अभयारण्य की बंदरबांट
01-Jan-2018 09:55 AM 1235145
सोन चिरैया के इंतजार में बैठी सरकार भी ना-उम्मीद हो चुकी है। अभयारण्य की भूमि पर सरकारी बंदिश हटाने की कवायद पूरी हो चुकी है। अब सिर्फ मुहर लगना बाकी है। इसी कारण थमी पड़ी विकास की रफ्तार को अब गति मिल सकती है। ग्वालियर जिले में 512 वर्ग किलोमीटर में फैले सोन चिरैया अभयारण्य से करीब 80 वर्ग किलोमीटर जमीन बाहर हो जाएगी। इसके साथ ही शुरू हो जाएगा अभयारण्य का बंदरबांट। खनन कारोबार, औद्योगिक क्षेत्र, तिघरा फोरलेन, बाहरी कंपनियों को आमंत्रण आदि के लिए रास्ते खुल जाएंगे। साथ ही यहां सड़क निर्माण और विद्युत लाइन बिछाने का काम भी सेंट्रल वाइल्ड लाइफ अथॉरिटी की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता। इस वजह से यहां विकास से जुड़े तमाम निर्माण कार्य या तो शुरू नहीं हो पाए या शुरू होने के बाद अधूरे पड़े हुए हैं। इसी के चलते स्थानीय लोग दो दशक से विरोध करते आ रहे हैं। सरकार का दावा है कि पहली बार जमीन पर विकास के रास्ते तो खुलेंगे ही साथ ही यहां रहने वाले ग्रामीण, बंजारे सहित अन्य वर्ग के लोगों को राहत मिलेगी। वहीं पर्यावरणविदों के अनुसार अभयारण क्षेत्र को घटाने से वन संपदा के साथ-साथ वन्यजीवों पर आबादी बढऩे से असर पड़ेगा। वन और रेवेन्यू विभाग के अफसर इसी काम में जुटे थे, जिन्होंने डी-नोटिफिकेशन की तैयारी का होमवर्क पूरा कर लिया है। उल्लेखनीय है कि सोन चिरैया अभयारण्य घाटीगांव को 1981 में अधिसूचित किया गया था। इसका क्षेत्रफल 512 वर्ग किलोमीटर है। यह एरिया सिर्फ ग्वालियर जिले का है। 2008 में घायल अवस्था में सोन चिरैया को देखा गया था। इसके बाद 2011 में सोन चिरैया के देखे जाने की बात सामने आई। तबसे लेकर अब तक इस अभयारण्य में सोनचिरैया की उपस्थिति नहीं देखी गई। इस अभयारण्य में सोन चिरैया के साथ-साथ हिरण, चीतल, नीलगाय आदि जानवर भी हैं। ज्ञात रहे कि सोन चिरैया अभयारण्य को लेकर पहले भी इसका एरिया कम करने की कवायद की गई थी, लेकिन भोपाल स्तर पर बैठक के बाद आगे मामला नहीं बढ़ सका। सरकार प्रदेश के करैरा अभयारण्य, शिवपुरी, सोन चिरैया अभयारण्य ग्वालियर, सैलाना अभयारण्य, रतलाम और खरमौर अभयारण्य धार की सीमा घटाने की तैयारी कर रही थी। उल्लेखनीय है कि केवल भारत में पाया जाने वाला पक्षी सोन चिरैया या गोडावण विलुप्ति की कगार पर है। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के नाम से जाना जाने वाला यह पक्षी काफी हद तक शुतुरमुुर्ग जैसा है। उडऩे वाले पक्षियों में यह सबसे भारी है। यह शांत व निर्जन घास के मैदानों में पाया जाता है। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत इसे भी बाघों की तरह संकटापन्ना जीव घोषित किया गया है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी भी है। राजस्थान में इसे गोडावण और गुजरात व पाकिस्तान के कुछ अन्य क्षेत्रों में इसे हुकना पक्षी के नाम से भी जाना जाता है। यह मूलत: राजस्थान के जैसलमेर स्थित मरू उद्यान, सोरसन (बारां) व अजमेर के शोकलिया क्षेत्र एवं उत्तरी मध्यप्रदेश के ग्वालियर एवं शिवपुरी समेत गुजरात एवं पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में पाया जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला है, इसलिए जहां इंसानी दखल या कोलाहल बढ़ता है, यह पक्षी उस क्षेत्र को छोड़कर चले जाते हैं। आखिरी बार एकमात्र सोन चिरैया 2011 में दिखाई दी थी। इस पक्षी की कोई हलचल न करेरा में है, न घाटीगांव में। मगर वन विभाग के अफसर मानने को राजी नहीं हैं। उन्हें उम्मीद है कि सोन चिरैया जहां भी होगी, अपने पारंपरिक घर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) घाटीगांव में लौटकर जरूर आएगी। अब सबूत के तौर पर कहीं से आवाज ही सुनाई दे जाए इसके लिए हियरिंग एड्स, कैमरे और स्कवाड लगाए गए हैं। इस लुप्त जीव के नाम पर सालाना 10 करोड़ रुपए की रकम हवा हो रही है। ग्वालियर जिले के घाटीगांव की जीआईबी सेंक्चुरी में अवैध खनन की वजह से खत्म हो चुके घास के मैदानों को विकसित किया जा रहा है। किसी कोने से इस चिरैया की चहचहाहट ही सुनाई दे जाए। दो सौ किलोमीटर क्षेत्र में फैंसिंग की जा रही है। इस काम के लिए लगभग पांच करोड़ रुपए खर्च करने की तैयारी है। मगर सोन चिरैया गई कहां? वन विभाग का अंदाजा है कि संभव है वह यहां से राजस्थान के फलौदी, पोखरन, मोहनगढ़ और रामगढ़ की सेंक्चुरी में उड़कर चली गई हो। यह पक्षी 100 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है। 55 गांव में से 25 होंगे बाहर जिले के घाटीगांव क्षेत्र में आने वाले 55 गांव ऐसे हैं जो सोन चिरैया अभयारण्य में आते हैं। इसमें मजरे-टोले भी शामिल हैं। इन 55 में से 25 गांव अभयारण्य अधिसूचित क्षेत्र से बाहर आ जाएंगे। गांवों की इस संख्या को अंतिम समय में कम-ज्यादा भी किया जा सकता है। अभयारण्य के क्षेत्र में आने वाले गांवों के लोगों के अधिकारों का विनिश्चयन किया जाएगा। इससे ग्रामीण अपनी जमीन पर खेती-बाड़ी सहित क्रय-विक्रय भी कर सकेंगे। इसके लिए एक प्रकिया का पालन करना होगा। अभी तक ऐसा नहीं हो पा रहा था। -धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया
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