटने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री के नाम सरकारी बंगला आवंटन व रहवास को गलत बताया है।
- श्याम सिंह सिकरवार