01-Jan-2018 09:54 AM
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ये अफसरों की लापरवाही की हद है या व्यवस्था की जड़ता कि 20-25 साल से अलग-अलग अदालतों में केस चल रहे हैं लेकिन जिला प्रशासन की ओर से न जवाब पेश हुआ न दावा। तीन महीने पहले जब मुख्य सचिव बीपी सिंह ने इंदौर आकर राजस्व विभाग की समीक्षा की थी तब यह जानकारी छिपाई गई थी, लेकिन अब जाकर ऐसे करीब 1700 केस उभरकर सामने आ गए हैं। सामने आए प्रकरणों में करीब 800 प्रकरण सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और जिला कोर्ट, जबकि करीब 900 केस प्रशासन के ही अधीनस्थ न्यायालयों में चल रहे हैं। इनकी पड़ताल के लिए प्रशासन अब फिक्रमंद हुआ है, लेकिन पता चला है कि इनमें से कई केस की फाइलें ही गायब हैं। इनमें से 90 फीसदी से अधिक केस सरकारी जमीन से जुड़े हैं, जिन पर या तो कब्जे हैं या ये भू-माफिया की गिरफ्त में हैं।
इंदौर में ये व्यवस्था प्रशासन के ही उन अफसरों और बाबुओं की देन है जो भू-माफिया को अनुचित लाभ पहुंचाना चाहते थे। कुछ फाइलें पुराने एसडीएम और तहसीलदारों के कार्यालयों से गायब हुई हैं तो कुछ फाइलें रीडरों ने रफा-दफा कर दीं। इसके पीछे यही मंशा रही कि भू-माफिया के खिलाफ समय पर जवाब-दावा पेश न हो और शासन का पक्ष कमजोर साबित हो। इन तमाम फाइलों के लिए तलाशी अभियान शुरू किया गया है। राज्य शासन के खिलाफ उच्च न्यायालयों में इंदौर और उज्जैन संभाग के ही करीब 23 हजार मामले चल रहे हैं। इनमें जमीन, मुआवजा, कर्मचारियों के सर्विस मेटर आदि हैं। कई बार कलेक्टरों को पता नहीं चल पाता कि शासन के खिलाफ हाई कोर्ट में कहां-कौन सा केस चल रहा है। इस कारण कई बार हाई कोर्ट में भी समय पर जवाब पेश न होने से शासन को हार का सामना करना पड़ता है।
इसी व्यवस्था को ठीक करने के लिए शासन ने हर संभाग में जॉइंट कमिश्नर लिटीगेशन की नियुक्ति की है। इनका काम महाधिवक्ता और जिलों के बीच हाई कोर्ट के प्रकरणों को लेकर समन्वय कायम करना है। संभागायुक्त और जॉइंट कमिश्नर लिटीगेशन की ओर से हाल ही में इंदौर कलेक्टर को 718 ऐसे प्रकरणों की सूची भेजी गई है जो शासन के खिलाफ हाई कोर्ट में चल रहे हैं।
शासन के खिलाफ लड़े जाने वाले जमीन संबंधी प्रकरणों में प्रशासन को ही पार्टी बनाया जाता है। शासन की ओर से जवाब देने के लिए जिला प्रशासन ही जिम्मेदार होता है। हर जिले में कलेक्टर के मातहत विभिन्न शाखाओं की तरह न्यायालयीन केस (जेसी) शाखा भी होती है। कलेक्टर अपने किसी अधिकारी को इस शाखा का प्रभारी बनाते हैं। जेसी शाखा में उन सारे केस की फाइलें रहती हैं जो शासन की ओर से या शासन के खिलाफ कोर्ट में लगाए जाते हैं। संबंधित ओआईसी को इनके बारे में बताना जेसी शाखा का ही काम है। अपर कलेक्टर कैलाश वानखेड़े कहते हैं कि अधिकतर कोर्ट केस चिन्हित कर लिए गए हैं। उनकी सूची भी बना ली गई है। इसके लिए संबंधित एसडीएम और तहसीलदार को ओआईसी भी बना दिया गया है। उनसे पूछा जा रहा है कि शासन के खिलाफ प्रकरणों में जवाब क्यों नहीं दिया, फाइल कहां हैं। फाइलें तलाशने की जिम्मेदारी भी उन्हीं को दी गई है। जो अधिकारी दोषी होंगे, उन्हें नोटिस जारी किए जाएंगे।
13 जिलों में नहीं हुई एक धेला रिकवरी
प्रदेश में 13 जिलों में आर्थिक हालात खराब होने और प्रशासनिक लापरवाही के चलते पिछले साढ़े सात सालों से बैंकों के 1400 करोड़ रुपए की आरआरसी वसूली के लिए 61 हजार से अधिक नोटिस जारी हुए पर इस अवधि में बकायादारों से एक धेला की वसूली नहीं हो सकी। इसकी जानकारी सामने आने के बाद बैंकर्स ने इसे मुख्यमंत्री और मुख्यसचिव के संज्ञान में लाने का फैसला किया है। जल्द ही इसको लेकर प्रदेश के बैंकर्स की ओर से राज्य सरकार को जानकारी देने की तैयारी की जा रही है। यहां खास बात यह है कि अधिकांश जिले आदिवासी बाहुल्य हैं जहां प्रशासनिक अधिकारी बकायादारों पर सख्ती नहीं कर पा रहे हैं। प्रदेश के बैंकों द्वारा जमा राशि के बावजूद लोन नहीं दिए जाने की शिकायतों के बीच आरआरसी जारी होने के बाद भी वसूली नहीं होने को लेकर तैयार कराई गई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। इसके बाद इन जिलों के बारे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह के समक्ष अगले माह जनवरी में होने वाली स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी की बैठक में इस मुद्दे को रखने की तैयारी की जा रही है। बैंक सूत्र बताते हैं कि जिन जिलों से रिकवरी शून्य आई है उसमें जबलपुर भी शामिल हैं। इसके अलावा बाकी जिलों में आदिवासी जिलों की संख्या ज्यादा है।
- इंदौर से नवीन रघुवंशी