16-Jan-2018 07:59 AM
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महाराष्ट्र, और देखा जाये तो पूरे भारत में, जाति विवादों को लेकर एक विस्फोटक स्थिति बनी हुई है, जिसकी चिंगारी लगातार सुलगती रहती है। इस चिंगारी को भड़काने में राजनीतिक पार्टियां घी का काम करती हैं। नए साल की पहली तारीख को पुणे से शुरू होकर पूरे महाराष्ट्र में फैलने वाला दलित आंदोलन इतिहास के पन्नों पर दर्ज घटनाक्रम को लेकर की गई सियासत का परिणाम है। यह दलित आंदोलन सिर्फ 200 साल पुराने ब्रिटिश-पेशवा युद्ध से ही संबंध नहीं रखता। यह सियासत गर्माने के पीछे इतिहास के और भी कई पन्नों को उधेड़ा जा रहा है। भीमा कोरेगांव युद्ध स्मारक पर 1 जनवारी को उमड़े लाखों दलितों के साथ शुरू हुए मराठा समुदाय के संघर्ष की पृष्ठभूमि दो दिन पहले ही तैयार हो गई थी।
पुणे से करीब 30 किलोमीटर दूर अहमदनगर रोड पर स्थित भीमा कोरेगांव के निकट ही वढू बुदरक गांव है। भीमा नदी के किनारे स्थित इसी गांव में औरंगजेब ने 11 मार्च, 1689 को छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र और तत्कालीन मराठा शासक संभाजी राजे भोसले और उनके साथी कवि कलश को निर्दयतापूर्वक मार दिया था। कहा जाता है कि औरंगजेब ने संभाजी राजे के शरीर के चार टुकड़े करके फेंक दिए थे। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उसी गांव में रहने वाले महार जाति के गोविंद गणपत गायकवाड़ ने मुगल बादशाह की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए संभाजी के क्षत-विक्षत शरीर को उठाकर जोड़ा और उनका अंतिम संस्कार किया। इसके फलस्वरूप मुगलों ने गोविंद गायकवाड़ की भी हत्या कर दी थी।
गोविंद गायकवाड़ को सम्मान देने के लिए वढू बुदरक गांव में छत्रपति संभाजी राजे की समाधि के बगल में ही गोविंद की समाधि भी बनाई गई है। बताया जाता है कि भीमा कोरेगांव में पेशवा-ब्रिटिश युद्ध की 200वीं बरसी धूमधाम से मनाए जाने के अवसर पर वढू बुदरक गांव में गोविंद गायकवाड़ की समाधि को भी सजाया गया था। लेकिन 30 दिसंबर, 2017 की रात कुछ अज्ञात लोगों ने इस सजावट को नुकसान पहुंचाया और समाधि पर लगा नामपट क्षतिग्रस्त कर दिया। स्थानीय दलितों का कहना है कि यह काम मराठा समाज के कुछ उच्च वर्ग के लोगों ने श्री शिव प्रतिष्ठान के संस्थापक संभाजी भिड़े गुरु जी और समस्त हिंदू आघाड़ी के अध्यक्ष मिलिंद एकबोटे के भड़काने पर किया। दलित-मराठा संघर्ष की पृष्ठभूमि में इस घटना का भी बड़ा योगदान माना जा रहा है।
वास्तव में शर्मनाक ये है कि दो शतक से जाति संबंधित विवाद शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। इससे साफ जाहिर होता है कि यह बवंडर 2019 में एक अहम् राजनीतिक मुद्दा रहेगा और खासकर उन राजनीतिक गुटों के लिए जो जातिवादी विवाद के बीज बोते हैं। लोक सभा चुनावों के अलावा, साल 2019 में महाराष्ट्र की जनता यह तय करेगी कि क्या वह 2024 तक भाजपा और देवेंद्र फड़णवीस को मुख्यमंत्री के रूप में जनादेश देना चाहती है। चुनावी दृष्टिकोण से भाजपा कतई नहीं चाहती कि लोगों में ये सन्देश जाये कि वो दलितों के साथ नहीं है। हालांकि महाराष्ट्र में विपक्ष इसी को भुनाना चाहती है। महाराष्ट्र में 10 फीसदी से ज्यादा दलित मतदाता हैं और 288 विधानसभा सीटों में से करीब 60 सीटें ऐसी हैं जहां दलित मतदाता किसी राजनीतिक खिलाड़ी के लिए अहम् साबित हो सकते हैं।
महाराष्ट्र अराजकता की ओर बढ़ रहा
फडणवीस सरकार की सहयोगी शिवसेना का कहना है कि महाराष्ट्र अराजकता और विध्वंस की ओर बढ़ रहा है। दरअसल हाल ही में मुंबई के कांदिवली में शिवसेना के पूर्व पार्षद अशोक सावंत की हत्या कर दी गई। इसी तरह राज्य में कई घटनाएं घटित हो रही हैं। शिवसेना ने अपने मुखपत्र के माध्यम से महाराष्ट्र की भाजपा सरकार पर हमला बोला है। मुखपत्र में लिखा है कि दलित बंद आयोजित कर रहे हैं और हिंदुत्ववादी संगठन मोर्चा निकाल रहे हैं। ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र समृद्धि की ओर बढऩे की बजाय जाति संघर्ष की ओर बढ़ रहा है। कोल्हापुर में छत्रपति शिवाजी की मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। ऐसा लगता है राज्य में कानून व्यवस्था पर सरकार का कंट्रोल नहीं है।
-ऋतेन्द्र माथुर