सूर, ताल, नृत्य की छटां
01-Jan-2018 10:33 AM 1234984
भारत की संस्कृति में मध्यप्रदेश जगमगाते दीपक के समान है, जिसकी रोशनी की सर्वथा अलग प्रभा और प्रभाव है। यह विभिन्न संस्कृतियों की अनेकता में एकता का ऐसा आकर्षक गुलदस्ता है, जिसे प्रकृति ने राष्ट्र की वेदी पर जैसे अपने हाथों से सजाकर रख दिया है, जिसका सतरंगी सौन्दर्य और मनमोहक सुगंध चारों ओर फैल रही हैं। यहां के जनपदों की आबोहवा में कला, साहित्य और संस्कृति की मधुमयी सुवास तैरती रहती है। इस सुवास को बनाए रखने के लिए हर साल सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं। इन्हीं में शामिल है ग्वालियर में आयोजित तानसेन समारोह और खजुराहो फिल्म फेस्टिवल। इस बार भी इन दोनों आयोजनों में सुर, ताल, संगीत और नृत्य की छटां देखने को मिली। जहां तानसेन समारोह में प्रेम, विरह व सौंदर्य से परिपूर्ण संगीत की भावनात्मक मिठास दिलों को छू गई, वहीं खजुराहो फिल्म फेस्टिवल में फिल्मी सितारों ने अपनी छटां बिखेरी। तीसरे खजुराहो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल 2017 में कई फिल्म सितारे पहुंचे और उन्होंने महोत्सव में अपनी छटां बिखेरी। सात दिवसीय इस महोत्सव में कई फिल्मों का प्रदर्शन हुआ, वहीं नृत्य और संगीत ने भी बुंदेलखंड की धरा पर रस की बारिश की। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाले खजुराहों की पावन धरा पर फिल्मी सितारों का मेला आकर्षण का केंद्र रहा। विश्व विरासत धरोहर सूची में शामिल खजुराहों फिल्म महोत्सव में 5 टपरा टॉकीज का संचालन किया गया। इनमें समाज में परिवर्तन मूलक फिल्मों का मंचन हुआ। क्षेत्रीय कलाकारों के द्वारा अदभुत एवं आकर्षक प्रस्तुतियां दी गई। खजुराहों अन्य बड़े शहरों से दूर हैं किंतु उसने सभी को अपने नजदीक लाने में महती भूमिका का निर्वहन किया है। सिनेमा स्टार जैकी श्रॉफ ने खजुराहों अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव द्वारा हमारी संस्कृति एवं परम्परा को पुनर्जीवित करने हेतु इस प्रकार के लगातार आयोजन करते रहने हेतु सभी को बधाई दी। महोत्सव को सफल बनाने में नगरीय प्रशासन, मप्र पर्यटन, जिला प्रशासन छतरपुर, जनसम्पर्क संचालनालय, संस्कृति विभाग प्रयास प्रोडक्शन मुम्बई का अहम योगदान रहा। सिने स्टार जैकी श्रॉफ ने इसे देखते हुये कहा कि वे यहां हमेशा आते रहेंगे। उन्होंने खजुराहों तक आने की कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने की आवश्यकता बताई। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली के डायरेक्टर बामन केन्द्रे ने मई 2018 में खजुराहों में 1 माह की ड्रामा ट्रेनिंग वर्कशॉप आयोजित कराने की बात की। साथ ही दिल्ली में थियेटर ओलंपिक्स के आयोजन की जानकारी दी। महोत्सव में मालवा लोक अंचल के माध्यम से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का संदेश दिया गया। साथ ही हमारी प्राचीन संस्कृति एवं परम्पराओं को निर्बाध रूप से भावी पीढ़ी को प्रदान करने का संदेश दिया। वहीं ग्वालियर में महर्षि तानसेन की याद में आयोजित सालाना संगीत समारोह का हर एक दिन कई मायनों में खास और खुशनुमा रहा। हिंदुस्तानी और यूरोपियन तहजीबों से संगीत रसिक दो चार हुए। देश के जाने माने संगीत साधकों की शुद्ध शास्त्रीय प्रस्तुतियों के साथ यूरोपीय देशों से आए कलाकारों ने जब पश्चिमी सुरों को छेड़ा तो एक बारगी मिले सुर मेरा तुम्हारा...Ó की भावभूमि साकार हो उठी। वास्तव में सुरों का एक ऐसा कोलाज बना, जिसमें संगीत का हरेक रंग नुमाया हो रहा था। सभी सांगीतिक प्रस्तुतियों का बड़ी संख्या में मौजूद गुणीय रसिकों ने जी-भरकर आनंद उठाया। इस समारोह में ध्रुपद केन्द्र ग्वालियर के विद्यार्थियों व आचार्यों द्वारा प्रस्तुत ध्रुपद गायन सभी को खूब भाया। यह प्रस्तुति विख्यात ध्रुपद गायक अभिजीत सुखदाणे के निर्देशन में हुई। राग तोड़ी ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे कौन भरम गुनी हो मन ज्ञानीÓ। वहीं भोपाल से आए अंशुल प्रताप सिंह तबला और नई दिल्ली के ऋषि शंकर उपाध्याय पखावज की जुगलबंदी भी सराहनीय रही। इन्होंने तीन ताल में विलंबित और द्रुत तीन ताल में अपना वादन किया। तबला-पखावज की जुगलबंदी में कायदे, पल्टे व विभिन्न प्रकार की सुंदर-सुंदर परन का प्रयोग सुनाई दिया। इस आयोजन में देश के मूर्धन्य कलाकारों के साथ ही नवोदित कलाकारों ने अपनी छटा बिखेरी। ऐरी मैं कैसे जाऊं पनिया मग रोकत... दानेदार, बुलंद एवं सुरीली आवाज में जब अमिता सिंह महापात्रा ने राग जौनपुरी में बंदिश ऐरी मैं कैसे जाऊं पनिया मग रोकतÓ पेश की तो सुर सम्राट तानसेन का समाधि परिसर उच्च कोटि की ध्रुपद गायिकी से गुंजायमान हो उठा। विभिन्न प्रकार की लयकारियों का उन्होंने बहुत ही सुंदर प्रयोग किया। मुंबई से तानसेन समारोह में प्रस्तुति देने आईं अमिता के गायन से यह आभास हुआ कि ध्रुपद गायकी से पुरुष कलाकारों के आधिपत्य वाली परंपरा आज टूट गई है। उन्होंने ताल धमार में नोम तोल की सुंदर अलापचारी की। विलंबित, मध्यलय और द्रुत लय में जो अलापचारी आज पेश की उसे गुणीय रसिक भुला नहीं पायेंगे। -रजनीकांत पारे
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