अवैध कॉलोनियां होंगी वैध
01-Jan-2018 09:44 AM 1235253
विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा सरकार राजधानी भोपाल की 70 अवैध कॉलोनियों सहित प्रदेशभर की 2500 कॉलोनियों को वैध करने जा रही है। यह पांचवां विधानसभा चुनाव होगा, जिसमें मध्यप्रदेश सरकार अवैध कॉलोनियों को वैध करने का झुनझुना फिर से पकड़ा रही है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले शिवराज सरकार ने अवैध कॉलोनियों को वैध करने की प्रक्रिया तेज करने के निर्देश सभी जिला कलेक्टरों और निगम आयुक्तों को भिजवाए हैं। इतना ही नहीं अब 31 दिसम्बर 2016 तक की अवैध कॉलोनियों को भी वैध किया जाएगा। हालांकि अभी तक शासन अवैध कॉलोनियों को वैध करने के जटिल नियमों का ही सरलीकरण नहीं कर सका है, जिसके चलते अधिकांश कॉलोनियां वैध हो ही नहीं सकती। सुप्रीम कोर्ट मास्टर प्लान से लेकर भू-राजस्व संहिता के भी कई प्रावधान नियमितिकरण की प्रक्रिया में आड़े आते रहे हैं। लाखों की संख्या में लोग भोपाल सहित प्रदेशभर की अवैध कॉलोनियों में निवास कर रहे हैं, मगर हर चुनाव में इनसे वोट नेताओं द्वारा वैध तरीके से लिए जाते हैं और यही कारण है कि चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का अथवा निगम चुनाव, सभी में अवैध कॉलोनियों को वैध करने का वायदा प्रमुख रहता है। पिछले चार विधानसभा चुनाव से तो हर घोषणा-पत्र में भाजपा इसे शामिल करती रही है। पूर्व में जब कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार थी, तब उसने भी अवैध कॉलोनियों को वैध करने का झुनझुना रहवासियों को पकड़ाया और उसके बाद पिछले तीन चुनावों से भाजपा की सरकार भी यही काम कर रही है। अब एक बार फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों इस बात पर सख्त नाराजगी जाहिर की कि अवैध कॉलोनियों को वैध करने की प्रक्रिया इतनी ढीली क्यों है? उन्होंने नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के अफसरों को निर्देश भी दिए कि कॉलोनियों को वैध करने की प्रक्रिया जल्द पूरी कराई जाए। विभाग ने भी मध्यप्रदेश नगर पालिक (कालोनाइजर का रजिस्ट्रेशन) नियम 1998 में कई मर्तबा संशोधन किए हैं और 19 साल पहले अवैध कॉलोनियों को वैध करने का गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया था, लेकिन अभी तक गिनती की अवैध कॉलोनियां ही वैध हो सकी हैं और उनमें भी लोकायुक्त से लेकर राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो यानी ईओडब्ल्यू में शिकायतें की गई। अब शासन ने निर्णय लिया है कि 31 दिसम्बर 2016 तक की अवैध कॉलोनियों को वैध किया जाएगा। पूर्व में भी इसकी डेड लाइन बढ़ाई जा चुकी है। दूसरी तरफ पुलिस-प्रशासन ने शिकायतें मिलने के बाद अवैध कालोनाइजरों के खिलाफ धरपकड़ की कार्रवाई भी शुरू की थी। अब शासन के निर्देश पर नगरीय प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन और निगम फिर से अवैध कॉलोनियों की सूची बनाने और उन्हें वैध कराने की प्रक्रिया में जुट गया है। इंदौर नगर निगम भी अभी तो स्वच्छता मिशन में जुटा है, लेकिन वह भी जनवरी के बाद उन कॉलोनियों को पहले वैध करेगा जिनकी एनओसी से लेकर अन्य प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी है। राजधानी भोपाल के नीलबड़ और रातीबड़ में आकार ले रही करीब 70 से अधिक अवैध कॉलोनियों को सरकार वैध करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए नगर निगम और जिला प्रशासन मिलकर किसी प्राइवेट एजेंसी को सर्वे का काम सौंपने की तैयारी में हैं। सर्वे में यह तय हो जाएगा कि इन अवैध कॉलोनियों में आखिर कितने लोग निवास कर रहे हैं। कितने लोगों के पास किस तरह के दस्तावेज हैं। इंदौर निगम के कालोनी सेल के पास 507 अवैध कॉलोनियों की सूची तैयार है। इसमें वे 70 अवैध कॉलोनियां भी शामिल है, जो 29 गांवों में आती है। पूर्व में ये अवैध कॉलोनियां पंचायतों के अधीन थी, मगर निगम की सीमा बढऩे के बाद अब ये सब निगम के दायरे में आ गई है। अभी तक नगर निगम मात्र 26 कॉलोनियों को ही वैध कर सका है। वहीं इनमें से कुछ कॉलोनियां तो ऐसी है, जिनको वैध करने की प्रक्रिया में कायदे-कानूनों को ताक में रख दिया और इसके खिलाफ भी की गई शिकायतों की जांच लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू जैसे संगठनों द्वारा की जा रही है। कई अवैध कालोनियां इंदौर विकास प्राधिकरण की योजनाओं में भी शामिल है, उन्हें भी निगम वैध नहीं कर सकता, क्योंकि उसके लिए प्राधिकरण की एनओसी लेना अनिवार्य है और जब तक योजना लागू है तब तक प्राधिकरण भी एनओसी नहीं दे सकता। अब देखना यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रदेशभर की कितनी अवैध कालोनियों को नगरीय प्रशासन वैध करवा पाता है..? फिलहाल तो विभाग को वैध करने की प्रक्रिया में ही संशोधन किए जाना है, जिसकी प्रतीक्षा विगत कई वर्षों से नगरीय निकाय कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट से लेकर मास्टर प्लान के प्रावधान बाधक शासन की मजबूरी यह भी है कि वह सभी अवैध कॉलोनियों को वैध इसलिए भी नहीं कर सकता, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अलावा मास्टर प्लान और भू-राजस्व संहिता के नियम इसमें आड़े आते हैं। कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने नई दिल्ली में सीलिंग की कार्रवाई करवाई थी, जिसमें आवासीय जमीनों पर व्यवसायिक उपयोग को प्रतिबंधित किया था, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन बेल्ट से लेकर सरकारी जमीनों के मामले में भी कई फैसले दिए हैं, जिसके चलते इन जमीनों पर काबिज कॉलोनियों को वैध नहीं किया जा सकता। इंदौर के मास्टर प्लान में भी घोषित ग्रीन बेल्ट की जमीनों पर बड़ी संख्या में अवैध कॉलोनियां काबिज हो गई हैं, तो सरकारी, नाले से लेकर कुछ कॉलोनियां ऐसी भी हैं, जहां पर 25 प्रतिशत भी मकान नहीं बने हैं, जिनमें बहुचर्चित अयोध्यापुरी कॉलोनी शामिल है। इतना ही नहीं भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 109 और 110 यह कहती है कि डायवर्शन से पहले यदि कोई कॉलोनी कटी है तो नामांतरण शून्य माना जाएगा, जिसके चलते खेती की जमीन पर बनी अवैध कॉलोनियों को भी वैध करने में परेशानी है। - कुमार राजेंद्र
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