सजा और सियासत
16-Jan-2018 07:28 AM 1234882
देश के सबसे बड़े घोटालों में से एक चारा घोटाले में जब-जब लालू यादव और अन्य आरोपियों को सजा सुनाई गई है बिहार के साथ ही देश की राजनीति का भी पारा चढ़ गया है। ज्ञातव्य है कि लालू प्रसाद यादव को चार साल पहले भी चाईबासा कोषागार से अवैध धन निकासी का दोषी ठहराते हुए अदालत ने पांच साल कैद की सजा और पचीस लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी, जिसमें दो महीने जेल में रहने के बाद उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिल गई थी। इस बार भी चूंकि सजा तीन साल से ऊपर है, लालू यादव को ऊपरी अदालत में जमानत की अर्जी लगानी पड़ेगी। हालांकि अदालत के ताजा फैसले के बाद भी लालू यादव के तेवर में कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा, वे सत्तापक्ष पर अपने खिलाफ साजिश का आरोप लगा रहे हैं। पर इस फैसले से एक बार फिर लोगों का जांच एजेंसियों और न्याय-व्यवस्था पर भरोसा बढ़ा है। यह संदेश गया है कि दोषी चाहे कितना भी रसूखदार क्यों न हो, वह कानून के दायरे से बाहर नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि इस सजा के बाद लालू यादव का बिहार की राजनीति से दबदबा खत्म हो जाएगा। मगर ऐसा दावा करना मुश्किल है। लालू के जेल में रहने के बाद भी उनकी पार्टी का नेतृत्व कमजोर होता नजर नहीं आ रहा। पिछली बार जेल की सजा मिलने के बाद वे संसद की सदस्यता और चुनाव लडऩे के अधिकार से हाथ जरूर धो बैठे, पर उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में पूरे दम-खम के साथ शानदार विजय हासिल की थी। आज भी बिहार विधानसभा में सबसे अधिक उन्हीं की पार्टी के सदस्य हैं। जब महागठबंधन टूटा और नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठजोड़ कर सरकार बना ली, तब भी न तो उनकी पार्टी में किसी तरह की टूट-फूट हुई और न अब अदालती फैसले के बाद उसके सदस्यों में कोई मोहभंग नजर आ रहा है। लालू के बेटे के नेतृत्व पर पार्टी सदस्यों और विधायकों का पूरा भरोसा है। इसलिए यह मान लेना जल्दबाजी होगी कि इससे लालू का प्रभाव कम हो जाएगा और राष्ट्रीय जनता दल की कमर टूट जाएगी। इस फैसले से फिर यह धारणा टूटी है कि रसूखदार लोग कानून के चंगुल से बहुत आसानी से बच निकलते हैं। छिपी बात नहीं है कि चारा घोटाले में लालू यादव ने षड्यंत्रकारियों को बचाने और साक्ष्यों को मिटाने का भरपूर प्रयास किया। मुख्यमंत्री रहते उन्होंने इस मामले से जुड़ी तमाम फाइलें अपने पास रखीं और सबूतों के साथ छेड़छाड़ करते हुए अदालत को गुमराह करने का प्रयास किया। पर सीबीआइ जांच में उनका दोष छिपा न रह सका। अब वे जिस तरह सत्ता पक्ष पर साजिशन फंसाने और शिकंजा कसने का आरोप लगा रहे हैं, उससे लोगों का ध्यान स्वाभाविक रूप से सत्ता पक्ष की तरफ जा रहा है। ऐसा इसलिए भी है कि सत्ता पक्ष हमेशा से जांच एजेंसियों के कामकाज को प्रभावित करता देखा गया है। इसलिए नीतीश कुमार की गठबंधन सरकार पर लालू यादव सीधे निशाना साध पा रहे हैं। ऐसे में जांच एजेंसियों को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखने की जरूरत फिर रेखांकित हो रही है। लालू तो बोलेगा चाहे जो सजा दो चारा घोटाला मामले में राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को साढ़े तीन साल की जेल और पांच लाख रुपये का जुर्माना भरने की सजा मिलने के बाद लालू का एक पत्र सामने आया है। लालू के ऑफिशल ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किए गए इस पत्र में लालू ने लिखा है कि मैंने तानाशाही सत्ता का साथ नहीं दिया इसलिए मेरे पीछे जहरीली ताकतों को लगाया गया और मुझे सजा भुगतनी पड़ी। लालू ने अपने पत्र में लिखा कि इतिहास गवाह है कि मनुवादी शक्तियां न्याय के नाम पर अन्याय करती आई हैं। लालू ने लिखा, आपातकाल के दौरान आपके इस नौजवान (लालू) को जेल में डाल दिया गया था, लौ चिंगारी में जहां परिवर्तित हुई थी वह जेल ही थी और आज वह चिंगारी मशाल बन चुकी है। अपनी चि_ी में लालू ने आरोप लगाया कि तानाशाही सत्ता का साथ न देने की वजह से उनके पीछे सीबीआई लगाई गई, परिवार को घसीटा गया और लालू को अरेस्ट करने के लिए आर्मी तक बुलावा भेजा गया। लालू ने लिखा,आप तो देख ही रहे हैं कि किस प्रकार देश का प्रधानमंत्री, राज्य का मुख्यमंत्री, केंद्र और राज्य की सरकारें, देश की तीन सबसे बड़ी एजेंसियां, इनकम टैक्स, सीबीआई और ईडी, सरकार समर्पित अन्य संस्थान और कई प्रकार के जहरीले लोग हमारे पीछे लगे हैं। लालू ने बिहार की जनता से कहा है कि आपकी ताकत ही आपके लालू को लालू बनाती है। - विनोद बक्सरी
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