योगी की पहली परीक्षा
07-Dec-2017 09:02 AM 1234801
उत्तर प्रदेश में 16 नगर निगमों, 198 नगर पालिका परिषद और 438 नगर पंचायतों के लिए तीन चरणों में मतदान के बाद अब सबकी निगाह मतगणना पर है। निकाय चुनाव की पहली परीक्षा में पास होने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ ने कमर कस ली है। बता दें कि सीएम योगी राज्य के पहले सीएम हैं, जो निकाय चुनाव में भी चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतरे। इससे पहले भाजपा से मुख्यमंत्री रहे न तो कल्याण सिंह ने और ना ही राजनाथ सिंह ने इन चुनावों में प्रचार किया था। आपको यह भी बता दें कि मुलायम सिंह और अखिलेश यादव भी सीएम रहते हुए निकाय चुनाव के प्रचार से दूर रहे थे और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी कभी इन चुनावों में पार्टी के लिए वोट नहीं मांगे। इस बार निकाय चुनाव का माहौल काफी बदला हुआ है। बीजेपी जहां पिछले दो चुनावों में मिली जीत से उत्साहित होकर मैदान में ताल ठोकी है। वहीं कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सहित तमाम छोटे-छोटे दलों ने लोकसभा और उसके बाद विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार की कड़वाहट को भूलकर भविष्य मीठा करने के लिये जोर अजमाइश की है। अबकी बार यह बात भी स्पष्ट तौर पर साबित हो जायेगा कि शहरी मतदाताओं पर किसकी सबसे अच्छी पकड़ है। अभी तक बीजेपी और कांग्रेस ही अपने सिंबल पर चुनाव लड़ते थे, इस बार सपा और खासकर बसपा भी अपने सिम्बल (चुनाव चिह्न) पर मैदान में हैं। बसपा तो पहली बार हाथी चुनाव के साथ मैदान में ताल ठोंक रही है। पूर्व में बसपा और अधिकतर चुनावों में सपा तमाम निर्दलीय प्रत्याशियों को अपनी-अपनी पार्टी का समर्थन देते रहते थे। चार प्रमुख दलों के अपने-अपने सिम्बल के साथ चुनावी मैदान में कूदने से निकाय और क्षेत्रीय पंचायत चुनाव का परिदृश्य काफी बदला-बदला नजर आया। कभी-कभी किन्हीं दो चुनावों के नतीजे और मुद्दे भले एक से हों सकते हैं, लेकिन इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि दो चुनावों के बीच मतदाताओं का मिजाज कभी एक सा नहीं रहता है। ऐसा ही नगर निकाय चुनाव में भी देखने को मिल रहा है। बात 2014 के लोकसभा चुनाव की कि जाये तो उस समय कांग्रेस की दस साल पुरानी गठबंधन सरकार के खिलाफ जनता में जबरदस्त नाराजगी थी, जिसका मोदी ने खूब फायदा उठाया तो इसमें हिन्दुत्व का तड़का लगाकर वोट बैंक को और भी मजबूती प्रदान की। इस बार तो भाजपा ने निकाय चुनाव के लिये संकल्प पत्र भी जारी करा है। भाजपा संकल्प पत्र के माध्यम से न सिर्फ हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने की कोशिश में है, बल्कि शहरियों के रोजमर्रा के सरोकारों पर लुभावने वादे करके चुनावी गणित साधने का प्रयास भी किया है। विधानसभा चुनाव की तरह निकाय चुनाव में भी मथुरा-वृदांवन, अयोध्या, प्रयाग, विध्ंयाचल, नैमिषारण्य, चित्रकूट, कुशीनगर और वाराणसी को हेलीकॉप्टर सेवा से जोडऩे, बौद्ध सर्किट से संबंधित महत्वपूर्ण जिलों के विकास का वादा किया गया है। सिर्फ धर्मस्थलो को हेलीकॉप्टर सेवा से जोडऩे का वादा ही नहीं दोहराया गया है बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के आश्रितों को जल कर से छूट देने का भी संकल्प व्यक्त किया गया है। निकाय चुनावों से यह साफ हो गया है कि बीजेपी किसी भी वर्ग को छोडऩा नहीं चाहती है। उधर कांग्रेस, सपा, बसपा सहित अन्य दल भाजपा के संकल्प पत्र को केवल चुनावी झुनझुना मान रहे हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में सरकार बनाने से लेकर अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया गया है जिससे लगे कि सरकार विकास के लिए तत्पर है। शक्ति प्रदर्शन का आखिरी मौका लब्बोलुआब यह है कि सभी दलों को पता है कि 2019 के आम चुनाव से पहले उनके पास शक्ति प्रदर्शन का यह आखिरी मौका है, जिसे कोई गंवाना नहीं चाहेगा। 2019 में अगर बीजेपी के खिलाफ कोई मोर्चा तैयार होता है तो इसमें किसकी कितनी भागीदारी रहेगी, यह भी इन चुनावों से तय होगा। सपा में जारी बगावत के बीच अखिलेश के लिये यह चुनाव मील का पत्थर साबित हो सकते हैं तो बसपा की स्थिति में सुधार आने पर मायावती को सियासी ऑक्सीजन मिल सकता है। फिलहाल, बीजेपी को विरोधियों का बिखराव रास आ रहा है। -मधु आलोक निगम
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