16-Jan-2018 08:18 AM
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उत्सव प्रेमी मप्र सरकार ने अपनी संस्कृति और सभ्यता को संरक्षित करने की दिशा में एक और मील का पत्थर स्थापित किया है। इस बार सरकार ने सम्राट विक्रमादित्य की परंपरा को जीवित करने के लिए भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में 2100 साल बाद शैव महोत्सव का आयोजन किया। भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में सामाजिक समरसता, समृद्धि और विश्व कल्याण की कामना के साथ भव्य स्तर पर तीन दिवसीय शैव महोत्सव का आयोजन किया गया। इस आयोजन में देश के प्रख्यात धर्मचार्य, धर्म गुरू, संत महात्मा शामिल हुए। इस आयोजन की सफलता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 12 ज्योतिर्लिंगों से 364 प्रतिनिधियों ने इसमें भागीदारी की। अब अगला आयोजन 2019 में गुजरात के सोमनाथ मंदिर में होगा। इसके लिए सोमनाथ से आए पुजारी-पुरोहित और ट्रस्ट पदाधिकारियों को शैव महोत्सव का संवाहक रजत ध्वज दंड सौंपा गया।
शैव महोत्सव के रूप में आयोजित धर्म और संस्कृति के अनूठे समागम की परिकल्पना पुजारी प्रदीप गुरु ने 2014 में तैयार की थी। 4 साल बाद 1 जनवरी 2018 को महाकाल के आंगन में धर्म ध्वजा आरोहण के साथ कल्पना साकार हुई। इसी दिन महाकाल प्रवचन हॉल में कला संगम की शुरुआत की गई। चार दिन देश के विभिन्न हिस्से से आए 31 कलाकरों ने शिव के विभिन्न रूपों पर चित्र बनाए। कलाकारों की तुलिका से आकार लिए शिव के विभिन्न रूपों को शैव प्रदर्शनी में लोगों के अवलोकनार्थ प्रदर्शित किया गया। 5 जनवरी को संत उदासीन आश्रम में महोत्सव का विधिवत उद्घाटन हुआ। भानपुरापीठ के शंकराचार्य स्वामी दिव्यानंदजी तीर्थ के सानिध्य में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दीप प्रज्जवलित कर समारोह का शुभारंभ किया। अध्यक्षता मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने की। इसके दूसरे दिन 4 सत्रों में 16 संगोष्ठियां हुई। इसमें देशभर से आए विद्वानों ने ज्योतिर्लिंगों की पूजन परंपरा, समरसता, मंदिर प्रबंधन, स्थापत्यकला, भारतीय दर्शन व संस्कृति आदि पर मंथन किया।
शैव महोत्सव के दूसरे दिन चार पीठों पर आयोजित प्रबोधन के मंथन में परंपरा, पूजन पद्धति का अमृत निकला। संगोष्ठी में प्राचीन मन्दिरों के प्रबंधन, संरक्षण और संस्कृति में उनके योगदान पर विचार-विमर्श किया गया। इसमें माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीके कुठियाला ने कहा कि प्राचीन समय में देवस्थलों में शिक्षण के माध्यम से बच्चों को आध्यात्मिक जीवन में उन्नति करने की शिक्षा प्रदाय की जाती थी। देवालयों का प्रबंधन एवं संरक्षण यदि उचित तरीके से करना है तो आमजन को भी इसमें सहभागिता करनी होगी। शासन-प्रशासन द्वारा तो देवालयों के विकास के लिए लगातार कार्य किए ही जाते हैं, लेकिन जनता के सहयोग के बिना पूर्ण रूप से संरक्षण, रखरखाव संभव नहीं है। देवालय भारतीय समाज के परिवर्तन का केन्द्र बन सकते हैं, लेकिन जन-जन की सहभागिता इसमें जरूरी है। देवालयों को राजनीति से दूर रखना चाहिए।
बांसुरी की तान के साथ मलखंब के रंग
शैव महोत्सव में धर्म के साथ ही संस्कृति की भी झलक देखने को मिली। आयोजन के दौरान शाम मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट पर सांस्कृतिक सांझ सजी। शुभारंभ भव्य शिप्रा आरती के साथ हुआ। इसके बाद देश की पहली महिला बांसुरी वादक स्मिता रेड्डी का बांसुरी वादन हुआ। सुरमयी सांझ का समाहार मलखंब से हुआ। कार्यक्रम में उज्जैनवासियों के साथ 12 ज्योतिर्लिंग के पुजारी-पुरोहित शामिल हुए। नेपाल के काठमांडू से आया दल प्राचीन परंपराओं को देख प्रभावित हुआ। पशुपति क्षेत्र विकास कोस के प्रशासनिक अधिकारी गौरीशंकर पराजुली ने बताया सम्राट विक्रमादित्य की नगरी में शिप्रा तट आकर दिव्य अनुभूति हो रही है। नेपाल में विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत की मान्यता है। इस नाते उज्जैनवासी हमारे भाई हैं। संत उदासीन आश्रम में लगी शैव कला प्रदर्शनी में नगरवासियों को भारत की प्राचीन सभ्यता, धर्म के वैज्ञानिक पक्ष, जैविक खेती के लाभ तथा हस्त शिल्प कला के दर्शन हो रहे हैं। बाबा मौर्य की प्रदर्शनी में शिव तत्व के वैज्ञानिक पक्ष को दर्शया गया है।
-कुमार राजेंद्र