01-Jan-2018 10:36 AM
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भोपाल में मर्जर प्रभावित क्षेत्र की 2800 एकड़ जमीन पर बसे लोगों का सर्वे शुरू हो गया है। सरकार का कहना है कि वैध पाए जाने पर भूमि का मालिकाना हक दे दिया जाएगा। सर्वे में 80 दल यह पता करने में लगे हैं कि मर्जर प्रभावित क्षेत्र की जमीन पर 2 अक्टूबर 1959 से अब तक यह भूमि किसके-किसके पास रही, उसकी लिंक रजिस्ट्रियां जमीन किसने खरीदी और किसने बेची। एक दल 100 से 120 मकानों का सर्वे करेगा। सर्वे के लिए पहुंचने वाले दल, लाउखेड़ी, बोरवन, बहेटा, हलालपुरा, निशातपुरा, शाहपुरा, सेवनियागौड, कोटरा सुल्तानाबाद के करीब 3 लाख मर्जर प्रभावितों के घर-घर पहुंचेंगे।
प्रभावितों ने यदि जमीनें किसी व्यक्ति या भूमि स्वामी या नवाब से खरीदी या तोहफे में पाई है तो उन्हें इसके संबंध में ओरिजनल दस्तोवज व रजिस्ट्रियां दिखानी होंगी तथा इसके संबंध में शपथ पत्र भी पेश करना होगा। इस सर्वे के आधार पर दो तरह की सूची बनाई जाएगी। पहली में जिनके पास वैध दस्तावेज सहित खसरे से लिंक रजिस्ट्रियां है। इन्हें जिस जमीन पर वे काबिज है उसका मालिकाना हक दे दिया जाएगा। वहीं दूसरी सूची में ऐसे लोगों को शामिल किया जाएगा जिनके पास दस्तावेज तो है लेकिन खसरे से लिंक रजिस्ट्रियां नहीं है। बता दें कि दूसरी सूची वाले ऐसे परिवारों को सरकारी भूमि पर काबिज मानकर रेग्युलाईज्ड करने की प्रक्रिया नई मर्जर नीति के तहत होगी। रेग्युलराईज्ड होने के लिए भूमि पर काबिज परिवारों को प्रीमियम व भू-भाटक (प्रीमियम) जमा करना होगा। ज्ञात हो कि आठ गांव में करीब 18 हजार परिवार निवास कर रहे हैं।
2000-01 में सरकारी घोषित की गई ईदगाह ड्यूढ़ी की 400 एकड़ भूमि पर बसे परिवारों का सर्वे भी यही दल करेंगे। वे यहां के प्रभावितों के सर्वे की केवल एक ही सूची बनाएंगे और नाम, पता, कितनी भूमि पर काबिज हैं, उसके संबंध में दस्तावेज प्राप्त करेंगे। हालांकि ईदगाह ड्योढ़ी में काबिज लोगों को 2 अक्टूबर 1959 से वर्ष 2000 तक के दस्तावेज ही पेश करने होंगे, क्योंकि इसके बाद तो जमीन को तत्कालीन कलेक्टर अनुराग जैन ने सरकारी ही घोषित कर दिया था। सर्वे में जो भी परिवार सामने आएंगे, उनको जमीन के पट्टे बांटे जाएंगे, लेकिन वह 30 वर्ष या उससे अधिक की लीज के होंगे।
उल्लेखनीय है कि सिंधी परिवारों के साथ राज्य सरकार द्वारा बंटवारे के समय मप्र आए भावलपुरी समुदाय के परिवारों और बांग्लादेश (1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान का हिस्सा था, 1971 के बाद बांग्लादेश बना) से आए लोगों को भी इस एक्ट के दायरे में लाया जा रहा है। ये राहत देने के लिए सरकार यह शर्त जरूर रखने जा रही है कि एक्ट का लाभ लेने वाले प्रभावित लोगों को वर्ष 2000 के पहले का कोई दस्तावेज (टाइटल) दिखाना होगा। इस मामले में सरकार कलेक्टर द्वारा किए गए सर्वे को आधार बनाएगी। मर्जर प्रभावित ऐसे लोग भी हैं, जो मर्जर की भूमि के संबंध में हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से केस जीतकर आए हैं। दल ऐसे लोगों का भी सर्वे करेंगे और उनसे कोर्ट के आदेश की प्रतियां प्राप्त करेंगा और उन्हें मालिकाना हक की श्रेणी में रखेंगे। यही नहीं दल रजिस्ट्रियों के आधार पर भूमि स्वामी ने कितने क्षेत्रफल में मकान बना रखा है। इसकी भी मौके पर जांच होगी। रजिस्ट्री में दर्शाई गई भूमि से अधिक पर यदि मकान बना मिला तो कब्जे वाले क्षेत्र को अतिक्रमण में मानकर उसको चिन्हित किया जाएगा। अतिक्रमण वाले हिस्से पर क्या कार्रवाई होगी। यह भी मर्जर की नई नीति के आधार पर तय होगा। घर बचाओ संषर्घ समिति के सह संयोजक जगदीश छावानी कहते हैं कि प्रशासन ने समिति से भी प्रभावितों को उनका मालिकाना हक दिलाने के लिए सहयोग करने की अपील की है। हम सहयोग करने के लिए तैयारी है लेकिन सर्वे के बाद जुटाए गए दस्तावेजों का गलत उपयोग शासन द्वारा ना किया जाए।
3 साल से सिर्फ बातें, अब नए एक्ट का बहाना
राजधानी में मर्जर के मामले और सिंधी विस्थापितों को जमीन का मालिकाना हक देने के मामले में नई बात सामने आई है। नया एक्ट बना रही सरकार ने तीन साल पहले शीतकालीन सत्र के दौरान 15 दिसंबर 2015 को विधानसभा में वादा किया था कि जल्द ही ये मामले निपटाए जाएंगे। सरकार ने उस समय भू राजस्व संहिता बिल कुछ संशोधनों के साथ पारित भी कराया था। तब तत्कालीन राजस्व मंत्री रामपाल सिंह, विधायक रामेश्वर शर्मा व विश्वास सारंग समेत कांग्रेस विधायकों ने भी मार्मिक दलीलें रखी थीं कि 60-60 साल से लोग मकान बनाकर रह रहे हैं, लेकिन उन्हें जमीन का हक नहीं मिला। जिन लोगों ने 1947 में विभाजन का दर्द भोगा वे आज आवास को लेकर भी यही महसूस कर रहे हैं। इन दलीलों के बाद तब सदन में सरकार की ओर से कहा गया था कि वर्षों से विस्थापित लोगों को मालिकाना हक देने के लिए ही बिल में संशोधन ला रहे हैं, लेकिन तीन साल होने के बाद अब फिर जमीन के मालिकाना हक के लिए सरकार नए नियमों को लाने की बात कर रही है।
-डॉ. ओसाफ शाहमीरी खुर्रम