01-Jan-2018 10:23 AM
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पाकिस्तान की घूरती हुई आंखों के बीच फांसी की सजा प्राप्त नौसेना का अधिकारी कुलभूषण जाधव का अपनी मां और पत्नी से मिलना, क्रूरता की हद को मात करती सबसे निर्दयी तस्वीर है! सवा अरब से ज्यादा की तादाद में मौजूद भारतीयों के लिए इस तस्वीर को देखने से ज्यादा विध्वंसक दृश्य और क्या हो सकता है? यह नफरत का उद्दंड और मनमानी से भरा प्रदर्शन था और हमें इसे इसी तरह देखना चाहिए। पाकिस्तान की इस हुकूमत में भारत के लिए जरा भी प्यार नहीं है। किस किस्म की मुलाकात थी यह? मुलाकातियों के बीच खड़ी शीशे की ऐसी मोटी दीवार की कोई सामने वाले को छू ना सके और बिल्कुल आमने-सामने होने के बावजूद बातचीत टेलीफोन के जरिए करनी पड़े। इस मुलाकात में कुछ भी ऐसा नहीं कि उसे अंतरंग कह सकें, गर्मजोशी से भरा मान सकें। यह एक रुपक के तौर पर दोनों देशों के रिश्ते पर बिल्कुल सटीक बैठता है।
यह सोचना कि मुलाकात के समय इतनी दूरी सरकारी अदब-कायदे यानी प्रोटोकॉल का तकाजा है, एक बकवास है। आश्चर्य की बात तो यह है कि मुलाकात का ऐसा माखौल उड़ाया गया लेकिन भारतीय अवाम को इस पर कोई गुस्सा नहीं है। ऐसा लगता है, हमने मान लिया है कि कोई छूट ना मिलने से बेहतर है कि थोड़ी ही सही लेकिन छूट मिल जाए और अचानक ही शह और मात के खेल में बाजी एकदम से पाकिस्तान के हाथ में चली गई है। यह सब कुछ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) के उस फैसले से कितना दूर है जिसमें भारत के पक्ष को सही ठहराते हुए पाकिस्तान को लानत भेजी गई थी।
एक राष्ट्र के रूप में हमारे साथ ऐसी क्या बात है जो हमारा गुस्सा देर तक कायम ही नहीं रहता? हमें छोटी-मोटी बातों पर खूब गुस्सा आता है। हम फिल्मों पर रोक लगाने की बात करते हैं, किसी सेलिब्रेटी के बेतुके बयान पर उबल पड़ते हैं, किसी सौन्दर्य प्रतियोगिता को लेकर हमें ताव आ जाता है और किसी की पोशाक को लेकर हम गुस्सा कर बैठते हैं। लेकिन हमारी आंखों के आगे एक व्यक्ति के साथ ऐसा नाइंसाफी का बर्ताव हुआ और हम इसको लेकर कुछ नहीं कर रहे।
जाधव भारत के प्रतीक हैं और पाकिस्तानी सेना की उस अदालत से जहां इंसाफ का माखौल उड़ाया जाता है, जाधव को बचाना हमारा फर्ज बनता है। हम आईसीजे में गए और इस तरह हमने शुरुआत अच्छी की लेकिन फिर एक बारगी हमारे कदम थम गए। सरकार को चाहिए वह साफ शब्दों में कहे कि जाधव को फांसी की सजा दी गई तो फिर पाकिस्तान को इसका अंजाम भुगतान होगा। सरकार को कहना चाहिए कि फांसी की सजा दी जाती है तो पाकिस्तान को इसकी कीमत आर्थिक और सैन्य रूप से भी चुकानी होगी और व्यापार व सीमा से जुड़े संबंधों के लिहाज से भी। सरकार को चाहिए, वह इसे एक बड़ा मुद्दा बनाए, छोटी कहानी भर ना समझ ले।
जाधव की मां और पत्नी को पाकिस्तान का न्यौता एक तरह का प्रहसन है और फिर जिस तरह से सारा मंजर पेश आया जिसमें दूतावास के एक अधिकारी को बहुत दूर रखा गया, उसे जाधव से भेंट तक ना करने दिया गया- यह और भी बुरा था। दूतावास के अधिकारी को एक तरह से एस्कार्ट बनाकर रखा गया, उसे मुलाकात के मौके पर आस-पास भी फटकने की इजाजत नहीं थी। यह सब दिल पर गहरी चोट मारने जैसा है और फर्ज बनता है कि हम जाधव को संदेश भेजे कि सारा देश आपके पीछे खड़ा है और इस अपमानजनक वाकये के बाद तो देश और भी ज्यादा आपके साथ है।
जाधव पहले से ही बहुत अकेले हैं और इस घटना के बाद और भी ज्यादा अकेलापन महसूस कर रहे होंगे। उनके प्रति हमें सिर्फ नैतिक समर्थन ही नहीं बल्कि यह जताने की जरुरत है कि पूरा देश आपके साथ है। पूरी कवायद के भीतर छिपी मंशा और मकसद को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह तथाकथित मानवतावादी दिखावा उस सूरत में कहीं कम दुखदाई होता अगर मुलाकात स्काईप या वॉट्सऐप के जरिए करवाई जाती। अगर कुलभूषण जाधव को उनकी मां और पत्नी से मिलने दिया जाता तो ऐसी क्या आफत आ जाती? ऐसा लगता है, हमने सबकुछ भाग्य भरोसे छोड़ देने वाली रीत अपना ली है। हमारे राजनेता चुप हैं, जनता अनदेखी के भाव से खड़ी है, मीडिया तटस्थ रवैया अपनाए हुए है और कोई यह समझना ही नहीं चाहता कि पाकिस्तान हमसे जानते-बूझते माथा भिड़ा रहा है।
हारे तो साबित होगा बुरी नजीर
अगर हम कमजोर बने बैठे रहे, जाधव का मजाक बनने दिया और इस बारे में प्रतिबंध लगाने या मांग करने जैसे कोई कार्रवाई नहीं की तो फिर हम यह लड़ाई कई मोर्चों पर हारेंगे और आगे के वक्तों के लिए यह एक बुरी नजीर साबित होगा। हमारे पास चीजों को दुरुस्त करने की शक्ति है। कैदियों की अदला-बदली पहले भी हुई है। नागरिकों की हिफाजत के लिए पहले भी सौदे हुए हैं और छूट दी गई है। बेशक छूट तर्कसंगत होनी चाहिए और इससे जुड़ा दूसरा पहलू स्पष्ट चेतावनी देने का भी है कि पाकिस्तान किसी अनहोनी की हालत में अंजाम भुगतने को तैयार रहे। हमें यह बात खुलकर कहनी होगी।
-सत्य नारायण सोमानी