01-Jan-2018 09:42 AM
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टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले पर अदालत के फैसले ने करोड़ों देशवासियों को अचम्भे में डाल दिया है। यूपीए सरकार के इस चर्चित घोटाले में शामिल सभी आरोपियों को विशेष सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया है। यह कहते हुए कि अभियोजन पक्ष पर्याप्त सबूत पेश कर पाने में विफल रहा है। उधर, सीबीआई का कहना है कि इस मामले को लेकर वह अपील में जाएगी। यदि हाईप्रोफाइल मामलों में सीबीआई की सफलता का विश्लेषण किया जाए, तो हालात बहुत चिंताजनक नजर आते हैं।
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने माना कि इस मामले को साबित करने के लिए जांच एजेंसी के पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं। इस दौरान स्पेशल जज ओपी सैनी ने कड़ी टिपण्णी करते हुए कहा मैं सात सालों तक इंतजार करता रहा, काम के हर दिन, गर्मियों की छुट्टियों में भी, मैं हर दिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक इस अदालत में बैठकर इंतजार करता रहा कि कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत लेकर आए। लेकिन कोई भी नहीं आया। देश की सबसे बेहतरीन जांच एजेंसी पर इस तरह की टिपण्णीं कई तरह के सवाल खड़े करती है।
जिस घोटाले ने देश को हिला कर रख दिया था और जिससे सरकारी खजाने को 30,984 करोड़ रुपये के नुकसान की बात कही जा रही थी, उस मामले में किसी का दोषी न पाया जाना वाकई अजीबो-गरीब है। अब इस फैसले के बाद लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि क्या वाकई कोई घोटाला हुआ था या नहीं? साथ ही, इस मामले ने सीबीआई की उस कमजोरी को भी उजागर कर दिया है, जहां हाई प्रोफाइल मामलों में सीबीआई द्वारा आरोप साबित करने की दर काफी कम है। बेशक सीबीआई देश की बेहतरीन जांच एजेंसी और इसके रिकॉर्ड भी इस बात की तस्कीद करते हैं। एक आकड़ें के अनुसार 2006 से जुलाई 2016 तक सीबीआई ने भ्रष्टाचार के मामले में 68 फीसदी की दर से आरोप सिद्ध करने में सफल रही है। इस दौरान सीबीआई ने 7000 मामलों में 6533 मामलों में चार्ज शीट दायर की है, 4054 मामलों में आरोपी को दोषी पाया गया है जबकि 2095 मामलों में आरोपी को रिहाई मिल गयी है। हालांकि, हाई प्रोफाइल मामलों में सीबीआई की आरोप सिद्धि की दर काफी कम है।
जिन बड़े मामलों में सीबीआई आरोप सिद्ध करने में सफल रही उनमें मुख्य रूप से हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता और हाल ही में झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का नाम याद आता है। सरकारी आकड़ों के अनुसार अभी भी 115 नेताओं के खिलाफ मामले विभिन्न अदालतों में लटके हुए हैं। यह आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि सीबीआई का वो पैनापन जिसके लिए यह जानी जाती है, नेताओं या कहें सत्ता में बैठे लोगों के खिलाफ कार्यवाई के मामले में कमतर हो जाती है।
हाल के वर्षों में यह चलन भी देखने में आया है जब केंद्र की सत्ता में बैठी पार्टी अपने मतलब के हिसाब से सीबीआई का इस्तेमाल करती है। इसी पर तल्ख टिपण्णी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में सीबीआई को पिंजड़े में बंद तोते की संज्ञा दी थी और कहा था कि यह अपने मालिक के इशारे पर काम करती है। हालांकि, इस टिपण्णी के बाद भी सीबीआई को स्वायत बनाने की दिशा में कोई विशेष प्रयास नहीं किये गए। ऐसे में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में जिस तरह का फैसला आया है उसने फिर से इस बहस को हवा दे दी है कि क्या हाई प्रोफाइल मामले की जांच करने के लिए सीबीआई को और ताकत की जरुरत है?
अब अपील के नाम पर खानापूर्ति
राजनेता छूट गए। उद्योगपति छूट गए। सात साल की सुनवाई का यही परिणाम निकला है कि कोई सबूत नहीं है। घोटाला ही नहीं हुआ है। हाईकोर्ट में अपील के नाम पर क्या इसकी आग पर सियासी रोटी सेंकी जा सकती है। यह मामला कोर्ट के दायरे से बाहर जाता है। देश को पता चलना चाहिए कि हुआ क्या था। सीएजी की रिपोर्ट किस मकसद से बनी थी, क्या डीएमके और उद्योगपतियों को राहत देने के लिए जांच के स्तर पर कोताही बरती गई। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने सवाल किया है कि सीएजी की रिपोर्ट कैसे लीक हुई किसी को पता नहीं, जिस रिपोर्ट को संसद में रखा जाना था, मगर इसके पहले ही रिपोर्ट लीक कर दी गई। जब सबूत नहीं हैं, आरोपी छूट चुके हैं तब फिर किस घोटाले की बात हो रही है। हाईकोर्ट में अपील की बात हो रही है, 30 दिसंबर 2014 को सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर मामले में अमित शाह स्पेशल सीबीआई कोर्ट से बरी हुए तो आज तक अपील फाइल नहीं है। क्या सीबीआई किसी से पूछ कर अपील का फैसला करती है। क्या यही पारदर्शी और निष्पक्ष सिस्टम है। हमारे सहयोगी आशीष भार्गव ने अपनी रिपोर्ट में फैसले के बारे में कुछ अन्य बातें भी लिखी हैं, जज ने लिखा है कि टेलीकॉम महकमे की बात किसी ने नहीं सुनी। सभी ने मान लिया कि ये बड़ा घोटाला है जबकि ऐसा घोटाला नहीं था। 2जी घोटाले में कोर्ट के फैसले पर राहत महसूस कर रही कांग्रेस के लिए एक और अच्छी खबर बॉम्बे हाई कोर्ट से आई है। हाईकोर्ट ने आदर्श सोसायटी घोटाला मामले में कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर केस चलाने की अनुमति देने वाले राज्यपाल के आदेश को खारिज कर दिया है।
- अक्स ब्यूरो