आप के भीतर महाभारत
01-Jan-2018 09:50 AM 1234801
आम आदमी पार्टी को ऐसा रोग लग गया है कि बिना विवाद के पार्टी में कोई भी कदम नहीं उठाया जाता। ताजा मामला राज्यसभा की सीटों को लेकर सामने आया है। दरअसल, पार्टी को दिल्ली से तीन सांसद राज्य सभा के लिए भेजने हैं, लेकिन इसको लेकर महाभारत शुरू हो गया है। केजरीवाल के पास सिर्फ 4 जनवरी तक का वक्त बचा है क्योंकि 5 जनवरी को राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर दिल्ली की इन तीन राज्यसभा सीटों में ऐसा कौन सा पेंच फंसा है जो इसे इतना महत्वपूर्ण बना देता है। इस सवाल का जवाब है आम आदमी पार्टी के भीतर महत्वाकांक्षाओं की लड़ाई है जिसका ट्रेलर हम पिछले 1 साल से लगातार देखते आ रहे हैं। उस ट्रेलर का जिक्र करें और महत्वाकांक्षा की लड़ाई में शामिल उन लोगों की चर्चा करें उससे पहले यह जानना जरूरी है कि इन तीन राज्यसभा सीटों के लिए आम आदमी पार्टी ने एक बड़ा दांव खेलते हुए पूर्व आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन को पेशकश की थी। आम आदमी पार्टी चाहती थी कि उनके कोटे से राज्यसभा में अर्थ जगत या सामाजिक जगत से कोई ऐसा बड़ा नाम राज्यसभा में जाए जो सरकार को आर्थिक जैसे अहम मुद्दों पर घेर सके और जिसके कहने का सदन के अंदर पॉजिटिव और गहरा असर हो। केजरीवाल ने शायद सोचा होगा कि अगर रघुराम राजन राज्यसभा के अंदर प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर घेरेंगे तो पार्टी को राष्ट्रीय परिपेक्ष में और ज्यादा गंभीरता से देखा जाएगा, लेकिन रघुराम राजन ने आम आदमी पार्टी के कोटे से राज्यसभा जाने की पेशकश को ठुकरा दिया। राजन के बाद पार्टी ने समाज के कुछ और बड़े नामों पर चर्चा शुरु की। यहां तक की चर्चा में कुछ बड़े वकीलों का नाम तक सामने आने लगे हैं, लेकिन पार्टी के सूत्र बताते हैं कि ज्यादातर बड़े नाम आप के कोटे से राज्यसभा जाने से ऐतराज कर रहे थे। पार्टी का मानना है कि सदन के भीतर कोई भी मौजूदा सरकार को आम आदमी पार्टी की स्टाइल में शायद घेर नहीं पाएगा। तो आप पार्टी ने दांव बदलकर बड़े नामों की जगह समाज में निचले स्तर पर अलग-अलग क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन और सामाजिक कार्यकर्ताओं की तलाश शुरू कर दी है। आप को लगता है कि बाहर से चेहरों की तलाश उसे अंदर की भीतरघात से बचा लेगी। साथ ही बाहर से किसी जनाधार वाली सामाजिक शक्ति को राज्यसभा भेजने से पार्टी का अपना जनाधार भी बाहर बढ़ेगा। अब आते हैं सबसे अहम सवाल पर कि आखिर केजरीवाल को ऐसा क्यों लगता है कि बाहर से नेता इंपोर्ट करने पर आम आदमी पार्टी के भीतर का द्वंद खत्म हो जाएगा? दरअसल, ये द्वंद अब नया नहीं है। पार्टी के तीसरे सबसे मशहूर नेता और हिंदुस्तान में मशहूर कवि कुमार विश्वास राज्यसभा जाने की अपनी मंशा बहुत पहले ही जगा चुके हैं। आम आदमी पार्टी के शुरुआत से लेकर इन 5 सालों तक करीब से देखने के नाते हमेशा यह लगता था कि केजरीवाल अगर किन्ही 3 चेहरों को राज्यसभा भेजेंगे तो उनमें से एक नाम कुमार विश्वास का होगा। जब तक योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पार्टी से बाहर नहीं निकाले गए तब तक उनके नामों पर भी चर्चा गाहे-बगाहे होती रहती थी। कुमार विश्वास का नाम केजरीवाल के सबसे करीबी नेताओं में से शुमार था। अन्ना आंदोलन से लेकर पार्टी के गठन और चुनाव लडऩे तक विश्वास कंधे से कंधा मिलाकर केजरीवाल के साथ खड़े रहे। गाजियाबाद में रहने वाले कवि भीड़ बटोरने और जोश भरने के लिए हमेशा पार्टी के लिए एक संपत्ति के रूप में देखे गए। विश्वास के बाद जिन दो नामों पर अक्सर ध्यान जाता था वह थे पूर्व पत्रकार पार्टी में वरिष्ठ नेता आशुतोष और केजरीवाल के सहयोगी संजय सिंह, लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि इनमें से किसी को भी संसद की चौखट पर जाने का मौका मिलेगा। इन तमाम नामों के बीच दिल्ली की 3 राज्यसभा सीटें केजरीवाल के लिए सदन में जहां मजबूती का संकेत हैं वही पार्टी के अपने भीतर द्वंद का आमंत्रण है। अब कुछ दिन और बचे हैं और जाहिर है कि जब महत्वाकांक्षा हारती है तो महाभारत की शुरुआत होती है। अब देखना यह है कि केजरीवाल इस चुनौती से कैसे निपटते हैं। 16 जनवरी को राज्यसभा के लिए मतदान होना है। विरोधी पार्टियों की कोशिश रहेगी की वे आम आदमी की पार्टी का खेल किसी भी तरह बिगाड़ दें, ताकि उसके अंदर महाभारत की जो आग सुलग रही है वह आने वाले समय में इतनी भयानक हो जाए की आप का खेल खत्म हो जाए। बाहरी को लेकर बगावत की आशंका हाल ही में पार्टी ने साफ किया है कि अब वह किसी भी हाल में अपनी पार्टी के नेताओं को राज्यसभा नहीं भेजेगी। जाहिर है इसका सीधा-सीधा एक मतलब यह भी है कि अब विश्वास का आम आदमी पार्टी के कोटे से राज्यसभा जाने का टिकट कट चुका है। अब अगर इस हालत में अरविंद केजरीवाल पार्टी के दूसरे नेता यानी कि आशुतोष और संजय सिंह को राज्यसभा भेजते हैं तो विश्वास अपने समर्थकों के साथ बगावत कर सकते हैं। पार्टी अब किसी और विवादों से बचना चाहती है। पार्टी के नेता मानते हैं केस विवाद को खत्म करने का सबसे सही रास्ता यही है कि बाहर से अच्छे लोगों को पार्टी के टिकट पर सदन में भेजा जाए। राज्यसभा की उम्मीदवारी के लिए दो प्रबल दावेदारों में से एक संजय सिंह दूसरे राज्यों में संगठन की जिम्मेदारी में व्यस्त हो गए हैं और दूसरे नेता आशुतोष भी संजय सिंह के साथ संगठन के कामकाज में जुट गए हैं। वहीं महाराष्ट्र में पार्टी के नेता मीरा सान्याल के नाम पर भी चर्चा होती रही। मजे की बात है कि यह नेता राज्यसभा की उम्मीदवारी और दावेदारी के सवालों को हंसकर टालने की कोशिश करते हैं। - ऋतेन्द्र माथुर
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^