चीन की चतुराई!
07-Dec-2017 09:08 AM 1234849
शायद ही किसी ने सोचा होगा कि दुनिया के सबसे उम्रदराज शासक जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे का यह हश्र होगा। जिस देश पर वे सैंतीस सालों से एकछत्र राज करते आ रहे थे वहां की सेना ने उन्हें नजरबंद कर दिया। यही नहीं बाद में उनकी पार्टी ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर उनको राजनीतिक वनवास दे दिया, लेकिन ऐसा क्यों किया गया? यह सवाल आज हर तरफ उठ रहे हैं। अभी तक मिले संकेतों में इसके पीछे चीनी चाल बताई जा रही है। दरअसल, जिम्बाब्वे के सेनाध्यक्ष कोंस्टेनटिनो चिवेंगा मुगाबे को हटाने से कुछ ही दिन पहले चीन गए थे। आशंका जताई जा रही है कि चीन ने सेनाध्यक्ष को कुछ फीडबैक दिया, जिसके बाद मुगाबे को अपदस्थ किया गया। हालांकि बीजिंग ने सेनाध्यक्ष चिवेंगा के दौरे को सामान्य सैन्य दौरा बताया है, लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो इसे तख्तापलट से जोड़कर देख रहे हैं। इन खबरों को तब और बल मिला जब चीन ने तख्तापलट की निंदा नहीं की। चीन और जिम्बाब्वे के बीच मजबूत दोतरफा व्यापारिक संबंध हैं। एक तरफ चीन ने जिम्बाब्वेे में कृषि से लेकर निर्माण कार्यों तक बहुत से कामों में अरबों का निवेश कर रखा है तो दूसरी तरफ जिम्बाब्वे में बनने वाले सामानों के लिए चीन बड़ा बाजार है। दोनों देशों के रिश्ते रोडेशियन बुश युद्ध के समय से चले आ रहे हैं। 1979 में जब रॉबर्ट मुगाबे को सोवियत का साथ नहीं मिला तो उन्होंने चीन का रुख किया जिसने गुरिल्ला लड़ाके, हथियार और ट्रेनिंग देकर मुगाबे की मदद की। 1980 में जिम्बाब्वे के आजाद होने के बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की शुरुआत हुई और मुगाबे ने अगले साल बतौर प्रधानमंत्री बीजिंग का दौरा किया। तब से मुगाबे ऐसे बहुत से दौरे कर चुके हैं। ऐसे में तख्तापलट के बाद भी चीन की चुप्पी इस बात का संकेत देती है कि हो न हो इसमें उसका हाथ हो सकता है। फिलहाल जिम्बाब्वे पर अब वहां की सेना का राज है और राजधानी हरारे की सड़कों पर सेना के टैंक तैनात हैं, लेकिन सेना ने इसे तख्तापलट मानने से इनकार किया है, अपनी सफाई में उसने कहा है कि यह बस एक स्वच्छता कार्रवाईÓ है। आखिर क्या मतलब है इसका? मुगाबे के अलावा उनके कई मंत्री भी बर्खास्त और नजरबंद कर दिए गए हैं। क्या यह घटनाक्रम बस सेना की महत्वाकांक्षा का परिणाम है, या इसके तार देश की राजनीति से भी जुड़े हैं? तमाम राजनीतिक व कूटनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि मुगाबे का तख्ता पलटे जाने के पीछे सत्तारूढ़ रही पार्टी जनू-पीएफ की भीतरी लड़ाई और मुगाबे के राजनीतिक उत्तराधिकार का मुद््दा रहा है। अगले साल संभावित राष्ट्रपति चुनाव में तिरानबे साल के मुगाबे के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी थे उपराष्ट्रपति इमर्सन मनंगावा, लेकिन मुगाबे अपनी पत्नी ग्रेसी को कमान सौंपना चाहते थे और इसी की खातिर उन्होंने अगले महीने होने वाले जनू-पीएफ के अधिवेशन में ग्रेसी को उपराष्ट्रपति बनाने की घोषणा करने की तैयारी कर ली थी। यह इमर्सन को कैसे रास आ सकता था? पार्टी के अन्य बहुत-से नेता भी इसके लिए तैयार नहीं थे। इस नाराजगी और सेना द्वारा तख्ता पलट के बीच क्या रिश्ता है और कैसे यह समीकरण बना, इसकी कहानी कुछ दिनों में सामने आ जाएगी। मुगाबे दशकों से राष्ट्रपति के तौर पर जिम्बाब्वे पर राज करते आ रहे थे तो इसके पीछे राजनीति पर उनकी गहरी पकड़ के अलावा उनकी छवि का भी हाथ था। देश के लोग उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के तौर पर देखते रहे, लेकिन ग्रेसी प्रकरण ने साफ कर दिया कि मुगाबे पार्टी को निजी जागीर में बदल देना चाहते हैं। पार्टी के बहुत-से नेताओं के अलावा आम लोगों को भी यह पसंद नहीं था, उन्हें लगता है कि एक समय का उनका हीरो बदल गया है। यही कारण है कि तख्ता पलट के विरोध में लोग सड़कों पर नहीं उतरे। अलबत्ता उन्हें एक शंका और अनिश्चितता जरूर घेरे है कि जाने आगे क्या होगा। मुगाबे लंबे समय से पश्चिमी देशों की निगाह में खटकते रहे हैं। पश्चिमी दुनिया उन्हें एक निरंकुश शासक के रूप में देखती आई है जिसने अर्थव्यवस्था को बर्बादी की राह पर धकेला और जो सत्ता में बने रहने के लिए बेहिचक हिंसा का सहारा लेता रहा। यही वजह है कि सैन्य तख्ता पलट जैसी घटनाओं पर तीखी प्रतिक्रिया करने वाले पश्चिमी देश फिलहाल खामोश हैं। अब सबकी निगाहें इस पर लगी हैं कि सेना का आगे कदम क्या होगा? अपनी गलतियों के शिकार बने मुगाबे एक तथ्य यह भी समाने आ रहा है कि मुगाबे अपनी ही गलतियों के शिकार हो गए। दरअसल, राष्ट्रपति मुगाबे ने पिछले सप्ताह जब उप-राष्ट्रपति मनंगावा को उनके पद से हटाया, तो उसका कोई ठोस कारण नहीं बताया। खबर यह फैली और इसमें सच्चाई भी थी कि उन्होंने अपनी पत्नी ग्रेस मुगाबे को उप-राष्ट्रपति बनाने के लिए ऐसा किया। माना जा रहा है कि मुगाबे अपनी पत्नी ग्रेस को अगला राष्ट्रपति बनाना चाहते हैं। 52 साल की ग्रेस दक्षिण अफ्रीकी मूल की महिला हैं। जब वह राष्ट्रपति कार्यालय में सचिव थीं, तभी उनका मुगाबे से प्रेम-प्रसंग शुरू हुआ। ग्रेस ने अपने पति से तलाक लेकर मुगाबे से शादी की और मुगाबे से उनके दो बच्चे हैं। मुगाबे की पहली पत्नी का निधन हो गया था। ग्रेस का शासन में दखल बढ़ा, तो इसके खिलाफ असंतोष पैदा होना ही था। रॉबर्ट मुगाबे आजादी के बाद से ही जिम्बाब्वे की सत्ता संभाल रहे हैं। दुनिया में भले उनकी इज्जत रही हो, पर वह शुद्ध लोकतांत्रिक कभी नहीं रहे। वह एकाधिकारवादी शासक रहे हैं, जिनको सेना का समर्थन प्राप्त था पर जब उन्होंने आजादी की लड़ाई में शामिल वरिष्ठ नेताओं को निकालना शुरू किया, तो समस्या बढ़ गई। -बृजेश साहू
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