16-Jan-2018 07:44 AM
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यह विडंबना ही है कि ईमानदारी और शुचिता की दुहाई देने वाली आम आदमी पार्टी के राज्यसभा के दो उम्मीदवारों का चयन नकद नारायण की कृपा के आधार पर होने के आरोप लग रहे हैं। यह वही पार्टी है जिसने देश की जनता को विश्वास दिलाया था कि उसके लोग क्रांति लाएंगे और भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिटा देंगे। जनांदोलन से निकली ऐसी पार्टी ही जब जनता के साथ विश्वासघात करेगी तो फिर जनता किस पर भरोसा करेगी?
गौरतलब है कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के बाद देश में कोई बड़ा आंदोलन हुआ तो वह अण्णा हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन था। इस आंदोलन ने देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता के गुस्से को आवाज और दिशा दी। जनता ने अण्णा हजारे और अरविंद केजरीवाल का भरसक समर्थन किया था। नतीजतन, तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था। इस आंदोलन को राजनीतिक प्रभावों और व्यक्तियों से मुक्त रखने का प्रयास किया गया। तमाम पार्टियों के नेताओं के साथ मंच साझा करने से मना कर दिया गया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन के बीच से ही आम आदमी पार्टी के गठन का ऐलान कर दिया। पिछले पांच सालों में आम आदमी पार्टी पर अनेक आरोप लगे। कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे अनेक नेताओं ने पार्टी प्रमुख के तानाशाही रुख की आलोचना की।
यदि पार्टी के पिछले पांच सालों के इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि इसके मुखिया बहुत ही लचीले उसूलों वाले व्यक्ति मालूम पड़ेंगे। उन्होंने जब भी जिस बात की मनाही की, कुछ समय बाद खुद वही काम करते नजर आए। मसलन, उन्होंने कहा था कि वे राजनीति नहीं करेंगे, लेकिन पार्टी बनाई और फिर मुख्यमंत्री भी बने। उन्होंने ईमानदार उम्मीदवारों को ही टिकट देने का वादा किया था लेकिन उम्मीदवार तो दिखे, पर ईमानदार नहीं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो जनता जिस लचीलेपन को दिखाते हुए आम आदमी पार्टी को चुन कर लाई थी उसी लचीलेपन के साथ इस पार्टी का दामन छोड़ सकती है। आम आदमी पार्टी का यह लचीलापन दरअसल जनता के साथ गद्दारी है। लचीलापन अच्छा है, पर उसूलों के मामले में इसे पाखंड या दोहरा चरित्र कहा जाता है।
कुमार विश्वास को राज्यसभा ना भेजने के पीछे अरविंद केजरीवाल के अपने कुछ तर्क है। केजरीवाल के सामने जब उनकी पार्टी के कुछ बड़े नेताओं ने राज्यसभा जाने की इच्छा जताई, तो उनका कहना था कि उन्हें लोकसभा और राज्यसभा दोनों का टिकट नहीं मिल सकता। पत्रकारिता की नौकरी छोड़कर नेता बने और सांसद बनने चले आशुतोष हों या कवि से नेता बने कुमार विश्वास, दोनों राज्यसभा टिकट के लिए पहले ही दौर में इसलिए छांट दिए क्योंकि आम आदमी पार्टी ने इन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया था। आशुतोष चांदनी चौक से चुनाव लड़े थे और डॉक्टर हर्षवर्धन से हार गए थे। कुमार विश्वास ने अमेठी से अपनी किस्मत आजमाई और वोटों की गिनती में राहुल गांधी और स्मृति ईरानी दोनों से काफी पीछे रह गए थे।
2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त भी संजय सिंह अरविंद केजरीवाल के करीबी थे, लेकिन उन्हें उस वक्त दिल्ली की सात में से एक भी सीट से चुनाव नहीं लड़ाया गया था। उसी वक्त यह तय हो गया था कि अगर दिल्ली में 2018 तक आम आदमी पार्टी की सरकार रही तो वे संजय सिंह को जरूर संसद पहुंचाएंगे। 2014 में किसी ने नहीं सोचा था कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली की सारी सीटें बुरी तरह हार जाएगी और विधानसभा चुनाव की 70 में से 67 सीटें जीत जाएगी। इस हिसाब से देखें तो जिन नेताओं ने सब्र नहीं रखा वे संसद जाने से चूक गए।
कुमार विश्वास को राज्यसभा का उम्मीदवार न चुने जाने की दूसरी वजह पूरी तरह से सियासी है। पिछले तीन साल से दिल्ली की सियासत करते-करते केजरीवाल अब संपूर्ण नेता बन चुके हैं। अब उनके सामने 2019 का लोकसभा चुनाव है और सवाल वही 2014 वाला है। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद क्या वे लोकसभा की सीटों पर भी आप का झंडा फहरा पाएंगे। इसीलिए केजरीवाल ने अपने हिसाब से 2019 का चुनाव जीतने का मास्टरस्ट्रोक चला है। वे अब जाति की राजनीति से परहेज नहीं करना चाहते हैं। वे खुद बनिया हैं और इस बार तीन में से दो राज्यसभा की सीटें उन्होंने गुप्ताजीÓ यानी बनिया समुदाय से आने वाले - नारायण दास गुप्ता और सुशील गुप्ता - को दी है।
विश्वास पर खरे नहीं उतरे कुमार
कुमार विश्वास को राज्यसभा ना भेजने की तीसरी वजह पर्सनलÓ है। दरअसल केजरीवाल ने अपने सभी करीबी नेताओं को बता दिया था कि किसी भी कीमत पर कुमार विश्वास को राज्यसभा नहीं भेजा जाएगा। कुमार विश्वास ने भी अपनी ताकत दिखाने के लिए एड़ी-चोटी का दम लगाया, लेकिन हुआ कुछ नहीं। कुमार विश्वास इसे विश्वासघात बताते हैं और केजरीवाल इसे कुमार पर अपना अविश्वास। दरअसल पिछले दो सालों में उन्होंने कुमार पर जब भी भरोसा किया उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। आम आदमी पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू से कुमार विश्वास ही बातचीत कर रहे थे। उन्हें आम आदमी पार्टी में शामिल कराने की जिम्मेदारी केजरीवाल ने कुमार विश्वास को ही सौंपी थी। सिद्धू ने राज्यसभा से इस्तीफा दिया तो कुमार की जिद पर ही केजरीवाल ने सिद्धू को महान त्यागी ठहरा दिया। बाद में सिद्धू कांग्रेस का हाथ थामकर मंत्री बन गए। गुजरात में भी हार्दिक पटेल से कुमार विश्वास ने भी बातचीत की थी, लेकिन बाद में हार्दिक पटेल भी राहुल गांधी के साथ जा मिले।
- विकास दुबे