19-Jul-2017 09:07 AM
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प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के आभामंडल से भारतीय ही नहीं बल्कि पूरा विश्व प्रभावित है। मोदी जिस भी देश में जाते हैं अपनी छाप वहां के निवासियों और शासक दोनों पर छोड़ आते हैं। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री ने जिन देशों की यात्रा की वहां का माहौल मोदीमय हो गया। खासकर अमेरिका, इजरायल में उनका जैसा स्वागत हुआ उससे पूरा विश्व आश्चर्य चकित है। इससे यह देखने को मिला की देश में अब तक के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशी नेताओं के बीच भी बेहद पॉपुलर हैं। पीएम मोदी की लोकप्रियता की बानगी उनके जी-20 समिट के दौरान भी देखने को मिली। सम्मेलन के दूसरे दिन जर्मनी के हैम्बर्ग में जी-20 सम्मेलन के लिए दुनिया के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा लगा हुआ था। लेकिन सबका आकर्षण मोदी को लेकर था। यही नहीं सीमा पर तनाव के बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है। चीनी राष्ट्रपति ने आतंकवाद के खिलाफ भारत के मजबूत संकल्प को सराहनीय बताया। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ भारत के कड़े रुख और ब्रिक्स देशों के बीच सामंजस्य स्थापित करने में पीएम मोदी की भूमिका की सराहना की।
इजरायल यात्रा ने तो मोदी को और पावरफुल बना दिया है। आजादी के बाद पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री की इजरायल यात्रा को भारत की विदेश नीति में बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। भारत के मध्य-पूर्व के देशों से संबंधों पर इस यात्रा पर क्या असर पड़ेगा इस पर सबकी निगाह रहेगी। इतना जरूर है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा ने हमारी मध्य-पूर्व नीति में बदलाव का संकेत दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इजरायल यात्रा कई दृष्टियों से अहम है। मोटे तौर पर यह यात्रा भारत की मध्य-पूर्व की विदेश नीति में बदलाव का संकेत दे रही है। वर्ष 1992 की 29 जनवरी को भारत-इजराइल के बीच पूर्ण औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे। इस यात्रा का महत्व इसलिए भी है क्योंकि आजादी के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली इजराइल यात्रा है। यह यात्रा भारत की इजरायल-फिलिस्तीन के प्रति नीति में बदलाव भी ला रही है।
अब तक भारतीय नेता दोनों देशों की यात्रा करते रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा जब मोदी इजरायल तो गए हैं लेकिन फिलिस्तीन नहीं। यही कारण है कि इजरायल, प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। प्रधानमंत्री मोदी का जिस तरह अपूर्व स्वागत हुआ, वैसा इससे पूर्व केवल अमरीकी राष्ट्रपति एवं पॉप का ही हुआ है।
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा में 18 से ज्यादा कार्यक्रमों में इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू की उपस्थिति बनी रही। इस यात्रा से ज्यादा नुकसान शायद फिलिस्तीन को हो सकता है। फिलिस्तीन के कमजोर होते समर्थन के बीच ही भारत जैसे समर्थक देश ने भी उसके प्रति अपनी नीति में बदलाव कर लिया है।
भारत के इजरायल के करीब जाने से भारत को अमरीका से संबंधों में कुछ फायदा हो सकता है क्योंकि इन दोनों देशों के संबंध काफी मधुर रहे हैं। जहां तक इजरायल से भारत के मजबूत संबंधों का मध्य-पूर्व पर प्रभाव पडऩे का सवाल है ऐसा लगता नहीं कि इसका कोई असर पड़ेगा। मध्य-पूर्व के कई देशों के भी इजरायल के अच्छे रिश्ते हैं और मध्य-पूर्व के देशों में फिलिस्तीन के प्रति पहले जैसा उत्साह नहीं रह गया है।
पाकिस्तान का इन देशों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं है जिससे वह इनको भारत-इजरायल संबंधों के चलते प्रभावित कर सके। भारत-इजरायल के मजबूत होते संबंधों का फायदा इजरायल को ही अधिक मिलेगा। इजरायल का यूरोप में हथियारों का बाजार सीमित हो रहा और उसे नए बाजार की तलाश है। भारत के रूप में उस हथियारों का बड़ा बाजार मिलेगा। हथियारों की खरीद के लिए इजराइल भारत का 5वां सबसे बड़ा स्रोत है। भारत ने एक दशक में इजराइल से 10 अरब डॉलर से अधिक के हथियार खरीदे हैं। इजराइल भी मानता है कि सैन्य उद्योग की दृष्टि से भारत महत्वपूर्ण है। हथियारों के साथ ही भारत उसके लिए कृषि तकनीक के लिए भी बड़ा बाजार है। दूसरा, इजरायल भारत के साथ अपने संबंधों की ब्रांडिंग अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने में करेगा। यही कारण है यात्रा को इतना प्रचारित किया जा रहा है। जबकि भारतीय प्रधानमंत्री की यह यात्रा हमारे मिजोरम राज्य से भी छोटे देश की है। भारत में एक बड़ा तबका ऐसा है जो भारत की फिलिस्तीन नीति में बदलाव का विरोध कर रहा है। इस तबके का मानना है कि इस बदलाव का भारत की गुट निरपेक्षता की नीति पर फर्क पड़ सकता है। बहरहाल दोनों देशों के बीच संबंधों का यह आगाज तो अच्छा है। देखना यह है कि मोदी सरकार इसे अंजाम तक कितना पहुंचा पाती है?
-माया राठी