सिस्टम का स्टेयरिंग फेल
16-Jan-2018 07:50 AM 1234785
दौर में घर लौटते डीपीएस स्कूल के बच्चों को जिस वक्त लापरवाही-अनदेखी लील रही थी, उसी समय दिल्ली के सत्ता गलियारों में हो-हल्ला मचा था! शोरगुल में दबा था मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन का वो महत्वपूर्ण बिल, जिसे इसी सत्र में राज्यसभा में पास करवाकर, ऐसे भयानक हादसों को रोकने की दिशा में पहल शुरू की जा सकती थी! चूंकि, सियासी दलों के अपने अलग नफा-नुकसान हैं, इसलिए इस सत्र में भी बिल पर चर्चा नहीं हो पाई! पिछले चार साल से बिल में संशोधन की मांग गंभीरता से की जा रही है, लेकिन अभी तक यह कारगर कानून के रूप में सामने नहीं आ पाया। यह जरूरी है, क्योंकि इसमें कई महत्वपूर्ण सुधारों के साथ बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी कई प्रावधान हैं। दरअसल, भारत में अंग्रेजों के जमाने में बनाया गया मोटर व्हीकल एक्ट ही लागू है। वर्ष 1988 में इसमें संशोधन किया गया था। तबसे लेकर अब तक, 30 साल बीत गए, यातायात के तौर-तरीकों, वाहनों की संख्या व गति, लोगों का व्यवहार, सड़कों की स्थिति सबकुछ बदल गया, लेकिन कानूनी बदलाव अब तक प्रतीक्षा सूची में है! इससे पहले कि इंदौर डीपीएस स्कूल बस हादसा किसी निराधार सरकारी जांच पर निर्भर हो जाए, इससे पहले कि सालों बाद नींद से हड़बड़ाकर उठे सरकारी महकमे फिर लंबी नींद सो जाएं, इससे पहले कि फिर किसी बूढ़ी बस के बेलगाम चक्के किसी बेकसूर बचपन को चकनाचूर कर दें, एक सख्त संदेश, एक कठोर कानून, एक स्पष्ट नीति, एक साफ नीयत सामने आना ही चाहिए! चिंता की बात यह है कि बीते एक दशक में 12 लाख लोग सड़क दुर्घटना में जान गंवा चुके हैं! जबकि घायलों की संख्या 51 लाख है। यानी, एक साल में लगभग डेढ़ लाख लोग सड़क दुर्घटना में जान गंवाते हैं। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हर दिन 300 लोगों की मौत को सरकार त्रासदी के रूप में नहीं देख पा रही है। तब जबकि इनमें से 26-27 बच्चे हैं! चिंता की बात यह भी है कि इंदौर देश के उन पांच बड़े शहरों (दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई व कोलकाता) में शामिल है, जहां सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। हालांकि हादसे के बाद अब जाकर सरकार जागी है और सड़क सुरक्षा निधि से 35 करोड़ रूपए के सामान खरीदने जा रही है। जिसमें 200 स्पीड डिटेक्टर और 500 बे्रथ एनेलाइजर भी खरीदा जाना है। यही नहीं अब सड़क सुरक्षा समिति का अध्यक्ष स्थानीय सांसद को बनाया गया है। पहले कलेक्टर अध्यक्ष होता था। अब सवाल उठता है कि क्या इससे हादसों पर लगाम लगेगी। कई महत्वपूर्ण बिंदुओं के साथ सबसे खास है-स्कूल बस की स्पीड 40 किमी से ज्यादा नहीं हो, स्पीड गर्वनर लगा हो, जीपीएस, सीसीटीवी के साथ बच्चों के ब्लड ग्रुप तक की जानकारी भी हो! क्या मध्यप्रदेश में सरपट दौड़ रही स्कूली बसें इस दायरे में हैं? ऐसी है एमपी की परिवहन व्यवस्था मध्य प्रदेश में गाडिय़ों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है बावजूद इसके सड़क हादसे रोकने के लिए परिवहन विभाग के पास पर्याप्त अमला ही नहीं है। ऐसे में मुख्यमंत्री हादसे के बाद पीडि़तों से मुलाकात कर सख्ती का ऐलान करते हैं तो क्या करते हैं। मध्य प्रदेश में कुल वाहनों की संख्या 1 करोड़ 18 लाख से ज्यादा पहुंच चुकी है। अकेले 2016-17 में 7 लाख नई गाडिय़ां प्रदेश में रजिस्टर्ड हुई। अकेले राजधानी भोपाल में गाडिय़ों की संख्या 12 लाख को पार कर चुकी है। लेकिन उन गाडिय़ों की चेकिंग और फिटनेस के लिए केवल दो अधिकारियों की ही नियुक्ति आरटीओ दफ्तर में है। इतना ही नहीं निचले स्तर के सरकारी अमले का भी हाल कुछ ऐसा ही है। मौजूदा वक्त में भोपाल के आरटीओ दफ्तर में 3 इंस्पेक्टर, 6 सब इंस्पेक्टर, 6 हेडकॉन्स्टेबल और 12 कॉन्स्टेबल के स्टाफ की जरुरत है। लेकिन स्टाफ के तौर पर हेडकॉन्स्टेबल की नियुक्ति दफ्तर में नहीं है जबकि इंस्पेक्टर के नाम पर नियुक्ति न के बराबर है। - विशाल गर्ग
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