दावों की स्मार्ट सिटी
01-Jan-2018 10:41 AM 1234790
स्मार्ट सिटी योजना में देश के 100 शहर शामिल हैं। इसमें प्रदेश के सात शहरों को शामिल किया गया। राजधानी भोपाल हो या फिर इंदौर, जबलपुर या ग्वालियर या कोई अन्य शहर स्मार्ट सिटी के नाम पर विकास की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई गईं, खूब दावे किए गए, लेकिन अभी केवल कागजी कार्रवाई और प्रजेन्टेशन का सिलसिला चल रहा है। धरातल पर कोई बड़ा काम नहीं हुआ। जहां काम हुआ है वह भी बिना प्लान के। जिसके कारण या तो अदालत या फिर एनजीटी में मामला अटका हुआ है। दरअसल, स्मार्ट सिटी योजना अधिकारियों के लिए भर्राशाही का अड्डा बन गई है। योजना के क्रियान्वयन के लिए सरकार आगे बढऩे की कवायद करती है तो अफसरों के कारण उसे मुंह की खानी पड़ती है। भोपाल को स्मार्ट सिटी मिशन में शामिल हुए दो साल गुजर चुके हैं, लेकिन स्मार्ट सिटी के नाम पर शहरवासियों को अब तक सिर्फ माय बाइक (साइकिल) और एक एंड्रोएड एप भोपाल प्लसÓ ही मिल सका है। पेन एरिया डेवलपमेंट सेगमेंट में स्मार्ट रोड, स्मार्ट स्ट्रीट, बोलेवार्ड स्ट्रीट जैसी सड़कों के निर्माण की कवायद चल रही है, लेकिन विवाद और काम में सुस्ती के कारण इन्हें पूरा होने में डेढ़ से दो साल और लग सकते हैं। स्मार्ट सिटी निर्माण के लिए भोपाल स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन कंपनी को केंद्र और राज्य सरकारों से भले ही 600 करोड़ रुपए से अधिक मिल गए हों, लेकिन जमीन पर 100 करोड़ के काम भी नजर नहीं रहे हैं। देशभर में 90 शहरों को स्मार्ट सिटी मिशन में शामिल किया गया है, इनमें से 13 शहरों को एरिया बेस्ड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में तेजी से काम करने के लिए अवॉर्ड मिल चुके हैं, लेकिन भोपाल में अब तक एबीडी प्रोजेक्ट के लिए जमीन ही समतल नहीं हो पाई है। राजधानी में चल रहे स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट को लेकर विभागीय अधिकारियों द्वारा कागजी दावे किए जा रहे हैं, जबकि हकीकत कुछ और है। भोपाल में पब्लिक बाइक शेयरिंग, भोपाल प्लस एप, स्मार्ट लाइटिंग पोल, इंटीग्रेटेड कंट्रोल एंड कमांड सेंटर, स्मार्ट रोड और टीटी नगर स्मार्ट सिटी इसके उदाहरण हैं। राजधानी में एरियाबेस्ड डेवलपमेंट कंपोनेंट में 342 एकड़ में 3 हजार करोड़ की लागत से मुख्य स्मार्ट सिटी बनेगी। नॉर्थ-साउथ टीटी नगर में आवासीय, कमर्शियल पब्लिक यूटिलिटी सेक्टर तैयार होंगे। यहां 800 सरकारी मकान मौजूद हैं। 300 तोड़े जा चुके हैं। पिछले 8 माह से तुड़ाई का काम जारी है। 142 मकान अब भी खाली नहीं हो पाए हैं। निर्माण शुरू हो पाने में अभी एक से डेढ़ साल और लग सकते हैं। उधर इंदौर स्मार्ट सिटी में रिडेवल्पमेंट के तहत चार नंबर विधानसभा के अंतर्गत आने वाली एमओजी लाइन को भी जोड़ा गया था। यहां की 64 एकड़ जमीन पर आधुनिक तरीके से सरकारी क्वार्टर बनाए जाना है, लेकिन इसकी जमीन ही अभी तक नगर निगम को नहीं मिल पाई है। उधर, निर्माण के लिए कोई एजेंसी तैयार नहीं हो रही है। नगर निगम ने 742 एकड़ जमीन पर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट शामिल किया है। इसमें 64 एकड़ एमओजी लाइन की भी शामिल की गई थी। इस जमीन पर बने पुराने क्वार्टर तोड़कर उसका रिडेवल्पमेंट किया जाना है, लेकिन इसके लिए अभी कुछ तैयारी ही नजर नहीं आ रही है। यही हाल जबलपुर, ग्वालियर, सतना, सागर उज्जैन का भी है। अटक सकती है 750 करोड़ की ग्रांट भोपाल, इंदौर और जबलपुर स्मार्ट सिटी को वल्र्ड बैंक की चैलेंज स्कीम के तहत 750 करोड़ रुपए का अनुदान केवल इसलिए अटक सकता है, क्योंकि तीनों शहर वल्र्ड बैंक की सिर्फ एक शर्त पूरी नहीं कर पा रहे हैं। शर्त है- स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में केंद्र और राज्य सरकार से मिलने वाले अंशदान के उपयोग की। दरअसल, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में केंद्र और राज्य की 50-50 फीसदी की हिस्सेदारी है। केंद्र ने पिछले वित्तीय वर्ष में अपने हिस्से की राशि रिलीज कर दी थी, लेकिन पिछले एक साल से सरकार अपने हिस्से के अंशदान की राशि 300 करोड़ देने में आनाकानी कर रही है। फिलहाल राज्य से यह राशि मिलने की उम्मीद कम ही लग रही है। क्योंकि द्वितीय अनुपूरक बजट में सरकार ने स्मार्ट सिटी के लिए राशि का प्रावधान नहीं किया है। वल्र्ड बैंक ने स्मार्ट सिटी को आर्थिक मदद देने के लिए परफॉर्मेंस बेस्ड इंसेंटिव प्रोग्राम के तहत चैलेंज स्कीम लागू की है। स्कीम में 12 स्मार्ट सिटी को 3 हजार करोड़ रुपए अनुदान के रूप में दिए जाएंगे। यानी एक स्मार्ट सिटी को 250 करोड़ रुपए मिलेंगे। -राजेश बोरकर
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