किंग ऑफ फिक्सिंग श्रीनिवासन
15-Jun-2013 07:09 AM 1234757

अंतत: बीसीसीआई ने जो तय था वही किया। श्रीनिवासन को बचाना बीसीसीआई की मजबूरी थी और श्रीनिवासन ने बीसीसीआई की मजबूरी का भरपूर फायदा उठाया। जो नई फिक्सिंगÓ हुई है उसके मुताबिक श्रीनिवासन को पद से इस्तीफा नहीं देना पड़ेगा बल्कि फिक्सिंग की जांच के दौरान जगमोहन डालमिया कार्यकारी अध्यक्ष बने रहेंगे। कार्यकारी अध्यक्षÓ का पद भी मीडिया ने सृजित किया है जगमोहन का पद क्या है यह स्वयं उन्हें नहीं मालूम। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि फिक्सिंग के खेल में मालिक से लेकर प्रशासक तक सभी शामिल हंै और अब इस खेल में भावी अध्यक्ष बनने का सपना देख रहे वे तमाम लोग भी शामिल हो गए हैं जिनके हित कहीं  न कहीं बीसीसीआई से जुड़े हुए हैं। इसी कारण जब श्रीनिवासन को हटाने की बात सामने आई तो सभी एकजुट हो गए और उन्होंने श्रीनिवासन को बचा लिया। कहानी का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि डालमिया एक बार फिर क्रिकेट की राजनीति में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गए हैं।
इससे पहले आईपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला, बीसीसीआई सचिव संजय जगदाले और कोषाध्यक्ष अजय शिर्के ने इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया था, लेकिन इस इस्तीफा के श्रीनिवासन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। श्रीनिवासन हर हाल में बीसीसीआई अध्यक्ष बने रहना चाहते थे। इसलिए उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद का रास्ता अपनाया और यहां तक कह डाला कि उत्तर भारतीय लॉबी ने उन्हें हटाने का षड्यंत्र रचा था। असल में सच्चाई कुछ और है। अपने समलैंगिक बेटे और महत्वाकांक्षी दामाद से बचने के लिए श्रीनिवासन को एक महत्वपूर्ण पद चाहिए। बीसीसीआई में रहते हुए इससे ज्यादा महत्वपूर्ण और क्या हो सकता है। वैसे भी श्रीनिवासन ने इतने गंभीर आरोपों के बावजूद अपने आपको बचा लिया है और इसके लिए उन्होंने ऐसे दांव-पेंच चले कि वे अब सुरक्षित जोन में आ चुके हैं। बीसीसीआई की जांच एक खानापूर्ति मात्र है।
बीसीसीआई की बैठक में जो कुछ हुआ, उसकी तैयारी श्रीनिवासन ने से ही शुरू कर दी थी। उन्होंने अपने करीबियों को जगमोहन डालमिया से मिलने भेज दिया था।  बैठक से पहले भी श्रीनिवासन ने खुद दो घंटे तक डालमिया से बात की। इसके बाद वही हुआ जो श्रीनिवासन चाहते थे। भारतीय क्रिकेट को कंट्रोल करने वाले श्रीनिवासन ने बीसीसीआई की आपात बैठक का नतीजा खुद ही तय किया। दिल्ली में बैठे अरुण जेटली, राजीव शुक्ला और अनुराग ठाकुर दावे तो करते रहे लेकिन किया कुछ नहीं। दरअसल आपात बैठक शुरू होने से घंटों पहले से ही श्रीनिवासन और उनके सहयोगियों ने अपने पक्ष में लाबिंग करनी शुरू कर दी।
सूत्रों की मानें तो श्रीनिवासनश्रीनिवासन के करीबी बैठक में हिस्सा लेने चेन्नई पहुंचे जगमोहन डालमिया से मिले। डालमिया को इसी वक्त अंतरिम अध्यक्ष पद का वायदा करके अपने पक्ष में करने की कोशिश की गई। श्रीनिवासन की ये कोशिशें देख विरोधी खेमे ने भी ताकत लगानी शुरू कर दी। उन्हें संदेश पहुंचाया गया कि आपको बिना शर्त जांच के रास्ते से हटना ही होगा। ध्यान दीजिए सीधे इस्तीफा मांगने की हिम्मत विरोधी खेमा तब भी नहीं जुटा पा रहा था। इसकी भी एक बड़ी वजह थी। दरअसल विरोधी खेमा ये तय ही नहीं कर पा रहा था कि आखिर श्रीनिवासन के बाद किसके नाम पर जोर लगाया जाए।
चुनावी साल में अरुण जेटली खुद सीधे सीधे इस लड़ाई में नहीं कूदना चाहते थे। जिस शशांक मनोहर के नाम पर थोड़ी बहुत सहमति बन रही थी वो खुद ही पीछे हट गए थे। अपने पत्ते कमजोर पड़ते देख जेटली गुट ने एक कदम और पीछे खींचा। तय हो गया कि ना तो जेटली, ना ही शुक्ला और ना ही ठाकुर बैठक में शामिल होने के लिए चेन्नई जाएंगे। तीनों ने ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए श्रीनिवासन का सामना करना बेहतर समझा। जेटली गुट को कमजोर पड़ता देख श्रीनिवासन ने अपना अगला दांव चल दिया। श्रीनिवासन अड़े हुए थे कि इस्तीफा देने के बाद ना तो सचिव संजय जगदाले और ना ही कोषाध्यक्ष अजय शिर्के को बैठक में शामिल किया जाए। लेकिन मीटिंग में शिर्के को बुलाया। जगदाले को भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जुडऩे का न्यौता भेजा गया। जगदाले ने पहले ही साफ कर दिया कि वो किसी भी कीमत पर मीटिंग में शामिल नहीं होंगे।
श्रीनिवासन गुट की ये कामयाबी देख दिल्ली में खलबली मच गई। जेटली गुट ने एक बार फिर श्रीनिवासन पर दबाव बढ़ाना शुरू किया। कहा गया कि अगर श्रीनिवासन अपनी जिद पर अड़े रहेंगे तो इस्तीफों का अगला दौर मीटिंग के दौरान ही शुरू हो जाएगा। ये भी इशारा किया गया कि नियमों के मुताबिक बीसीसीआई में जिम्मेदारी छोडऩे जैसी कोई चीज नहीं, श्रीनिवासन को हटना ही होगा। विरोधी गुट के इन तेवरों को देख श्रीनिवासन और उनके करीबी थोड़ी देर के लिए सही बैकफुट पर आते नजर आए। दोपहर 12 बजे तक इन अटकलों ने जोर पकड़ लिया कि श्रीनिवासन बिना शर्त इस्तीफा दे सकते हैं। तमाम अटकलों के बीच करीब 45 मिनट बाद तस्वीर थोड़ी-थोड़ी साफ होनी शुरू हुई।
नार्थ जोन और वेस्ट जोन सीधे तौर पर श्रीनिवासन के खिलाफ खड़े हो गए। इसमें मुंबई, विदर्भ, सौराष्ट्र, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और यूपी के वोट शामिल थे। दूसरा कैंप पूर्वी और दक्षिणी जोन श्रीनिवासन के पक्ष में नजर आने लगे। इसमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के वोट शामिल थे। सूत्रों की मानें तो इसके बाद श्रीनिवासन ने अपने दो धुर विरोधियों को पक्ष में करने की कोशिश शुरू की। ये दो लोग थे मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के रवि सावंत और विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के सुधीर डबीर । दोनों से श्रीनिवासन ने खुद बातचीत की। इस वक्त तक दोपहर के डेढ़ बज चुके थे। एक घंटे बाद ही बैठक शुरू होने जा रही थी। लेकिन पिछले 12 में सभी लोगों से बातचीत के बाद श्रीनिवासन को ये एहसास हो गया था कि इस्तीफा देने की जरूरत नहीं। डालमिया का साथ मिलने के बाद श्रीनिवासन की ताकत बढ़ी और यही बैठक के नतीजे में भी झलका।
बीसीसीआई की आज की बैठक से पूर्व आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी भी खासे भड़के हुए हैं। उन्होंने ट्वीट किया है कि क्रिकेट हमारे देश में धर्म है। लेकिन इसे श्रीनिवासन,शुक्ला, जेटली और ठाकुर जैसे लालची लोगों ने हाईजैक कर लिया है। ये देश और क्रिकेट प्रेमियों के साथ धोखा है। क्रिकेट में ये अब तक का सबसे बड़ा कवरअप है। श्रीनिवासन, जेटली और शुक्ला मिलकर साजिश रच रहे हैं। क्रिकेट को अब भगवान ही बचा सकता है।

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