01-Jan-2018 10:26 AM
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आपको 17 मार्च 2010 का दिन तो याद होगा ही। यही वह तारीख थी, जब बाबा रामदेव अचानक मीडिया के सामने आते हैं। बरसों से दिल में दबी सियासी ख्वाहिशों का पिटारा खोल देते हैं। भारत स्वाभिमान नामक राजनीतिक दल के गठन की घोषणा करते हैं। दावा करते हैं कि हर जिले में उनके छह से सात लाख अनुयायी हैं। लिहाजा उनकी पार्टी लोकसभा की सभी 543 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। यह भी कहते हैं कि खुद चुनाव नहीं लडेंगे, मगर लड़वाएंगे। इरादा है कि देश से भ्रष्टाचार भागे और तीन सौ लाख करोड़ का कालाधन विदेशों से देश में लाया जा सके। एक साल बाद अप्रत्याशित रूप से इरादा बदल जाता है। पार्टी गठन ठंडे बस्ते में चला जाता है। उसी वक्त अन्ना आंदोलन का आगाज होता है। बाबा रामदेव कहते हैं कि-मेरी भीष्म प्रतिज्ञा है कि मैं कभी चुनाव नहीं लडूंगा, लेकिन मैं एक संन्यासी का धर्म निभाते हुए व्यवस्था की बुराइयों के खिलाफ विद्रोह जारी रखूंगा। बताया जाता है कि एक बार फिर से बाबा की राजनीति महत्वकांक्षा हिलोरे मार रही है। दरअसल, जिस तरह पतंजलि के उत्पादों ने घर-घर में अपनी पैठ बना ली है, उससे बाबा रामदेव को उम्मीद जगी है कि स्वदेशी के नाम पर राजनीति करने का यही मौका है। इसलिए वे भारत स्वाभिमान दल का विस्तार करने पर विचार कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि बाबा रामदेव के अंदर 2008 से ही राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पनपनी शुरू हो गईं थीं। भले ही आलोचना से बचने के लिए सत्ता से दूरी की बात करते हैं मगर यह स्वीकार करते हैं कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा जरूर है उनके अंदर।
राजनीतिक विश£ेषकों का मानना है कि जब यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर देश में माहौल बनने लगा, तब रामदेव को लगा कि देश एक राजनीतिक विकल्प का मोहताज है। पैसा और पीपुल्स दोनों हैं, क्यों न एक पार्टी ही खड़ी कर दी जाए। रामदेव की सियासी महत्वाकांक्षा की भनक लगने पर संघ और भाजपा के नेताओं ने उस वक्त बहुत समझाया-बुझाया था। कहा था कि वो महज वोटकटवा की भूमिका ही निभाएंगे। तब जाकर रामदेव ने पैर खींच लिए थे।
बताया जाता है कि बाबा रामदेव को भाजपा से ऑफर हुआ था कि लोकसभा चुनाव में कुछ प्रत्याशी उनकी मर्जी के उतारे जाएंगे। करीबी सूत्र बताते हैं कि बाबा रामदेव ने 50 प्रत्याशी का कोटा मांगा था, हालांकि भाजपा इस पर राजी नहीं हुई। बमुश्किल से आठ से नौ प्रत्याशी रामदेव की सिफारिश पर टिकट पाए। रामदेव के रसूख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हाल में जब विनोद खन्ना के निधन से गुरुदासपुर लोकसभा सीट खाली हुई तो टिकट की रेस में उनकी विधवा पत्नी कविता खन्ना रेस में थीं। मगर बाबा रामदेव अपने वीटो पॉवर से करीबी बिजनेसमैन सलारिया को टिकट दिलाने में सफल रहे।
अब रामदेव के खेमे से बड़ी खबर आ रही है। वह यह कि पतंजलि योगपीठ ने देश के सभी छह लाख गांवों में शाखाएं खोलने का फैसला किया है। बिल्कुल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तर्ज पर। शाखाएं उसी भारत स्वाभिमान के बैनर तले खुलनी हैं, जिसके नाम से 2010 में रामदेव राजनीतिक दल के गठन की घोषणा कर चुके हैं। यह बाद दीगर है कि बाद में बैकफुट पर आ गए थे। गांवों में संघ की शाखाओं की तर्ज पर प्रस्तावित इन कैंपों में योग-प्राणायाम की ट्रेनिंग तो दी ही जाएगी। युवाओं को नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी दिया जाएगा। उत्तराखंड के कुछ गांवों में तो शाखाएं शुरू भी हो गईं हैं। पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण कहते हैं पतंजलि की शाखाएं देश के सभी जिला और तहसील मुख्यालयों पर लंबे समय से सक्रिय हैं। अब इसका विस्तार कस्बों और बड़े गांवों में करने की तैयारी है। अब रामदेव का स्वदेशी आंदोलन गांव-गांव फैलाया जा रहा है। रामदेव ने कोकाकोला और पेप्सी जैसे विदेशी शीतल पेय काफी हद तक बंद करा दिए हैं। अब यूनिलीवर जैसी कंपनियों को भगाने का लक्ष्य है। हमारा मकसद गांधी के स्वदेशी आंदोलन को मजबूत करना है। छोटे और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देकर ग्रामीण विकास की तैयारी है। भाजपा के एक नेता कहते हैं- एक प्रकार से सरसरी तौर पर देखें तो यह अच्छी बात लगती है कि पतंजलि स्वदेशी मुहिम को गांव-गांव ले जा रहा है। भारत गांवों में बसता है। गांव के छोटे-मझोले उद्योगों के विकास से देश का विकास होगा। लेकिन छह लाख गांवों में अगर संघ की तर्ज पर शाखाओं के संचालन की तैयारी है तो कुछ आशंकाएं जरूर मन में उठती हैं। क्योंकि यह जगजाहिर है कि बाबा राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखते हैं। कहा जा रहा कि भाजपा के अंदरखाने एक धड़ा भी बाबा के प्लान से आशंकित है। आशंका व्यक्त की जा रही कि कहीं मल्टीनेशनल कंपनियों को भगाने और स्वदेशी मुहिम की आड़ लेकर बाबा भाजपा की ही कमर तो नहीं तोडऩे में जुटे हैं।
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक सत्ताधारी भाजपा की हैसियत नौ सौ करोड़ रुपये की है। चंदे से पार्टी ने इतना पैसा जुटाया है। जब भाजपा का यह हाल है, बाकि दलों की बात छोडि़ए। दूसरी तरफ बाबा रामदेव ने 10 हजार करोड़ से ज्यादा के टर्नओवर का आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर लिया है। बाबा के समर्थक कहते हैं कि रामदेव के पास सब एक नंबर का पैसा है। जिसका वाजिब-हिसाब किताब उनके पास है। कोई भी दल, कितनी भी ताकत जुटा ले, वह बाबा को आर्थिक रूप में भी चुनौती नहीं दे सकता। रही बात समर्थकों की तो बाबा के पास इसकी भी कमी नहीं है। रामदेव समर्थकों के मुताबिक देश में 10 करोड़ से ज्यादा उनके अनुयायी हैं। दावे के समर्थन में बाबा के करीबी बताते हैं कि संघ के सिर्फ तीन हजार प्रचारक पूरे देश में भगवा विचारधारा के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं, जबकि बाबा रामदेव ने पतंजलि के जरिए कोई जिला और तहसील नहीं छोड़ी है जहां ऐसे लोग रख दिए जो पतंजलि के प्रचारक भी हैं और कंपनी का स्टोर खोलकर पैसे भी कमा रहे। लाखों लोग पतंजलि के स्टोर चला रहे। पतंजलि से जुड़े सूत्र बताते हैं कि बाबा रामदेव को लगता है कि उनके पास अथाह पैसा है, समर्थकों की भीड़ भी है। बस अब बूथस्तर तक टीम खड़ी करनी है। इसके बाद राजनीतिक मंच बनाकर देश को एक विकल्प देकर ताल ठोंकी जाए।
क्या किंगमेकर बनना चाहते हैं बाबा
बाबा रामदेव के करीबी लोगों का कहना है कि हमने महसूस किया कि उनके अंदर राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं। वे खुद को चाणक्य कहते हैं। आने वाले वक्त में इसी भूमिका में खुद को देखना चाहते हैं। बाबा रामदेव के हाव-भाव और उनकी बातों से पता चलता है कि निकट भविष्य में वे देश की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में आना चाहते हैं। यही वजह है कि नेताओं की तरह वह समय के साथ पाले भी बदलते चल रहे। कभी कांग्रेस के करीब थे, फिर विश्व हिंदू परिषद वाया भाजपा के करीब आए हैं। राजनीति विश्लेषक नीरेंद्र नागर कहते हैं कि बीजेपी और आरएसएस आज भले ही बाबा रामदेव का खुला समर्थन कर रहे हों लेकिन अंदर ही अंदर उनको यह डर भी है कि कहीं बाबा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जाग गई तो उनके ही वोट कटेंगे। बाबा महात्मा गांधी नहीं हैं कि नेहरू को सत्ता दिला दी, खुद उससे दूर रहे, न वह जयप्रकाश नारायण हैं जिन्होंने 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनवाई थी लेकिन खुद कोई पद नहीं लिया। बाबा रामदेव राजनीति में आएंगे तो ऐक्टिवली आएंगे, कुछ करने और कुछ पाने के लिए आएंगे।
- इन्द्र कुमार