01-Jan-2018 10:31 AM
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देश और प्रदेश की सरकारें खेती को लाभ का धंधा बनाने के साथ ही 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने की नीति पर काम कर रही हैं, लेकिन जिस तरह किसानों की उपज को भाव नहीं मिल रहे हैं उससे तो यही लगता है की सरकार की नीति बस कागजी है। वह इसलिए की प्याज के बाद अब आलू ने भी किसानों की कमर तोड़ दी है। मप्र सहित देशभर में आलू माटी के मोल हो गया है। खासकर प्रदेश में इन दिनों सब्जियों के राजा कहे जाने वाले आलू के भाव जमीन पर आ गए हैं। इससे किसानों की लागत भी नहीं निकल रही है। आलम यह है कि प्रदेश में सड़कों के किनारे आलू फेंका जा रहा है।
मंडियों में आलू की आवक एकदम बढ़ जाने की वजह से आलू की कीमतें नीचे आ गई हैं। दिसंबर के महीने की आवक देखें तो पिछले साल के मुकाबले यह 937 फीसदी ज्यादा रही। देशभर की मंडियों में ऐसे ही हालत हैं, जिसकी वजह से रेट कम हो गए हैं। इस बार प्रदेश के किसानों ने आलू का अच्छा प्रोडक्शन किया, मगर दाम इतने नीचे गिर गए कि लागत तक नहीं निकल पा रही है। कोल्ड स्टोरेज में नए आलू रखने की जगह न होने की वजह से पुराना आलू किसान ले नहीं जा रहे हैं इसलिए आलू कोल्ड स्टोर से बाहर फेंका जा रहा है।
किसानों के अनुसार आलू की लागत करीब 8 रु. किलो आती है। वर्तमान में पुराना आलू करीब 50 पैसे किलो बिक रहा है। इसके अलावा अगर किसान ने कोल्ड स्टोरेज में आलू रखा तो उसे करीब 4 रु. किलो कोल्ड स्टोरेज का भाड़ा लग जाता है। इसलिए उचित भाव नहीं मिलने के कारण किसान आलू फेंक रहे हैं।
एसोसिएशन ने कहा है कि कोल्ड स्टोरेजों में रखे आलू को वापस निकालने की समय सीमा 31 अक्टूबर 2017 को समाप्त हो गई है। अत: अब कोल्ड स्टोरेज मालिक अपने यहां रखे आलू को बगैर भंडारणकर्ता को सूचना दिए फेंक सकता है। एसोसिएशन के अनुसार मप्र में कुल 200 कोल्ड स्टोरेज है जिनमें 5 लाख कट्टे आलू का स्टॉक है। एक कट्टे में 60 किलो आलू रहता है अत: 300 लाख टन आलू पर अब किसानों का नहीं बल्कि कोल्ड स्टोरेज वालों का अधिकार है और वे इसका जो चाहे वह उपयोग कर सकते है। मप्र के इंदौर, उज्जैन, शाजापुर, देवास, धार, राजगढ़, खरगोन, रतलाम, भिंड, मुरैना तक के लगभग सभी शीतगृहों में 10 से 20 हजार कट्टे आलू के पड़े हैं। इन्हें उठाने आने वाले नहीं मिल रहे हैं। जिन किसानों का आलू शीतगृहों में रखा है, वे शायद यह जानते हैं कि मंडी तक ले जाकर बेचने में लाभ के बजाय घाटा होने वाला ही है। अत: शायद लावारिस रूप से छोड़ दिया है। भिंड, मुरैना में लोकल के अलावा उप्र वाले भी आलू का स्टॉक इन शीतगृहों में करते हैं। सामान्यत: आलू में 80 प्रतिशत पानी होता है। अच्छे रखरखाव के बाद 8 माह तक तो ठीक-ठाक तरीके से रख लिया जाता है, किंतु उसके बाद खराब होने लगता है।
राऊ-पीथमपुर बायपास एवं महू-नीमच मुख्य मार्ग पर अपरेल पार्क के सामने राजस्थान से आए भेड़ व ऊंट पालकों के डेरों के पास हजारों कट्टे आलू के पड़े हुए हैं। इन कट्टों को भेड़ और ऊंट पालकों ने कोल्ड स्टोरेज वालों से खरीदा है। बताया जाता है कि उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण किसान अपने आलू कोल्ड स्टोरेज से नहीं ले जा रहे और कोल्ड स्टोरेज संचालकों को कोल्ड स्टोरेज खाली करना है। इसलिए संचालकों ने आलू औने-पौने दाम में बेचना शुरू कर दिया। इस मौके का भेड़ और ऊंट संचालकों ने फायदा उठाया और अपने मवेशियों के लिए आलू खरीद लिया। भेड़ पालकों का कहना है कि सीधे किसानों का आलू कोल्ड स्टोरेज के संचालक 25 रु. प्रति कट्टे से लेकर 50 रु. कट्टे तक बेच रहे हैं। उक्त कट्टों को ट्रकों में लोड कर भेड़ पालक अपने डेरे वाले स्थान में खाली करवा लेते हैं। प्रतिदिन कई कट्टे आलू खोलकर जमीन पर फैला देते हैं जिसे दिनभर भेड़ खाती रहती हैं। जब किसानों की उपज का यही हाल रहेगा तो ऐसे में उनकी आमदनी 2022 तक दोगुनी कैसे होगी।
300 लाख टन फेंकने की तैयारी
मध्य प्रदेश के 200 से ज्यादा कोल्ड स्टोरेज से 300 लाख टन आलू को सड़कों पर फेंकने की तैयारी की जा रही है। भोपाल सहित प्रदेश के अलग-अलग जिलों में बने कोल्ड स्टोरेजों में किसानों द्वारा रखा 300 लाख किलों आलू बाहर निकालने के लिए मप्र कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन ने आलू का भंडारण करने वाले सभी किसानों को अंतिम चेतावनी दे दी है। दरअसल, आलू की नई फसल आ चुकी है लेकिन पुरानी फसल की हालत खराब है। कोल्ड स्टोर मालिक आलू मैदानों और सड़कों के किनारे फेंक रहे हैं। इसकी वजह है कि जिन किसानों ने सालभर से कोल्ड स्टोरेज में आलू रख रखा था वह अब इसे लेने के लिए नहीं आ रहे हैं। किसानों की मानें तो इस पुराने आलू के कट्टे की कीमत 30 रुपए है, जबकि किसान को इसे कोल्ड स्टोरेज से बाहर निकालने में ही इससे ज्यादा खर्च हो रहा है। ऐसे में कोल्ड स्टोरेज वालों को पुराना आलू फेंकना पड़ रहा है।
-विशाल गर्ग